वर्ण-व्यवस्था। पेशा करते थे । आपत्तिके समय भी म्लेच्छ रहे होंगे । इस प्रश्नका विचार क्षत्रियको याचना न करनी चाहिये- स्थलान्तरमें किया जायगा । किन्तु यह इस धारणाके कारण, और याचनाको बात कह देनी चाहिये कि आर्य प्रजाके ब्राह्मणोंने स्वयं अपना रोज़गार मान देशमें क्षत्रिय हो राज्य करते थे। ब्राह्मण लिया था इस कारण भी, प्रतिलोम-व्यव- या वैश्यके राज्य करनेका उदाहरण महा- सायकी दृष्टिसे वह क्षत्रियोंके लिये खुला भारतमें नहीं है। एक उपनिषद्म शुद्र न था । क्षत्रियोंके लिये, सिर्फ विपत्ति- राजाका वर्णन हैं और निषादोंके अधि- कालमें, वैश्य-वृत्ति कर लेनेको स्वाधी- पति गुहका वर्णन महाभारतमें है। किन्तु नता थी । अर्थात् क्षत्रिय चाहे तो गोरक्षा ऐसा प्रतीत होता है कि ये छोटे छोटे करने लगे चाहे खेती । यह बात यद्यपि राज्य उन्हीं लोगोंके अर्थात शूद्रोंके और निश्चयपूर्वक नहीं कही जा सकती कि निषादोंके ही होंगे। राज्य करनेका हक महाभारत कालमें खेती करनेवाले क्षत्रिय क्षत्रियोंका ही था, उस पर महाभारतके थे या नहीं, तथापि उनके अस्तित्वका समय ब्राह्मण या वैश्योंने दखल न किया अनुमान करनेके लिए स्थान है । युद्धके था। पहलेपहल इस अधिकारको चन्द्र- अतिरिक्त क्षत्रियोंका काम प्रजा-पालन गुप्त या नवनन्दने हथियाया। चन्द्रगुप्त- करना था। राज्य करना क्षत्रियों का काम के समय अथवा उसके पश्चात् शीघ्र ही है। यही उनका विशेष अधिकार है । यह महाभारत बना । यह साहजिक ही है कि तो प्रसिद्ध ही है कि उस समय छोटे उसमें 'नन्दान्तं क्षत्रियकुलं' इस वचन- छोटे राज्य थे। इन छोटे छोटे राज्योंके का-अगले पुगणांकी तरह-कहीं उल्लेख अधीश्वर क्षत्रिय ही थे । महाभारतके नहीं है। महाभारततक परम्परा क्षत्रिय समय अथवा उससे भी पूर्व, बहुत करके, : गजाओंकी ही थी । यह परम्परा सभी राजा क्षत्रिय थे। क्षत्रियोंके सिवा आगे चलकर जो बिगड़ी तो फिर न अन्य वर्गों को राज्य करनेका अधिकार न मुधरी । चन्द्रगुप्तके राज्य हथिया लेनेपर था। आर्य देशमें अन्य वर्णके राज्य करने- अनेक शुद्र और ब्राह्मण राजा हो गये । का उदाहरणतक महाभारतमें कहीं नहीं फिर शक-यवन हुए, इसके बाद आन्ध्र । है। लिखा है कि अश्वमेधके समय अर्जुनने सागंश यह कि, गज्य, निदान सार्व- आर्य राजाओं और म्लेच्छ राजाओंको भौमत्व, फिर क्षत्रिय-कुलमें हिन्दुस्थानके जीत लिया। नहीं कह सकते कि उस इतिहासमें नहीं आया । फिर भी क्षत्रियों समय हिन्दुस्थानमें म्लेच्छ राजा कौन के छोटे छोटे राज्य हिन्दुस्थानमें सदासे थे कौन थे। ये म्लेच्छ राजा बहुत करके ही । “दानमीश्वरभावश्च क्षात्रकर्म स्वभाव- हिन्दुस्थामके बाहरके थे। उस समय जम्” इस गीता-वाक्यके अनुसार राज्य उत्तर ओरके शक-यवनोंकी संज्ञा म्लेच्छ करनेकी वृत्ति क्षत्रियों में इतनी सहज और थी; यही नहीं, बल्कि दक्षिणके आन्ध्र, उनकी नस नसमें भरी हुई है कि प्राज- द्रविड़,चोल और केरल वगैरहकी भी यही कल भी क्षत्रियोंका बिना राज्यके समा. संशा थी: अर्थात् उस समयतक इनका धान नहीं होता । फिर चाहे वह राज्य अन्तर्भाव आर्यावर्नमें न था और इन ! बहुत ही छोटा-एक ही गाँवका–क्यों न देशों में आर्योकी बस्तियाँ भी न थी। ऐसे हो। युधिष्ठिरकी माँग इसी सहज प्रवृसिके देशों में प्रजा भी म्लेच्छ और राना भी अनुसार थी । उसकी सबसे अन्तिम
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