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- महाभारतमीमांसा
के लिये शैतानने बड़ी कड़ाकेकी धूप और वगैरह जातियाँ असली प्रार्य हैं। अब हम लॉप पैदा कर दिये ।" सप्तसिन्धु अर्थात् दूसरे भागके विषयमें विचार करते हैं। पजाबकी पाँचों नदियाँ और सिन्धु तथा रिस्ले साहबने दूसरे भागमें संयुक्त कुभा है। ऋग्वेदमें इन सातों नदियोंके प्रदेश और बिहारको माना है। वे कहते नाम बराबर आते हैं । इन नदियोंके हैं कि इन दोनों प्रान्तोंमें मिश्र जातिके वर्णनसे और महाभारतके लोगोंके वर्णन- आर्य हैं। बिहार प्रान्त वैदिक-कालीन से सिद्ध होता है कि पाबमें और समीप- विदेह है और कोसल है अयोध्या (अवंध)। के ही काश्मीर तथा राजपूतानेमें गोरे ब्राह्मण-ग्रन्थों में कोसल और विदेह मश- तथा खूबसूरत आर्योंकी अच्छी आबादी हर हैं। कोसल-विदेह रामायणक कथा- थी । यहाँ रहनेवाले मूल दस्यु लोग | भागका मुख्य प्रदेश है । इन प्रदेशोंके थोडेसे होगे और प्रार्योके आ जानेसे वे निवासी सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं । पजाबसे धीरे धीरे दक्षिणमे हट गये होंगे। इन उनका सम्बन्ध है। वहाँकी संस्कृतोत्पन्न द्रविड़ जातिवालोंकी मुख्य बस्ती दक्षिणमें वर्तमान देशी भाषाओसे भी यह बात ही थी, और उत्तरकी ओरसे आर्य लोग प्रकट होती है। इन दोनों सूबोके आदमी जैसे जैसे आते गये वैसे ही वैसे ये मूल यदि मिश्रित जातिके हो तो कोई अचरज निवासी दक्षिणकी ओर हटते गये ।। नहीं । फिर भी अवध पहलेसे ही खतन्ध ऊपर किये हुए विभागसे यह बात मालूम है। अब शेष संयुक्त प्रदेशका विचार हो चुकी है कि उन लोगोंकी विशेष संख्या किया जाता है। इस प्रदेशमें विशेष करके इस समय भी दक्षिणके भागमें ही है। चन्द्रवंशी क्षत्रियों और ब्राह्मणोंकी बस्ती है। शीर्षमापन शास्त्रके अनुसार इन द्रविड़ ऋग्वेदके वर्णनसे भी सिद्ध होता है कि लोगों में मख्य विशेषता यह है कि उनकी चन्द्रवंशी लोग पहले सरस्वती और गका- नाक चपटी होती है। उनका सिर तो के किनारे पर बसे थे । कुरु-पाञ्चाल आर्य जातिवालोंकी तरह लम्बा ही होता ब्राह्मण-ग्रन्थके मुख्य दंश थे । ब्राह्मण- है, परन्तु चपटी नाक उनकी स्वास पह- ग्रन्थोंसे ज्ञात होता है कि इन लोगोंके चान है जिस पर ध्यान रहना चाहिये। प्राचार-विचार कुछ भिन्न थे और वैदिक अचरजकी बात तो यह है कि द्राविडोकी धर्मका पूर्ण उत्कर्ष सरस्वतीके किनारे इस विशेषता पर आर्य ऋषियोंकी नज़र | कुरुक्षेत्रमें हुआ। सरस्वती और दृषद्वती पड़ गई थी और उन्होंने वेदमें अनेक नदीके बीचका छोटासा प्रदेश ही मुख्य स्थानों पर 'निर्नासिक दस्यु' यह वर्णन आर्यावर्त है। इसीको लोग वैदिक धर्म- किया है । पञ्जाबके दस्यु धीरे धीरे पीछे का मुख्य स्थान मानते थे । इस भागके हटे और ऋग्वेद-कालसे लेकर अबतक लोग पञ्जाब-निवासी आर्योंकी अयेक्षा पसाबके अधिकांश लोग आर्य जातिके अधिक सुधरे हुए और बहुत शुद्धाचरणी हैं; रङ्ग उनका अब भी गोरा और नाक समझे जाते थे। जिस तरह आजकल ऊँची है । पञ्जाबकी धरती खूब उपजाऊ महाराष्ट्र (दक्खिन) में पूना प्रान्त भाषा, थी, इस कारण ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य सभ्यता, आचार और धर्मशास्त्र मादिके अथवा खेती करनेवाले किसान वगैरहकी सम्बन्धमें मुख्य माना जाता है, उसी संख्या खूब बढ़ी। इस कारण आजकल : प्रकार प्राचीन समयमें वैदिक धर्म श-छ मानी जानेवाली पावकी जाट और वैदिक सभ्यताका केन्द्र कुरुक्षेत्र