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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२१

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प्रहलितिकी उपपत्ति और सर्वतोभद्र चक्र १३४-१३६, महाभारतमें दूसरी प्रह- लितियोंका उल्लेख १३७-१३८, महाभारतके प्रायः संख्या-विषयक श्लोक गूढ़ या कूट हैं १३६. सारांश यह कि भारती युद्धका समय ईसासे पूर्व सन् ३१०१ है १४०, पाँचवां प्रकरण - इतिहास किन लोगोंका है-पृ० १४१-१६७ ऋग्वेदके भरत भारतके भरतसे भिन्न हैं, दुष्यन्त-पुत्र भरतका नाम भारत- वर्षमें नहीं है, हिन्दुस्तानको भारतवर्ष नाम देनेवाला स्वायंभुव मनुका वंशज भरत दूसरा है १४१, ऋग्वेदके भरत सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं, उनके ऋषि वशिष्ठ, विश्वामित्र और भरद्वाज है १४१-१४२, महाभारतमें भी यह उल्लेख है १४२, ऋग्वेदमें ययाति- पुत्र यदु, तुर्वश, अनु, द्रुह्य और कुरुका उल्लेख है १४३, ऋग्वेदका दाशराज्ञ युद्ध भारती युद्ध नहीं है १५३, चन्द्रवंशी आर्य आर्योंकी दूसरी टोलीके थे, सेन्सस रिपोर्ट- का अवतरण और भाषाभेद १४४, ऋग्वेदमें पुरुका उल्लेख १४५, ऋग्वेद और महा- भारतमें यदु १५५-१४६, ऋग्वेद और महाभारतमें पाश्चाल, सोमक और सहदेव १४६, अनु और दुइ १४७, ययातिके चार पुत्रोंको श्राप १५८, सूर्यवंश और चन्द्रवंश १४८, ब्राह्मणकाल और महाभारतकालमें चन्द्रवंशियोका उत्कर्ष १४-६, उनके राज्य १४६, पाण्डव अन्तिम चन्द्रवंशी शाखाके है १४६-१५०, नागलोग भारतवर्ष के मूलनिवासी थे १५१, उनका खरूप प्रत्यक्ष नागोंका सा नहीं था ५२, नाग और सर्प दो भिन्न जातियाँ ५२, युद्ध में विरोधी दलके लोग १५३-१५४, हिन्दुस्तानमें आर्य हैं, वेद महाभारत और मनुस्मृतिका प्रमाण १५४-१५६, शीर्षमापन शास्त्रका प्रमाण १५६-१५६, युक्तप्रदेशके वर्तमान मिश्र आर्य, १५६-१६१, मगठे मिश्र आर्य हैं, शक नहीं १६१, राक्षस १६२, पाण्ड्य • ६३, संसप्तक १६४, गणश्रादि पहाड़ी जातियाँ १६४- १६५, भारतीय पार्योका शारीरिक स्वरूप १६५-१६६, वर्ण १६६-१६७, श्रायु १६८, छठा प्रारण - वर्णव्यवस्था, प्राश्रमव्यवस्था और शिक्षा। (१) वर्णव्यवस्था-पृ० १६९-१९९ वर्णका लक्षण १६४, वर्णव्यवस्था पुरानी है १७०, ब्राह्मण और क्षत्रिय १७२-२७२, वैश्य और शूद १७३, शुद्रोंके कारण वर्णों की उत्पत्ति १७४-१७७, वर्णसंकरताका डर १७७, वर्णके सम्बन्ध में युधिष्ठिर नहुषसंवाद १७८-१७६, भारती आर्योंकी नीति-मत्ता १८०- १८१ ब्राह्मणोंकी श्रेष्ठता १८१-२२, चातुर्वर्णकी ऐतिहासिक उत्पत्ति १८२-१८४, महा- भारतका सिद्धान्त १४-१८५, विवाहबन्धन १८५-२८७, पेशेका बन्धन १८७, ब्राह्मणों के व्यवसाय १८७-१६०, क्षत्रियों के काम १६०-१६२, वैश्योंके काम १६२, शूद्रोंके काम १६३, संकर जातिके व्यवसाय १६३-१६६, चातुर्वर्ण्य और म्लेच्छ १६६, वाहीक देश- की गड़बड़ी १६६, सारांश १६७-१६८ (२) आश्रम व्यवस्था-१९९-२०७ प्राश्रमकी उत्पत्ति, वर्णन और अस्तित्व १६६-२०२, संन्यास किसके लिए विहित है २०२-२०४, संन्यास धर्म २०४-२०६, गृहस्थाश्रमका गौरव २०६-२०७