पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२०

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( ४ ) १०३, पुराणोंकी सूचनाएँ और पीढ़ियाँ असम्भवनीय है १०४, महाभारतसे विरोध १०५-१०६, वैदिक साहित्यका प्रमाण १०६, ऋग्वेदमें देवापीका सूक्त १०७, भारतीय युद्ध ऋग्वेदके लगभग १०० वर्ष बाद हुआ है १०७, ऋग्वेदमेका "सोमकः साहदेव्य" पाञ्चाल दुपदका पूर्वज था; इससे भी वही समय निश्चित होता है १०७, मेकडानल्ड मादिका यह मत है कि भारती युद्ध यजुर्वेदसे पहलेका है ; शतपथ ब्राह्मणमें जन्मेजय परीक्षितका उल्लेख है, इससे भी भारती युद्ध शतपथसे पहलेका निश्चित होता है १०८, भारतमें भी शतपथ ब्राह्मणके भारती-युद्ध के बाद रचे जानेका उल्लेख है १०६, "कृत्तिका ठीक पूर्वमें उदय होती है" इस वाक्यके आधार पर दीक्षितने शतपथका समय निश्चित किया है ; इससे भी गणितके द्वारा ईसासे पूर्व ३००० का समय हो निश्चित होता है १०६-११२, यह उल्लेख प्रत्यक्ष स्थिति देखकर किया गया है, केवल स्मरणके आधार पर नहीं है ११२, दूसरे प्राचीन देशोंकी अवस्था देखते हुए यह समय ठीक हो सकता है ११३, पाश्चात्य विद्वानोंने डरते हुए वैदिक साहित्यका जो समय निश्चित किया है वह और हमने विशेष युक्तिपूर्वक जो समय निश्चित किया है उसका अन्तर हजारोंको संख्यातक पहुँचता है ११४-११५, वेदान ज्योतिषका प्रमाण ११५, जरासन्धका यज्ञ ठीक शतपथमें बतलाया हुआ पुरुषमेध ही था ११६, तीसरा वैदिक प्रमाण-तके प्रकरणसे सिद्ध होता है कि भारतवर्ष में युद्ध के समय चान्द्रवर्ष गणना प्रचलित थी ११७, भीष्मका यह निर्णय ठीक था कि पाण्डवोंने चान्द्रवर्षके अनुसार वनवासका समय पूरा किया ११८, हिन्दुस्थानमै चान्द्रवर्ष कब प्रचलित था ११६, दूसरे देशोंके वर्ष ११६, तैत्तिरीय संहिताके समय चान्द्रवर्ष चलता था और वेदाङ्ग ज्योतिषके समय वह बन्द हुआ १२०, चान्द्रमासोंके भिन्न भिन्न नाम १२१-१२२, मार्ग शीर्ष आदि महीनों- के नाम वेदाङ्गमें नहीं हैं। उनका प्रचार ईसासे लगभग दो हजार वर्ष पहले हुआ और उनके प्रचारके उपरान्त चान्द्रवर्ष आपसे आप बन्द हो गये १२२, टोकाकारने चान्द्र. वर्षकी “वर्धापनादौ” जो व्यवस्था की है वह भ्रमपूर्ण है १२२, पाण्डवोंने चान्द्रमानसे वनवासकी शर्त पूरी की १२२-१२४, आश्विनमें जूश्रा हुआ और ज्येष्ठ में पाण्डव प्रकट हुए, इसी कारण सौर वर्षके मानसे दुर्योधनको शंका हुई, पाण्डव चान्द्रवर्ष ही - मानते थे १२५-१२६, भारतमें बतलाई हुई ग्रहस्थितिके आधार पर युद्धका समय निकालनेका प्रयत्न व्यर्थ है १२६, भिन्न भिन्न विरोधी वचन १२७, कूट और विरोधमें- से किसको ठीक माना जाय १२८, युद्धके पहले कार्तिककी अमावस्याको सूर्यग्रहण हुआ था १२८, जयद्रथके वधके दिन सूर्यग्रहण नहीं था १२६, उक्त तीनों समयोंकी कार्तिकी अमावस्याके स्पष्ट ग्रह १२६-१३०, ईसासे पूर्व सन् ३१०१ की जनवरी में सूर्य- ग्रहण हुआ था ।३०, भिन्न भिन्न ग्रहोंके बतलाये हुए दो दो नक्षत्र १३१, गणितसे निकलनेवाले नक्षत्रोंके साथ इस प्रहस्थितिका मेल नहीं मिलता १३२, प्रायः यह दधिह्न काल्पनिक हैं और गर्गसंहितासे लिये गये हैं १३२, दो दो नक्षत्र अलग अलग रष्टिसे ठीक हो सकते हैं १३२, मोड़कने जो सायन और निरयण नक्षत्र मानकर युद्धका समय ईसासे पूर्व सन् ५००० दिया है वह भ्रमपूर्ण है १३२-१३३, पहले लोग सायन और निरयणका भेद ही नहीं जानते थे, पहले नक्षत्र कृत्तिकादि थे, बिना भेदविह दिखलाये दो दो नक्षत्रोंका उल्लेख नहीं हो सकता १३३-२३४, धोंके द्वारा मित्र