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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१७८

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महाभारतमीमांसा

१५२ ॐ महाभारतमीमांसा - बात नहीं मानी । महाभारतकी इस तक्षकको माफ़ भी कर दिया। असल कथाको ऐतिहासिक रूप इस तरह दिया कथाभाग यह है। इसे महाभारत-काल जा सकेगा, कि नागोंने अर्जुनके विरुद्ध ! तक सर्प-सत्रका रूपक दे दिया गया। कर्णकी सहायता की थी; परन्तु उसका : श्रादि पर्वमें जनमेजयके सर्पका विस्तृत कुछ उपयोग नहीं हुआ। खाण्डव बन वर्णन इसी तरहका है। किन्तु सर्पसत्रका जलाकर अर्जुनने हमारा देश छुड़ा दिया, अर्थ क्या है ? सर्पसत्रके उनके किसी इसका बदला तक्षकने अर्जुनके नातीसे सत्रका वर्णन न तो किसी ब्राह्मण-ग्रन्थमें लिया । तक्षकके काटनेसे परीक्षितका । और न किसी वैदिक ग्रन्थमें पाया जाता देहान्त होनेकी जो कथा है, उसका यही है: किंबहुना महाभारकके वचनसे प्रकट रहस्य है । मूल भारती युद्ध सन् ईसवीसे होता है कि यह सर्पसत्र सिर्फ जनमेजयके ३००० वर्ष पूर्व मान लिया जाय तो फिर लिए ही उत्पन्न किया गया था और इस महाभारत उसके २५००--२७०० वर्ष पश्चात् ' सत्रमें भिन्न भिन्न जीतियोंके सोकी तैयार हुआ। इतने समयके बीचमें लोगों 'आहुतियां दी जानेवाली थी। ऋषियोंने की कल्पना और दन्तकथामें नाग जाति सत्रका प्रारम्भ किया; ज्योंही ज़ोर ज़ोरसे प्रत्यक्ष नाग अथवा सर्प हो गई, इसमें सौके नाम लेकर अग्निमें आहुति दी कुछ अचरज नहीं । महाभारतके समय गई, त्योंही बड़े बड़े सर्प आगमें गिर- यही कल्पना थी कि नाग सर्प ही थे। कर भस्म होने लगे ! अन्तमें तक्षककी उनमें यह विशेषता मानी जाती थी कि पुकार हुई । तक्षक इन्द्र के आश्रममें था, बे मामूली साँपोंकी तरह पशु नहीं थे, किन्तु उस समय आस्तीकने नागोंका उनमें देवांश था। वे मनुष्योंकी तरह बात- पक्ष लेकर जनमेजयको मना लिया और चीत करते थे और उनमें तरह तरहकी देवी सर्प-सत्र रुकवाकर तक्षकको अभय-वचन शक्तियाँ भी थीं। असल बात कदाचित् । दिलवा दिया। इस कथासे ज्ञात होता यह हो कि तक्षकने गुप्त रूपसे परीक्षितके है कि नाग भी मनुष्य ही थे और इन्द्रके महलमें घुसकर उसका खून किया हो: । श्राश्रममें रहते थे; यानी ऐसे जंगलों में परन्तु उसका रूपान्तर यह हुआ कि बेरमें रहते थे जहां कि विपुल वर्षा होती थी। बहुत ही छोटासा कीड़ा बनकर उसने इनके कई भेद थे । क्षत्रियोंके घरमें प्रवेश किया और फिर एकदम खूब भारी नागोंकी बहुतेरी स्त्रियाँ थीं। अर्जुन भी होकर परीक्षितको डस लिया। इससे एक नाग-कन्या उलूपीको ब्याह लाया था। भागेका भाग और भी चमत्कारपूर्ण है। कल्पना यह है कि नागोंकी मुख्य बस्ती जनमेजयने अपने पिताको मृत्युका बदला पातालमें है और पातालमें पहुँचनेका लेनेके लिए तक्षकसे और नाग लोगोंसे मार्ग पानीके भीतर है। इसी लिये वर्णन प्रायश्चित्त कराना चाहा । सारे संसारको है कि नदी में स्नान करते समय अर्जुनका जीतनेवाले योद्धाओका अनुकरणकर पैर घसीटकर उलूपी उसे पातालमें ले उसने नागोंके तक्षकके देश तक्षशिलाको गई थी। इसके सिवा, कई ऋषियोंको जीतकर नागोंका बिलकुल नाश करनेका नाग-कन्याओंसे सन्तान होनेका वर्णन काम जारी कर दिया। किन्तु फिर एक महाभारतमें है। नागोंका पक्ष स्टेनेवाला दयालु विद्वान ब्राह्मणके अाग्रहसे जनमे- आस्तीक, जरत्कारु ऋषिका नाग-कन्यासे जयने उनका पिण्ड छोड़ दिया और ही उत्पन्न पुत्र था। इन सारी बातों