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- महाभारतमीमांसा ॐ
अनेक अत्यन्त निन्द्य जातियाँ गाँवके कुछ आर्य देश नहीं हो सकता। यह देख बाहर रहें, यह नियम तब भी था और पड़ता है कि महाभारत या सौतिके इस समय भी है। महाभारतमें वर्णसङ्कर- समय मध्यदेशमें वर्ण-व्यवस्थाका चलन का जो भयङ्कर निन्द्यत्व वर्णित है, उसकी जोरोंसे था। कर्णपर्वमें, कर्णने शल्यकी कल्पना ऊपरके विवेचनसे हो सकेगी। निन्दा करते समय जो भाषण किया वैसे तो सङ्कर जातिकी संख्या अनन्त है, उस भाषणसे अनुमान किया कही गई है, तथापि मुख्य मुख्य १५ हैं। जा सकता है कि हिन्दुस्तानके किस इन्हीं में सब भेदों-उपभेदोका अन्तर्भाव किस भागमें वर्ण-व्यवस्था पूर्णतया है। उन पन्द्रहके नामका खुलासा नहीं प्रचलित थी । उक्त पर्वके ४५ वें अध्यायमें है, तथापि त्रैवर्णिक प्रतिलोम जातिमें कहा गया है कि मत्स्य, कुरु, पाञ्चाल, सूत, वैदेह और मगध, तथा अनुलोम मिष और चेदि आदि देशोंके लोग जातिमें अम्बष्ठ और पारशव अायौंकी निरन्तर धर्मका पालन करते हैं; परन्तु सन्तान समाजमें शामिल थीं । निषाद, मद्र देश और पाञ्चनद देशके लोग चाण्डाल और पुक्कस श्रादि बाह्य एवं धर्मका लोप कर डालते हैं । इसीके बाह्यतर अनार्य जातियाँ थीं। इनमें भी पूर्व यह भी कहा गया है कि-"वाहीक आर्य जातिका थोडासा मिश्रण रहा होगा। देशमें पहले मनुष्य ब्राह्मण होता है. फिर इसीसे इनके सम्बन्धमै यह कल्पना थी क्षत्रिय, इसके बाद वैश्य, तब शद्र और कि ये म्लेच्छ जातिसे विभिन्न थीं। इनकीइसके बाद नापित । इस तरह होते होते बस्ती आर्यावर्त में ही थी और वे अन्य यद्यपि वह नाई हो गया तथापि फिर वह वर्णों के सिलसिलेमें थीं । उनका धर्म ब्राह्मण होता और ब्राह्मण हो चुकने पर सनातन धर्मसे अलग न था और उन सब उसीका गुलाम हो जाता है।" इस वर्णन- के लिये सनातन धर्म के मुख्य नियम लागू से पञ्जाबमें वर्ण-व्यवस्थाके कुछ शिथिल थे। यद्यपि वे चातुर्वगर्यके बाहर थे, फिर हो जानेका अनुमान होता है। इसमें भी उससे बिलकुल अलग न थे। उनको सन्देह नहीं कि इस भाषणमें अतिशयोक्ति अनार्य तो कहा गया है पर वे म्लेच्छ न है, तथापि कुरुत्रोंमें वर्ण-व्यवस्थाका स्वरूप थे। आर्य शब्द जातिवाचक है और त्रैव- जितना कड़ा था उतना पञ्जाबमें न रहा र्णिक अर्थमें है और उनका बोधक है कि होगा। और मज़ा तो यह है कि खान- जिनके आर्य संस्कार होते हैं; अर्थात् ये . पानके मामलेमें पञ्जाबमें अब भी कोई निन्द्य जातियाँ त्रिवर्णके बाहर थीं और विशेष बन्धन नहीं। इसके सिवा महा- इनका आचरण अशुद्ध था। फिर भी ये भारतमें यह भी कह दिया गया है कि जातियाँ न तो त्रिवर्णसे कोसों दूर थी कारस्कर, महिषक, कालिङ्ग, केरल और और न उनके समाज या धर्मसे बिलकुल कर्कोटक आदि दुर्धर्मी लोगोंसे भी सम्पर्क ही अलग थीं । अस्तु: हिन्दुस्थानकी न करना चाहिये। इनमेंसे कई देश दक्षिण- समाज-व्यवस्थाका एक प्रधान श्रङ्ग चात- की श्रोरके हैं। प्रतीत होता है कि इन पर्य-व्यवस्था है। मनुस्मृतिमें स्पष्ट कहा | देशोंमें उस समयतक पार्योंकी बस्ती कम गया है कि जहाँ चातुर्वरार्यकी व्यवस्था थी,खूब न हो पाई थी। शायद, उस समय, नहीं है वह म्लेच्छ देश है: फिर वहाँवाले । ये देश जैन और बौद्ध धर्मकी छाया तले अगर आर्य भाषा बोलते हो तो भी वह बहुत कुछ आ गये होंगे। यह बात तो