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महाभारतमीमांसा

- - १७४ 8 महाभारतमीमांसा है दी गई। यूनान और ईरानका भी यही सा भेद हो गया । वैश्यं कृषि-कर्म किया हाल था । सिर्फ हिन्दुस्तानमें ही यह फ़र्क करते थे, इस कारण उनका गोरारङ्ग बदल- इतना ज़बरदस्त था कि दोनों जानियोंका कर पीला हो गया। हवा और व्यासनके मिश्रण होना असम्भव हो गया और भेदसे क्षत्रियोंकी रङ्गतमें भी फर्क पड़ने दोनोंके बीच वाद शुरू हो गया जो अभी- लगा और लाल रङ्ग हो गया। ब्राह्मणोंकी तक नहीं मिटा है। तुलसीदासने अपने रङ्गत मूलकी आर्य बनी रही, अर्थात् वे समयका यह वर्णन किया है-वादहिं | गोरे ही रहे। यह सच है कि इसके लिये शुद्र द्विजनसे, हम तुमसे कछु घाटि। कई कारणोंसे अनेक अपवाद उत्पन्न होते जानहि ब्रह्म सो विप्रवर आँखि दिखा- हैं, नथापि साधारण नियम यह है कि वहिं डॉटि" अर्थात् , ब्राह्मणोंसे शुद्र ब्राह्मण गोरा, क्षत्रिय लाल, वैश्य पीला झगड़ते हैं कि हम तुमसे क्या कम है। और शुद्र काला होता है। इसी कारण वें आँखे तरेरकर कहते हैं कि ब्राह्मण तो ! चार युगोंमें विष्णुके चार रङ्ग बदलनेकी वह है जो ब्रह्मकां जाने। इस तरहका कल्पना होगई है। यदि काला ब्राह्मण और झगड़ा उसी समयसे चला आ रहा है गोगशद्र हो तो इस सम्बन्धमे हम लोगों- और आर्य लोगों में जो जानि-बन्धन उत्पन्न में जो भयङ्कर कल्पना है, उसका भी यही इश्रा. वह इन्हीं लोगोंके कारण और भी कारण है। इस प्रकार चातुर्वगर्य अर्थात् कड़ा हो गया और भिन्न भिन्न अनेक रङ्गमे निश्चित चार जातियाँ हिन्दुस्तानमें जातियाँ उत्पन्न हो गई। इसके बादका उत्पन्न हो गई। अब यहाँ देखना चाहिए इतिहास महाभारतसे अच्छी तरह मालुम कि इनमें विरोध किस तरह बढ़ता गया । हो जाता है। हिन्दुस्थानकी इस विचित्र शुरू शुरूमें जब आर्य लोग हिन्दु- परिस्थितिके जोड़की परिस्थिति इतिहासमें स्तान में आये, तब उनमें तीन ही जातियाँ केवल दक्षिण अफ्रिकामे ही उपजी हुई थी और बेटी-व्यवहारमै थोडीसी रोक- मजर आती है। वहाँ गोरे रङ्गवाले आर्यो- टोक थी; तथा ब्राह्मणोंको तीनों वर्णो मेसे का काले नीग्रो लोगों (हबशियों) से किसीकी बेटी ब्याहनेमें कोई मनाही सम्बन्ध पड़नेके कारण हिन्दुस्थानकी सी नहीं थी। फिर यह नियम था कि क्षत्रिय कुछ परिस्थिति उत्पन्न हो गई है। उससे लोग ब्राह्मणेतर दो वर्णों की बेटियाँ ले हम थोड़ा अन्दाज़ कर सकते हैं। सकते हैं और सिर्फ वैश्य एक वर्ण यानी शूद्रोंके कारण वर्णों की उत्पत्ति। ' वैश्यों में ही व्यवहार करें। जब चौथा शुद्र वर्ण समाजमें शामिल हुआ तब समाजमें __हिन्दुस्तानमें वर्ण और जाति शब्दोंका शुद्र वर्णकी बेटियाँ लेने न लेनेके विषयमै परस्पर जो निकट सम्बन्ध हुअा, उसका बड़े महत्त्वका झगड़ा उपस्थित हो गया। भी यही कारण है। पाश्चात्य देशोंमें जित अधिकांश लोगोंका साधारण रीतिसे और जेताका एक ही वर्ण होनेसे वर्णको उनकी बेटियाँ व्याह लेनेके विरुद्ध रहना कोई महत्त्व नहीं दिया जा सका । मामूली बात है। फिर भी वैश्योंका पेशा यहाँ हिन्दुस्तानमें उनकी रगतमें जमीन- खेती होने के कारण उनका और शूद्रोंका प्रासमानका अन्तर रहने के कारण रङ्गको विशेष सम्पर्क रहता था, और वैश्यको आतिका स्वरूप मिल गया। उनके सम्बन्ध- एक ही वर्णमें विवाह करनेका अधिकार सेवार्य-वंशी लोगोंमें भी रङ्गका थोड़ा- था. इस कारण उन लोगोंमें शद्रको