- महाभारतमीमांसा
विरुद्ध अर्थमें व्यवहत होता था । मनु- अङ्ग देशतक पार्योंकी बस्ती. थी । शौर- स्मृतिमें यह भेद अभीतक है। इस स्मृति- सेन, चेदी और मगधका नाम ब्राह्मयों में में भी आर्य शब्द जातिवाचक है और उस | नहीं है। फिर भी यह बात मान ली जा समय लोग यह समझते थे कि हिन्दुस्थान- सकती है कि शौरसेन, चेदी और ममध में जो लोग चातुर्वर्ण्यके बाहर हैं, वे आर्य लोग उस समय यमुना किनारे फैले हुए नहीं हैं। भीष्म पर्वकी देश-गणनामें यह थे । मत्स्योका नाम ऋग्वेदमें भी है । महीं बतलाया गया कि हिन्दुस्थानमें आर्य यदि श्रीकृष्णकी कथाका युद्ध-कालीन देश कौन कौनसे है। तथापि उत्सरमें होना निश्चित है तो काठियावाड़-द्वारका- पावसे लेकर अङ्ग-वङ्ग देश पर्यन्त और नक आयौँकी बस्तीका सिलसिला होना दक्षिणमें अपरान्त देशतक आर्य लोग फैले चाहिये । वेदमें समुद्रका वर्णन बहुत है। रहे होगे. उस सीमाके बाहर म्लेच्छो- अर्थात वैदिक ऋषियोंको सिन्ध और की बस्तीका होना मालूम पड़ता है। काठियावाड़ वगैरहका हाल अवश्य मालूम म्लेच्छों और वेदबाह्य लोगों में अङ्ग, बङ्ग, रहा होगा । पञ्जाबमें तो पार्योकी खास कलिङ्ग और आन्ध्र देशकी भी गणना की बस्ती थी। पहलेपहल वे वहीं श्राबाद गई है। यवन, चीन, काम्बोज, हण और हुए । तब, पञ्जाबसे लेकर काठियावाड़- पारसीक वहेरह तथा दरद, काश्मीर, तक और पूर्व में विदेहतक आर्य फैले हुए खशीर और पह्नव वगैरह दूसरे म्लेच्छ थे और इन देशोंमें रहनेवालोका नाम वेद उत्तरकी ओर बतलाये गये हैं। इस वर्णन- और महाभारतमें आर्य है। इससे प्रकट से भली भाँति मालुम होता है कि महा- ' होता है कि हिन्दुस्थानमें आर्य लोगोंकी भारत-कालमें कौन कौन लोग म्लेच्छ बसती है। समझे जाते थे। और इसी कारण ' शीर्षमापन शास्त्रका प्रमाण । हिमालय तथा विन्ध्यके बीचका देश आर्यावर्त समझा जाता था। इसके बाहर शीर्षमापन शास्त्र एक ऐसा नवीन भी प्रार्य थे और वे संस्कृत भाषा भी शास्त्र उत्पन्न हुआ है जिससे इस बात- बोलते थे। फिर भी वेद-वर्ण-बाह्य होनेके की जाँच कर ली जाती है कि अमुक लोग कारण वे म्लेच्छ समझे जाते थे । मनु- । अमुक जातिके हैं या नहीं । इस शास्त्रसे स्मृतिमें उनकी गणना दस्युओंमें की गई बहुत करके इस बातका निश्चय किया जा है। यह अनुमान इस श्लोकसे निक- सकता है कि अमुक लोग आर्य जातिके हैं या नहीं । संसार भरमें जितने मनुष्य हैं, मुख बाह्ररुपजानां या लोके जातयो उनकी खासकर चार जातियाँ मानी बहिः । म्लेच्छवाच भार्यवाचः सर्वे ते गई हैं। आर्य, मङ्गोलियन, द्रविड़ और दस्यवः स्मृतः ॥ नीग्रो । इनमें साधारण रीतिसे आर्य यह मान लेने में कोई क्षति नहीं कि लोग गोरे और ऊँचे होते हैं।मडोलियनों- भारती युद्ध-कालमें हिन्दुस्थानके आर्योकी की ऊँचाई मझोले दर्जेकी और रंग पीला बस्ती: इसी प्रकार थी । ब्राह्मण-ग्रन्थों में होता है। वीडियन साँवले रङ्गके और कुरु, पाञ्चाल, कोसल और विदेहवालोंके ऊँचाई में मध्यम होते हैं। नीग्रो ( हबशी) सम्बन्धमें बराबर वर्णन मिलते हैं। बिलकुल काले होते हैं। रङ्ग और ऊँचाईके अर्थात् पूर्व दिशामें गङ्गाके उत्तर और भिन्न परिमाणको अपेक्षा सिर और नाक- लता है-