(६) सत्रहवाँ प्रकरण-भिन्न मतोंका इतिहास-५१७ -५५८ भिन्न मतोंके पाँच मार्ग ५१७, (१) सांख्य-सांख्य मत ५१७, कपिल ५१७, सांख्यके मूल भूत मत ५१८, भगवद्गीतामें सांख्यके तत्व ५२०, सांख्यके मूल १७ तत्व ५२१, सांख्यके प्राचार्य ५२१,३१ गुण ५२२, भगवद्गीताकी प्रकृति और पुरुष ५२२, सांख्यके मत ५२२, सांख्य और संन्यास ५२३, (२) योग-मूल तत्त्व ५२४, मुख्य लक्षण ५२५, योग सिद्धि और धारणा ५२६, योगका २६वाँ तत्त्व परमात्मा है ५२७, योग स्त्रियों और शूद्रों के लिए साध्य है ५२८, योगका मोक्ष कैवल्य है ५२८, बुद्ध और वुद्ध्यमान श्रात्मा ५२६, योगियोंका अन्न ५३०, (३) वेदान्त-अर्थ ५३०, मूल प्राचार्य अपान्तरतमा ५३१, अधिदेव, अध्यात्म श्रादि भगवद्गीताकी व्याख्या ५३१, भगवद्गीतामें विस्तार, क्षेत्रक्षेत्रज्ञ-विभाग, भक्ति, त्रिगुण ५३२, कर्मयोग ५३५: भीष्मस्तवका स्वरूप ५३५, सनत्सुजातीयका मौन ५३६, शान्ति पर्वमें भिन्न भिन्न वेदान्तके श्राख्यान ५३७, संन्यासकी आवश्यकता ५३६, आत्माके भिन्न भिन्न वर्ण ५४०, भिन्न भिन्न लोक ५४१, ब्रह्मलोक और ब्रह्मभाव ५४१, (४) पांचरात्र-भागवत धर्मसे भिन्न है ५४२, नारायणीय श्राख्यानमें प्रतिपादन- चितशिखण्डीका एक लाखवाला पांचगत्र ग्रन्थ लुप्त हो गया ५४३, श्वेतद्वीप और नारायणके दर्शन ५४४. चतुर्ग्रह गीताके बादके हैं ५४५, सात्वत लोगोंमें उत्पन्न ५४५, पहलेके दशावतार और थे ५४६, महोपनिषत् और श्राचार्य परम्परा ५४७, विष्णुके नामकी व्युत्पत्ति ५४७, हयशिग अवतार ५४८, आत्मगति ५४६, ब्रह्मदेवका सातवाँ जन्म ५५०, योग और वेदान्तमें अभेद ५५२, (५) पाशुपत मत-रुद्र की ब्रह्मसे एकता ५५३, दतस्तव श्राख्यान ५५४, पशुका अर्थ सृष्टि ५५४, शंकरका स्वरूप ५५५, कैलास ५५५, तप ५५६, उपदेश परम्पग ५५६, वर्णाश्रमको छोड़कर ५५६. सब मतीका सामान्य आचार, गुरु, ब्रह्मचर्य, अहिंसा १५७, नीतिका आचरण ५५८, अठारहवाँ प्रकरण-भगवद्गीता विचार-५५६-६०३ भगवद्गीता मौतिकी नहीं है ५५६, गीतामें प्रतिम नहीं है ५६१, वह मूल भारतकी है ५६४, अप्रासंगिक नहीं है ५६५, गीनामें श्रीकृष्णके मतका प्रतिपादन है ५६७, श्रीकृष्ण पक है, तीन नहीं ५६८, गीता दशोपनिषदोंके बादकी और वेदांगके पहलेकी है ५७१, सहायुग कल्प ५७१. चत्वारो मन्वः वैदिक ५७२, मूल वैदिक सप्तर्षि ५७५, मासानां मार्गशीर्षाहंका काल ५७६, वसन्तादि गणना ५७७, व्याकरण विषयक उल्लेग्व ५०, गीताकी भाषा ५८१, पाणिनिसे पहलेकी ५.३, भाषाका बदलना ५३, गीताके समयकी परिस्थिति ५८४, गटकी उच्च नीच गति ५४, प्रवृत्ति- निवृत्तिका उचित उययोग ५८५, भारती युद्धके समयकी सामाजिक स्थिति ५६, निवृत्तिका निगेध ५६, वैदिक आर्योका स्वभाव ५७, मंसारमें प्रवृत्ति और निवृत्ति- का आन्दोलन ५८, प्रीक और ईमाई प्रवृति और निवृत्ति ५८, भारतवर्षकी प्रवृत्ति और निवृत्तिका इतिहास-यज्ञ और तप ५६, संन्याम और कर्मयोग
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