पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२२३

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8 वर्ण-व्यवस्था । * २६७ लिखी ही जा चुकी है कि इन धर्मोंने वैश्य ही मानी जाने लगी थी। इससे जातिभेदको आपही तोड़ डाला था । वैश्य वर्णमें थोडासा बट्टा लग गया। फिर भी हिन्दुस्तानमें चातुर्वर्ण्य-व्यवस्था- क्षत्रियोंका भी यही हाल हुा । ब्राह्मणोंने की जो पूर्णतया प्रबलता हो गई थी, उसकी शद्रा स्त्रीकी सन्तानकी अलग जाति कर छायाका हिन्दुस्तानके अन्य देशोंमें न दी। इस अनुकरणके आधार पर, धीरे फैलना असम्भव था। इस कारण, धीरे धीरे, अन्य अनुलोम-वर्णकी जातियाँ हो धीरे, हिन्दुस्तानके सभी भागोंमें चातु- गई । प्रतिलोम विवाहके सम्बन्धमें पर्य-व्यवस्था प्रबल हो गई और तेज़ीसे अथवा सन्तानके विषयमें बहुत ही घृणा अमलमें आ गई । पञ्जाबका सम्पर्क थी: इस कारण उस जातिके विषयमें, म्लेच्छ देशोंके साथ विशेषतासे था, इस स्वासकर शद्रसे उत्पन्न सन्तानके विषयमें, कारण वहाँ उस व्यवस्थामें थोड़ी शिथिलता अत्यन्त निन्द्यत्व माना गया । परन्तु सूत, थी। यह तो देख ही लिया गया है कि वेदेह और मागध ये आर्योत्पन्न सङ्कर वह शिथिलता व्याह-शादी, खान-पान | जातियाँ ऊँचे दरजेकी समझी गई । इन अथवा रोज़गारके सम्बन्धमें थी। भिन्न भिन्न वर्गों के पेशे भी अलग अलग निश्चित कर दिये गये। ब्राह्मणोंका विशेष सारांश । व्यवसाय अध्यापन, याजन और प्रतिग्रह हिन्दुस्तानकी वर्ण-व्यवस्थाका स्वरूप माना गया: युद्ध और राज्य करना क्षत्रियों और उसका इतिहास इस प्रकारका है। का पेशा हुआ: कृषि, गोरक्षा और वाणिज्य सारांश यह है कि हिन्दुस्तानमें जब वैश्यका व्यवसाय, तथा शद्रका व्यवसाय प्राचीन आर्य लोग आये तब उनमें ब्राह्मण । दास्य निश्चित हुआ। किन्तु आपत्तिके और क्षत्रिय दो पेशेकी जातियाँ थीं। समय अपने अपने वर्णसे नीचेवाले वर्ण- शादी-ब्याहका उस समय कोई बन्धन न का पेशा करके गुज़र कर लेनेकी स्वाधीनता था । पञ्जाबमें बस्ती होने पर वैश्य अर्थात् थी: इसलिये कुछ ब्राह्मण-क्षत्रिय किसान खेती और गो-पालन करनेवाली तीसरी भी हो गये और कुछ क्षत्रिय वैश्य- जाति बनी। फिर शीघ्र ही यहाँके पूर्व व्यापारी हो गये। वैश्योंने खेती और निवासियों से, शद्र जाति आर्योके | गो-पालन छोड़कर सिर्फ व्यापार ही समाजमें शामिल हो गई। उसका रङ्ग किया। मिश्र जातियोंके भी भिन्न भिन्न काला और ज्ञानशक्ति तथा नीति कम व्यवसाय स्थिर हो गये। महाभारतके होनेके कारण वर्ण शब्दको जातिवाचक ज़मानेका यही संक्षिप्त निष्कर्ष है। महत्त्व प्राप्त हुआ। शद्र स्त्री ग्रहण करने अब, संक्षेपमें, यह भी देखना ठीक लगनेसे (मध्यदेशमें शद्रोंकी आबादी खूब होगा कि महाभारत-कालके पश्चात् वर्ण- रही होगी, और यहाँके नाग लोगोंको व्यवस्थाका स्वरूप किस प्रकार बदला । स्त्रियोंका रूप भी अच्छा होगा) वर्णों की इससे, महाभारतके समय जैसी व्यवस्था भिन्नता और भी कायम हो गई। वैश्य रही होगी, उसका अच्छा शान होगा। लोग खेती करते थे और शृद्रोंसे उनको जाति-व्यवस्थाके विरुद्ध बौद्ध-धर्मका हमेशा काम पड़ता था: इस कारण उन्होंने कटाक्ष था, इससे जाति-बन्धनमें बहुत शूद्रा स्त्रियोको अधिकतासे ग्रहण किया गोलमाल हो गया : इस कारण जब हिन्दु- और इस जातिकी स्त्रियोंकी औलाद भी । धर्मके दिन अच्छे हुए तब जाति-बन्धनक