पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१६६

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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा *

'पूर्ण' शब्दसे १० का अर्थ लिया है और होता है कि ये बातें २० वर्षों में हुई। यह १० वर्ष ग्यारह महीनोंका समय बतलाने- वर्णन है कि राजसूयके समय अभिमन्यु का प्रयत्न किया है, परन्तु वह सिद्ध बड़ा हो गया था और वह राजा लोगों महीं होगा। को पहुँचानेके लिये गया था। संक्षेपमें प्रयस्त्रिंशत् समाहृय खांडवेऽग्निमतर्पयत। यही कहना पड़ता है कि ये भिन्न भित्र (उद्योग० ५२.१०) समय ठीक ठीक नहीं मिलते। इम वाक्यमे टीकाकार कहते हैं कि प्रस्तु, सारांश यह है कि इन भिन्न उद्योगके समय खाण्डव-दाह हुए ३३ वर्ष भिन्न ज्योतिर्विषयक उल्लेखोंसे सौतिके बीत चुके थे। पहले विराटपर्वमें अर्जन मनमें यह दिखलानेकी इच्छा थी, कि उत्तरासे कहता है कि-'इस गाण्डीव प्रजापति अथवा सृष्टि उत्पन्नकर्ताके धनुषको मैंने ६५ वर्षांतक धारण किया रोहिणी और श्रवण नक्षत्रों पर, तथा है।' गाण्डीव धनुष खाण्डवदाहके समय में भगदैवत उत्तरा नक्षत्र पर और पितृदैवत मिला था। यहाँ ३३ वर्ष बतलाये गये मघा नक्षत्र पर ग्रहोंकी दुष्ट दृष्टि पड़ी हैं। ६५ का आधा करनेसे ३२॥ आता है ! थी, जिससे प्रजाकी अत्यन्त हानि और अर्थात् करीब करीब ३३ आता है। परन्तु 5 संहार होनेवाला था। इसलिये हमारा वनवासके १३ वर्ष घटाने पर खागडव- मत यह है कि सौतिने इन अरिष्टसूचक दाहके अनन्तर वह २० वर्षांतक इन्द्र- वचनोको काल्पनिक रीतिसे दिया है। प्रस्थमें था। सुभद्राविवाह खाण्डवदाहके सन् ईसवीके पहले ३१०१ वे वर्ष में अथवा पहले हुआ था: परन्तु अभिमन्यु युद्धके । अन्य किसी वर्ष में ऐसी ग्रहस्थितिका समय १६ वर्षाका था (श्रा० अ०६७) होना नहीं पाया जाता। हमने ग्रहोंकी अस्य षोडशवर्षस्य स संग्रामो . 'जो स्थिति ऊपरके वचनोंसे दी है, उसके आधार पर गणितके द्वारा किसी निश्चित भविष्यति । अर्थात् , यह मानना पड़ता समयका निर्णय नहीं किया जा सकता। है कि विवाहके १७ वर्षों के बाद सुभद्रा- सभी प्रमाणोंका विचार करने पर, को पुत्र हुआ । आदिपर्वमें खाण्डवदाहके भारती-युद्धका जो समय मेगास्थिनीज़के पहले अभिमन्युकी उत्पत्ति बतलाई गई प्रमाणसे और शतपथ-ब्राह्मणके प्रमाणसे है। मयासुरने राजसभा बनाई : फिर ! निश्चित होता है, उसीको अर्थात् सन राजसूय यज्ञ हुश्रा और आगे चलकर ईसवीके पहले ३१०१ वर्षको ही मान्य हस्तिनापुरमें जत्रा खेला गया। मालुम समझना चाहिये।