पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२२०

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महाभारतमीमांसा

२६४ ॐ महाभारतमीमांसा इनका पेशा था। जिसने महाभारतकी | इस दृष्टिसे वेदोंके नीचे जो पुराण हैं कथा सुनाई है, वह लोमहर्षण सूतका| उनके अध्ययन करनेका अधिकार सूतको बेटा था। इसे पौराणिक भी कहा है। दिया गया होगा और क्षत्रियका पेशायन पुराणों में राजाओंकी वंशावलियाँ होती था: वह सूतको क्षत्रिय पिताके नातेसे हैं। राजाओं और ऋषियोंकी* वंशावली मिल गया होगा । अर्थात् सूतको सारथी- रक्षित रखनेका काम सूत-पौराणिकोका का पेशा सिखाया गया होगा। दक्षिण था। आजकलके भाट भी इसी पेशेके हैं। अफ्रिकामें नीग्रो स्त्रियोंसे युरोपियनोंको ये भी वंशावलीको रट लेते हैं और जो औलाद हुई, उसके सम्बन्धमें भी इसी राजाओंकी स्तुति करते हैं। भाटोको नाति ढंगकी व्यवस्था की गई है और उन्हें यही ब्राह्मणोंकी ही तरह पूज्य मानी गई है। पशा कोचवानी करनेका और घोड़ेकी भागवतकी एक कथामें जिस प्रकार कहा है नौकरी करनेका सौंपा गया है । इसी उस प्रकार लोमहर्षणको ब्राह्मण मानने- तरह हिन्दुस्तानमें भी यूरोपियन पुरुषोसे की आवश्यकता नहीं: क्योंकि सूतोको भी | एशियाई स्त्रियोंको जो युरेशियन सन्तान तो घेदका अधिकार था । सूत अधिरथिका हुई, उसको युरोपियनकी अपेक्षा हलके पुत्र होने पर भी कर्ण वेद पढ़ता था। दरजेका क़लमका पेशा मिला है । तात्पर्य, ऐसा महाभारतमें वर्णन है। जब कुन्ती | आजकलके यूरोपियन लोग वर्तमान उससे मिलने गई तब वह भगीरथो-किनारे | हिन्दुस्तानके ब्राह्मण क्षत्रिय हैं। इनके ऊर्यवाहु करके वेदघोष कर रहा था शूद्र स्त्रीसे जो सन्तान हुई, उसे उन्होंने (उद्यो० अ० १४४) । ब्राह्मण और क्षत्रिय, अपनी बगबर्गका नहीं समझा । किन्तु दोनों उच्च वणीसे सूत जातिकी उत्पत्ति उन लोगोंने इस सन्तानकी एक अलग होनेके कारण वह ब्राह्मण जातिके समान नई जाति बना दी, और उनको स्पष्ट मान ली गई होगी; और आजकल भी रीतिसे तो नहीं पर अप्रत्यक्ष रीतिसे एक राजपूत राजाओंके राज्यमें ब्राह्मण और अलग व्यवसायमें लगा दिया है । इस भाटका एकसा मान है। उदाहरणसे पाठक भली भाँति समझ सूतोंका एक पेशा और मालूम होता जाएँगे कि प्राचीन कालमें हिन्दुस्तानके है। वे सारथ्य भी करते थे। रथको पार्यों में मिश्र वर्णकी अलग जाति क्यों हाँकना सूतका काम था। उसका नाम हुई और उसका रोज़गार अलग कैसे अधिरथी भी था। कर्ण अधिरथीका बना दिया गया। बेटा था; अर्थात् वह एक सारथीका पुत्र जो हो: वैश्यके ब्राह्मण स्त्रीसे उपजी था; और इसी कारण द्रौपदीने उसे जय- हुई सन्ततिका नाम वैदेह था। अन्तःपुरकी माल नहीं पहनाई। सतके पेशेका निर्णय लियोकी रक्षा करना इसका काम था। करते समय उस ज़मानेकी परिस्थिति पर इसी प्रकार क्षत्रिय स्त्रीमें वैश्य पुरुषसे विचार करके, माँ-बाप दोनोंके पेशेके उत्पन्न सन्ततिका नाम मागध हुआ । इन अनुसार, उसका व्यवसाय निश्चित किया मागधोका काम था राजाकी स्तुति करना। गया होगा । ब्राह्मणका पेशा बुद्धि का था, इन तीनों उच्च वर्णके प्रतिलोम विवाहसे उपजी हुई सन्तानकी सूत, वैदेह और • भादि पर्व में सतसे शौनकने पहले यही कहा कि मागध जातियाँ मानी गई:और राजाओंके भूयालकी वशावली सुनाओ। स्तुति-गान गायन करना इनका पेशा