पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१९३

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  • इतिहास किन लोगोंका है।

भारतके समय कुछ और रहा होगा और कोई नहीं है। यह कमल-पत्राक्षी द्रौपदी महाभारतके समय कुछ और । शुरूके सभी है जिसके अङ्गकी कान्ति नीलोत्पलके आर्योकारङ्ग गोरा रहा होगा और पजाब- समान है । चोखे सोनेके सदृश गोरी के लोग तो प्रायः अब भी गोरे होते हैं। यह सुभद्रा है और यह गौर वर्णवाली दूसरे प्रथोत्.पीछेसे पाये हुए चन्द्रवंशी नागकन्या उलुपी है। यह पाराड्य-राज- आर्योंका रङ्ग साँवला और काला होगा। कन्या चित्राङ्गन्दा है जिसका रङ्ग मधूक यह बात पीछे कही जा चुकी है। पुष्पकी तरह है। चम्पाकलीकी मालाकी श्रीकृष्ण, अर्जुन और द्रौपदी ये सब काले तरह गोरी यह जरासन्धकी बेटी है जो थे और रङ्गके ही कारण द्रौपदीका तो महदेवकी प्यारी पत्नी है और इन्दीवरकी नातमक 'कृष्णा' पड़ गया था। परन्तु भाँति साँवली यह नकुलकी दूसरी भार्या इस श्याम वर्णसे चेहरा और आँखे भली है। नपाये हुए सोनेके रङ्गवाली यह मालूम होती थीं । श्याम और गौर वर्णके उत्तग है जिसकी गोदमें बालक है" मिश्रणसे पीला रङ्ग भी उत्पन्न हो गया । (भा० श्राश्र० अ० २५) । इस वर्णनसे था। उपनिषदोतकमें और महाभारतमें देख पड़ता है कि सिर्फ अर्जुन ही साँवला प्रायोंके गोरे, साँवले और पीले ये तीन रङ्ग था और सभी पाण्डव गोरे थे। द्रौपदी, दिये हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य तीनोंमें चित्राङ्गदा और नकुलकी स्त्री गोरी न थी, ये तीन रङ्ग मौजूद थे। यूनानियोंके वर्णनसे बाकी सब गोरी थीं। यह गौर वर्ण सदा जान पड़ता है कि महाभारतके समय सोनेकी रङ्गतका बतलाया गया है। इन तीनों रङ्गोके आदमी हिन्दुस्थानमें हिन्दुस्थानके लोगोंका यह विशेष ही रङ्ग थे । महाभारतके श्राश्रमवासि पर्वमें है। यह किसी देशके लोगों में नहीं देखा पाराडवों और उनकी स्त्रियोंका वर्णन है। जाता। विशेषतः इन दिनों भी कुछ सुन्दरी वह यहाँ पर उद्धृत करने लायक है। स्त्रियोंका जैसा पीला रङ्ग देखा जाता है, बनमें धृतराष्ट्रसे मिलनेके लिये अपनी वैसा अन्य देशोंकी स्त्रियों में और कहीं नहीं स्त्रियों समेत पागडव गये। उस समय मिलता। आर्य लोगोंका साँवला रङ्गभी सञ्जयने ऋषियोंको उनकी पहचान कग कुछ निराला है । वह द्रविड़ोंके काले दी। वहाँ यह वर्णन है:- "यह चोखे रङ्गसे बिलकुल जुदा है। उसे महाभारतमें सोनेकी तरह गोरा युधिष्ठिर है जिसका ; इन्दीवर अथवा मधूक पुष्पकी उपमा कद खूब ऊँचा है, नाक बड़ी है, दी गई है। अस्तु: आर्य लोगोंका मूल और आँखे विस्तीर्ण तथा लम्बी हैं। रङ्ग शुभ्र अथवा सफ़ेद 'कर्पूर गौर' विशे- उसके उस तरफ़ तपाये हुए. सोनेकी षणके द्वारा महाभारतमें कहीं कहीं तरह गोरा वृकोदर है जिसके कन्धे भरे मिलता है। परन्तु महाभारतके समय हुए और भुजाएँ लम्बी तथा खुब भरी सोनेकी सी रङ्गत अधिक पाई जाती थी। हुई हैं। उसके पीछे साँवले रङ्ग-वाला यूनानियोंने भी लिखा है कि हम लोगोंकी वीर अर्जुन है जिसके कन्धे सिंहकी तरह असली गोरे रङ्गके श्रादमी हिन्दु. भाँति उठे हुए हैं और कमलके समान : स्थानमें बहुत हैं। बड़ी बड़ी आँखें हैं। वे दोनो नकुल और हिन्दुस्तानके भारती आर्योंकी ऊँची सहदेव है जिनकी रूप, शील और बलमें नाक और बड़ी बड़ी आँखें, निरे कवि- परावरी कस्नेवाला सारे पृथ्वीतल पर वर्णनकी सामग्री नहीं हैं । यह लक्षण