पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२०१

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  • वर्ष-व्यवस्था ।

१७५ बेटी ब्याह लेनेकी रीति बड़े ज़ोरसे चल प्रकट होता है कि पहले नियम कुछ पड़ी होगी। क्षत्रियोंमें इनसे कम और ढीला था। फिर वह सङ्कचित हो गया और ब्राह्मणोंमें तो बहुत ही कम रही होगी। महाभारतके समय यानी सौतिके समय मालूम होता है कि ऐसी स्त्रियोंसे जो दो वर्णों की स्त्रियोंसे उपजी हुई सन्तति- सन्तान हुई, उसकी रगत मिश्रित और बुद्धि का ही ब्राह्मणत्व माना गया। यह नियम कम रही होगी । पुराना नियम यह था चल निकला कि ब्राह्मण या क्षत्रिय जाति- कि खी चाहे जिस वर्णकी हो, पर उसकी की स्त्रीके पेटसे उत्पन्न ब्राह्मणको सन्तति सन्तानका वही वर्ण होता था जो कि पति- ब्राह्मण मानी जायगी। इसके बाद इसमें का हो, अर्थात् क्षत्रिय अथवा वैश्य स्त्रीके भी संशोधन हो गया और याज्ञवल्क्य आदि पेटसे उपजी हुई ब्राह्मणकी सन्तान स्मृतियों में कहा गया है कि जब ब्राह्मण- ब्राह्मण ही मानी जाती थी। जिस समय को ब्राह्मण स्त्रीसे सन्तान होगी, तभी वह आर्य लोग पहलेपहल आये, उस समय ब्राह्मण समझी जायगी। सारांश यह कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्योंके बीच रङ्ग अनुशासन पर्वका पहला वचन बहुत या बुद्धिमत्तामें अधिक अन्तर न था और करके उस नियमका दर्शक है जो कि उस खान-पान आदिमें कुछ भी फर्क न था। समय प्रचलित था जब आर्य लोग हिन्दु- इस कारण ऊपरवाला नियम ठीक ही स्तानमें आये थे । उस समयका तात्पर्य यह था । अब प्रश्न हुआ कि शद्रोंकी बेटियाँ था, कि ब्राह्मणको तीनों वर्गों की बेटी लेनेका ध्याहने लगने पर भी वही नियम रक्वा अधिकार है और उनके गर्भसे उसको जो जाय क्या किया जाय? सन्तान हो वह ब्राह्मण ही है। इसी नियम- पूर्वकालमें सचमुच इस प्रकारका का उपयोग करके ब्राह्मण यदि शुद-कन्या- नियम था। महाभारतके एक अत्यन्त को ब्याह ले, तो उसकी सन्तान ब्राह्मण महत्त्वके श्लोकमे यह बात मालम होती मानी जाय या नहीं ? मत्स्यगन्धाके गर्भ- है। अनुशासन पर्वके ४४ वें अध्यायमै से पराशर ऋषिके पुत्र व्यास महर्षि कहा गया है कि ब्राह्मण तानो वाँकी ऐसे उत्पन्न हुए जो ब्राह्मणों में अत्यन्त बेटी ले सकता है और उसको इनसे जो बुद्धिमान और श्रेष्ट थे। क्या इसीका सन्तति होगी वह ब्राह्मण ही होगी। अनुकरण किया जाय ? अथवा 'न देव- त्रिषुवर्णेषु जातो हि ब्राह्मणाद्ब्राह्मणो भवेत्। चरितं चत' के न्यायसे व्यास ऋषिके स्मृताश्च वर्णाश्चत्वारः पञ्चमो नाधिगम्यते॥ उदाहरणको छोड़कर, शदा स्त्रीसे उत्पन्न __ यहाँ पर यह नियम बतलाया गया है । सन्तति कम दर्जेकी मानी जाय ? यह कि तीनों वर्गों की स्त्रियोंसे ब्राह्मणको ब्राह्मण प्रश्न बड़े झगड़ेका और वाद-विवादका ही होगा; पर आगे चलकर यह नियम हुश्रा होगा। यह सहज ही है कि इसका बदल गया है। यह बात ध्यान देने योग्य फैसला अन्त में शुद्रा स्त्रीके प्रतिकूल हुआ। है कि महाभारतमें ही यह नियम बदला इतनी भिन्न परिस्थितिके वर्गों की सन्तति हुआ मिलता है । (भा० अनुशासन० अ० कभी तेजस्वी नहीं हो सकती। अतएक ४८) में, सिर्फ दो ही स्त्रियों-ब्राह्मण और यही तय हो गया कि ब्राह्मण शूद्र-कन्या- क्षत्रिय-से ब्राह्मण-सन्ततिका उत्पन्न होना को ग्रहण न करें। यह तोमहाभारतमें भी कहा गया है । मनुस्मृतिमें जो नियम है, कहा गया है कि-"कई लोगोको यह यह यही सङ्कचित नियम है। इससे मह नियम मान्य नहीं ।” परन्तु यहाँ यह बस्न