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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२४

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मगर ४०६, आर्यावर्तके लोगोंकी सूची ४१०. दक्षिण देशके लोगोंकी सूची ४५१, उत्तर मोरके म्लेच्छ ४११, नदियोंकी सूची ४१२ । तेरहवाँ प्रकरण -- ज्योतिर्विषयक ज्ञान-पृ ४१४-४३१ २. नक्षत्र ४, कृत्तिकादि गणना ४१५, चन्द्रसूर्यकी नक्षत्रोमेसे गति ४१६, अधिक माम ४१६, कालविभाग ४१७, पृष्ठय और अठवाडेका अभाव ४१८, दिनोंके नक्षत्र ४१८, तिथि ४१६, श्रमान्त और पौर्णिमान्त मास ४१६, क्षयतिथि और मास ४२०, ऋतु ४२२, उत्तगयण ४२३, चतुर्युग ४२४, युगमान ४२५, कल्प ४२७, मन्वन्तर ४२७, ग्रह ४२८, राहु ४२६, प्राकाशका निरीक्षण ४३०, ज्योतियंत्र ४३१, जातक ४३१ । चौदहवाँ प्रकरण-साहित्य और शास्त्र-पृ० ४३२-४४५ बोलनेकी भाषा ४३२, संस्कृत भाषा अच्छे लोगोंकी थी ४३२, प्राकृतका उल्लेख नहीं है ४३३, वैदिक साहित्य ४३४, शतपथ ग्चना कथा ४३५, वेदशाखा ४३६, पाणिनि- शाकल्य ४३६, गर्गवराह ४३७, निरुक्त ४३८, इतिहासपुगण ४३६, वायुपुराण ४४०, न्यायशास्त्र ४४०, वक्तृत्वशास्त्र ४४१, धर्मशास्त्र ४४१, गजनीति ४४२, गणित आदि दृसरे विषय ४४३, जंभक ४४५, ललित साहित्य ४८५ । पन्द्रहवाँ प्रकरण - धर्म-पृ० ४४६-४७४ वैदिक धर्म ४४६, वैदिक श्राहिक, संध्या, होम ४४७, मूर्तिपूजा ४४५, तेतिस देवता ४५० शिव और विष्णु ४५१, शिवविष्णु-भक्ति-विरोधपरिहार ४५२, दत्तात्रेय ४५३, स्कन्द ५५३, दुर्गा ४५४, श्राद्ध ४५५, श्रालोकदान और बलिदान ४५६, दान ४५६, उपवासतिथि ४५६, जप ४६०, अहिंसा ४६०, श्राश्रमधर्म ४६२, अतिथिपूजन ४६२, माधारण-धर्म ४६३, श्राचार ४६३, स्वर्गनरक कल्पना ४६६, अन्य लोक ४६७, वर्गके गुणदोष ४६६, प्रायश्चित्त ४७०, प्रायश्चित्तके प्रकार ४७१, पापके अपवाद ४७२, संस्कार ४७२, अतशौच ४७३। सोलहवाँ प्रकरण-तत्वज्ञान-पृ० ४७५-५१६ महाभारतका तत्वज्ञान विषयक महत्व ४७५, पंचमहाभूत ४७६, पंचेन्द्रियाँ ४७७, जीवकल्पना ४७८, जीव अथवा श्रात्मा अमर है ४८०, श्रात्मा एक है अथवा अनेक ४८१, प्रमाणस्वरूप ४८२, परमेश्वर ४८२, सृष्टि ४८४, सांख्यके २४ तत्व ४८५, सत्रह तन्व ४८७, पुरुषोत्तम ४८८, सृष्टि कयों उत्पन्न हुई ४८, त्रिगुण ४६१, प्राण ४६३, इन्द्रियशान ४६४, आत्माका स्वरूप ४६६, जीवका दुःखित्व ४६७, वासनानिरोध और योगसाधन ४६८, ध्यान और साक्षात्कार ४६8, कर्मसिद्धान्त ५००, श्रात्माकी प्रायाति और निर्याति ५०'. पुनर्जन्म ५०२, लिङ्गदेह ५०३, देवयान और पितृयाण ५०५, अधोगति ५०६, संसृतिसे मुक्ति ५०६, परब्रह्मस्वरूप ५०७, मोक्ष ५१०, वैराग्य और संसारत्याग ५१०, कर्मयोग ५११, धर्मके दो मार्ग ५१३, धर्माचरण मोक्षप्रद है ५१३, धर्माधर्म निर्णय ५१५, धर्मके अपवाद ५१५. नीति तर्कसे भी ठीक है ५१५ ।