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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२१९

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  • वर्ण अवस्था ।

न च वैश्यस्य कामःस्थानरक्षेयं पशुनिति। स्वाहाकारवषट्कारी मन्त्रः शूद्रे न विद्यते। वैश्येचेच्छति मान्येनं रक्षितव्याः कथचन ॥ तस्माच्छूद्रःपाकयझर्यजेतावतवान स्वयम्॥ (२७ शां० अ०६०)! (३८ शां० अ०६०) सौतिके समय इसमें थोड़ा सा उलट- शद्रको स्वाहाकार, वषट्कार और फेर हो गया होगा और वैश्योंकी प्रवृत्ति वेदमन्त्रका अधिकार नहीं है । इस केवल व्यापार अथवा वाणिज्यकी ही अध्यायमें यह बात भी कह दी है कि तरफ़ रह गई होगी। शूद्रोको ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेदका शूद्रोंका काम। अधिकार नहीं है। 'यजन,दान और यक्षका अब शुद्रौके कामका विचार करना अधिकार सब वौँको है। श्रद्धायज्ञ सब है। प्राचीन कालमें शुद्रोकी स्थिति सिर्फ वों के लिये विहित है', इत्यादि वचनोंसे दासोकी थी। यह तय हो चुका था कि देख पड़ता है कि आर्य धर्मकी अधिकांश ये तीनों वर्णोकी सेवा किया करें और क्रियाओंका-श्राद्ध आदितकका-अधि- इसीके अनुसार वे सेवा ही किया करते कार शद्रोंको महाभारतके समयसे पहले थे। उन्हें अध्ययन अथवा यजन करनेका ही मिल गया था। शुद्र यानी मिरे दास- अधिकार न था: न सिर्फ यही, किन्तु की परिस्थितिसे निकलकर जब शूद्रोंको उन्हें द्रव्य सञ्चय करनेकी भी मनाही स्वाधीन व्यवसाय, खेती वगैरह करनेका थी । उन्हें भरपेट भोजन देना और पहनने-अधिकार मिला और वे द्रव्य-सम्पादन के लिए फटे पुराने कपड़े दे देना ही करने लगे, तब यह स्थिति प्राप्त हुई। किन्तु मालिकका कर्त्तव्य था। आगे यह स्थिति त्रैवर्णिक आर्योंने अपने वैदिक कर्मका बदल ही गई होगी। उत्तरोत्तर जैसे जैसे अधिकार शुद्रोको नहीं दिया। सिर्फ तीन आर्योकी बस्ती दक्षिणकी ओर घटती गई. ही वर्ण अध्ययन करनेके अधिकारी थे; वैसे ही वैसे शद्रोंकी संख्या बढ़ती गई अर्थात वैदिक समन्त्रक क्रियाओंका सम- होगी। इसके सिवा ये लोग खेती अधि- झना उन्हींके लिये सम्भव था। वैदिक कतासे करने लगे होंगे। दक्षिणकी ओर- कालसे लेकर महाभारतके समयतक के राष्ट्रमें वैश्य प्रार्य कम थे इसलिये शूद्रोंका पेशा और कर्मका अधिकार बहुत खेतीका काम शुद्रोंको अधिकतासे कुछ उच्च कोटिका हो गया। करना पड़ा। इस तरह उनकी परिस्थिति । बदल गई। इसीसे शुद्रोंको धन प्राप्त : सङ्कर जातिके व्यवसाय । सकर जातिक करनेका अधिकार मिल गया। शान्ति भिन्न भिन्न वर्गोंके सङ्करसे जो पर्वके ६० वें अध्यायमें कहा गया है कि जातियाँ उपजी, उनके जो विशिष्ट कर्तव्य राजासे अनुमति प्राप्त करके शद्र धन- अथवा व्यवसाय थे उनका भी विचार सञ्चय कर सकता है: किन्तु यह अनुमति करना चाहिये । प्रतिलोम विवाहसे बिना शाके भी सदाके लिये मिल गई। उत्पन्न प्रथम जाति मूनकी थी। ब्राह्मणी धीरे धीरे उन्हें द्रव्यके साथ ही यश- स्त्रीसे क्षत्रिय पति द्वारा इसकी उत्पत्ति यागादि करनेका अधिकार मिला और बतलाई गई है (अनुशासन पर्व अध्याय दान देनेका भी अधिकार मिल गया। ४८)।यहाँ मृतोंका पेशा गजाओंकी स्तुति शर्त यह थी कि शुद्र यशिय बतका पाच-: करना बतलाया है। जान पड़ता है कि रण न करके अमन्त्रक यज्ञ करें। पुगणोंका अध्ययनकर कथा सुमामा भी