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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१८८

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा'

द्रविड़ जातिका ही मंमिश्रण है । यह राय फिर आगे नहीं हुा । खैर, ऊपरके विशेषकर महाराष्ट्र-वासियोंके सम्बन्ध विचरणसे यह निश्चय किया गया है कि है। महाराष्ट्रके ब्राह्मण और मराठा क्षत्रिय भारती-युद्ध आर्य जातिके चन्द्रवंशी आर्य नहीं हैं। इस बातको सिद्ध करने- क्षत्रियों में हुआ था। अब देखना चाहिये कि के लिये यह कटाक्ष है: अर्थात् रिस्ले इनके सिवा और कौन कौन लोग इस साहबने यह माना है कि इन लोगोंमें शक समरमें शामिल हुए थे। और द्रविड़ जातियोंका ही मिश्रण है। राक्षस । परन्तु उनके खोपड़ी-सम्बन्धो परिमाणके आधार पर की हई यह धारणा गलत है। पाण्डवाका श्रारस हिडिम्बापत्र घटो- क्योंकि, सिद्धान्त यही निश्चित होता है कि कच और दुर्योधनकी ओरसे अलम्बुष, कि चेन्द्रवंशी आर्योका सिर चौड़ा होना ये दो राक्षस थे। अच्छा, अब ये थे कौन ? चाहिये । महाराष्ट्र देशवालोंके सिरका इस प्रश्नको हल करना आवश्यक है। प्रमाण चौड़ा भले ही हो, पर उनकी नाक महाभारत और गमायण आदिमें राक्षसों- चपटी नहीं, बहुत कुछ ऊँची होती है। इसके का मुख्य लक्षण यह बतलाया गया है कि ये सिचा हरिवंशसे सिद्ध होता है कि महा- 'नरमांस-भोजी थे। ऐसा जान पड़ता है राष्ट्रमें यादवोंके राज्य स्थापित हुए थे। | कि हिन्दुस्थानमें जो कुछ जातियाँ प्राचीन उसमें नाग-कन्याओंकी सन्तति रहनेका समयमें नरमांस भक्षण करनेवाली थी, वर्णन है, इससेसम्भव है कि आर्य जाति- उन्हींका नाम राक्षस था। इन राक्षसों में द्रविड़ जातिका थोड़ा सा मिश्रण हो. अर्थात् यातुधानोंका उल्लेख ऋग्वेदतकमें परन्तु शीर्षमापन शास्त्र और इतिहाससे है। उनके लिये ऋषियोंका यह शापयुक्त यही निर्णय होता है कि पश्चिम तरफ़के वचन है-"अत्रिणः सन्त्वपुत्रिणः” ।* और महाराष्ट्रके आर्य लोग विशेष करके मनुष्योको विशेषतः परकीय (बाहरी) चन्द्रवंशी प्रार्य हैं । विदर्भ और गजरात मनुष्योको खानेवाले इन मूल-निवासियो- भोज तो निःसन्देह आर्य हैं। अब इस की जातियाँ गक्षस नाममे प्रसिद्ध हो गई। बातका विचार करना है कि युक्त प्रदेशा- अप्सरा, नाग इत्यादि अनार्य जातियाँ जिस न्तर्गत मध्य देशके लोग मिश्र ार्य हैं; यानी : । तरह भली होती थीं, वैसे ही ये अनार्य उनकी नाकका परिमाण ऊँचा नहीं, मध्यम ! जातियाँ भयङ्कर होती थी। परन्तु फिर है। यह पहले लिखा जा चुका है कि यहाँ । आगे चलकर कल्पनासे यह माना जाने के लोगोमे, पहलेपहल, विशेषतः भारती लगा कि अप्सरा, नाग और गन्धर्व श्रादि- युद्धकालमें नाग जातिके लोगोका बहुत की तरह इन दुष्ट जातियोंको भी, दैवी कुछ मिश्रण रहा होगा। और, इसी कारण : शक्ति प्राप्त थी। वे मनमाना रूप धारण युक्त प्रदेशके लोगोंमें द्रविड़ जातिका कर सकते हैं, अदृश्य हो सकते हैं और बहुत कुछ मिश्रण शुरू शुरूमें हो गया .' उनमें विलक्षण शक्ति है:-इस प्रकार- होगा। किन्तु इसमें सन्देह नहीं कि यह * ये खानेवाले लोग निपुत्रिक हो। मिश्रण होना आगे बन्द हो गया। क्योंकि, .. +कर्णार्जन-युद्धके समय हम बानका वर्णन किया गया है कि कौन कौन जातियाँ किम किमकी तरफ थीं। जातिका महत्त्व हिन्दुस्थानके सभी लोगों- । "असुर, यातुधान (राक्षस ) और गुयक कर्ण की ओर हो में बहुत माना गया है, इस कारण जितना गये । सिद्ध, चारण और वैनतेय प्रभृति भर्जनकी भोर मिश्रण पहले हो गया हो, उतना ही रहा, 'हुए। (क० अ० ८७ )