- वर्णव्यवस्था ।
उत्पन की है" इस वाक्यमें ब्राह्मण कहाँसे फिर आगे उसकी स्थिरताके लिए विशेष आ कूदे ? आर्य लोगों में ब्राह्मण, क्षत्रिय और कारण न हो तो उसका मिट जाना स्पष्ट वैश्य, ये तीन ही भेद पहले कैसे हो गये? ही है। प्राह्मणोंको ये अधिकार कैसे मिल गये, ब्राह्मण और क्षत्रिय । उनका दबदबा कैसे बढ़ा ? यह प्रश्न अलग ही है । अर्थात् उक्त मत ही यही मानना पड़ेगा कि हिन्दुस्तान ग़लत है। भारतीय पार्योंके प्राचीन इति- में जिस समय पहलेपहल भारतीय आर्य हासमें ही वर्ण-व्यवस्थाका उद्गम स्थान आये थे, उससे पहले ही उन लोगों. हूँढ़ना चाहिये। में इसी प्रकारकी साहजिक सामाजिक हमें तो ऐसा जान पड़ता है कि प्रत्येक व्यवस्थाके कारण जातिबन्धनका बीज समाजमें वर्ण-व्यवस्थाका थोड़ा बहुत उत्पन्न हो गया था। पहले उनमें दो वर्ण बीज रहता ही है । साधारण बात यह है उत्पन्न हुए होंगे-ब्राह्मण और क्षत्रिय । कि बापका पेशा बेटा करता है : और श्राोंके देवताओंकी स्तुति करना और अधिकांश शादी-ब्याह बराबरीके नाते- देवताओंका यम करना ब्राह्मणोका काम में और एकसा ही पेशा करनेवालोंके था: नथा युद्ध करना क्षत्रियोंका काम बीच हुश्रा करते हैं। अर्थात् पक न एक था। दोनों ही पेशोंके लिये रीतिके व्या- तरहकी वर्ण-व्यवस्था प्रत्येक समाजम सङ्गकी अावश्यकता थी, इसलिये उनके रहती ही है । भेद यह है कि उसमें पेसा प्रथम व्यवसायके कारण दो विभाग हो करनेके लिये सखी नहीं रहती । ऐसा गये। ऋग्वंदके अनेक उल्लेखोंसे सिद्ध स्वरूप उत्पन्न होने-बन्धन पड़ने के होता है कि ब्राह्मणोंने स्तुति-मन्त्र आदि लिये कुछ न कुछ कारण हो जाते हैं। वह याद रखना स्वीकार किया था । युद्धके कारण समाजके धार्मिक कार्योंके लिए अवसर पर वसिष्ठ, इन्द्र प्रभृति देवताओं- आवश्यक विशेष प्रकारकी योग्यता है। की स्तुति भरतोंके अनुकूल करता है, अनेक लोगोके इतिहाससे यह बात सम- श्रार सुदास गजा युद्ध करता है। ऋग्वेदमें झमें आ जायगी । धार्मिक कामोंकी यह वर्णन है । विश्वामित्र, भरद्वाज, करव व्यवस्था जिनके सपुर्द होती है उनकी और अङ्गिरस आदि भी इसी प्रकारका पहले एक अलग जाति बन जाती है। काम करके देवताओंको भरतोंके अनुकूल ईरानियों में भी पहले 'मोबेद' नामकी एक सन्तुष्ट करते है । सारांश, यह देख पड़ता जाति अलग हो गई थी। ज्यू लोगोंमें है कि हिन्दुस्तानमें ऋग्वेदके समय जब देवताके पुजारियोंकी जाति अलग हुई भारतीय आर्य आये, तब उनमें पेशेके थी, अर्थात् इस जातिके लोग अन्य कारण दो जातियाँ मौजूद थीं। परन्तु ये लोगोंके साथ शादी-ब्याह नहीं करते जातियाँ उस समय अन्य बन्धनोंसे जकड़ी थे। रोमन लोगोंमें भी, जिन लोगोंको न गई थीं, अर्थात् न तो उनके आचार- धार्मिक कृत्य करनेका अधिकार होता था, विचार विभिन्न थे और न उनमें बेटी- वे पेट्रिशियन लोग, अन्यान्य लोगोंके यहाँ व्यवहारकी या पंशंकी काई सरल रुकावट बेटी-व्यवहार नहीं करते थे । सारांश यह थी । क्षत्रियों और ब्राह्मणों की बेटियाँ पर- कि लोगोमें धार्मिक व्यवस्थाकं सम्बन्धका स्पर ब्याही जाती थी: और चन्द्रवंशी जाति-बन्धन पहलेपहल होता है, और क्षत्रियोंमसे कुछ क्षत्रिय लोग अपना