- विवाह-संस्था । ®
२१६ कि हिन्दुस्तानमें भारती आर्योंमें नियोगकी और यह मानने में भी कोई क्षति नहीं कि रीति प्राचीन-कालमें रही होगी। अपने अति प्राचीन कालमें नियोगकी प्रथा आर्य पतिको छोड़कर स्त्री चाहे जिस पुरुष- लोगोंमें थी। से विवाह कर ले यह बात किसी यह प्रथा शीघ्र ही बन्द हो गई होगी। समाजमें खुल्लम-खुल्ला नहीं चल सकतीः समाज जैसे जैसे बढ़ते गये और भिन्न परन्तु प्राचीन कालमें कई समाजोंमें भिन्न देशोंमें मनुष्य-संख्या काफ़ी होती गई, नियोगकी यह रीति थी किपतिकी श्राज्ञा- वैसे ही वैसे वैवाहिक उच्च कल्पनाओंके से अथवा पतिके पश्चात् पुत्र-प्राप्तिके लिये, लिये बाधा-स्वरूप इस नियोगकी प्रथा- स्त्री अन्य पुरुषसे प्रसङ्ग कर ले । बाइबिल- का केवल पुत्र-प्राप्तिके लिये जारी रखना से प्रकट होता है कि ज्यु लोगों में भी ऐसी अनुचित समझा गया होगा। इस अयोग्य चाल थी। प्रत्येक समाजमें मृत व्यक्तिके रीनिसे मनुष्य-बल बढ़ानेकी इच्छा धीरे लिये पुत्र उत्पन्न करनेकी आवश्यकता : धीरे समाजसे तिरोहित हो गई होगी। प्राचीन कालमें बहुत रहती थी । समाजका भारतीय प्रायोंमें स्त्रियोंके पानिवतके बल मनुष्य-संख्या पर अवलम्बित था, : सम्बन्धमें जो अत्यन्त गौरव उत्पन्न हो इस कारण प्राचीन कालमें पुत्रकी कद्र भी गया, उस गौरवके कारण यह प्राचीन बहुत थी। इस निमित्तसे भी नियोग- नियोगकी रीति निन्द्य और गर्हणीय की प्रणाली जल पड़ी होगी। इसमें भी प्रतीत होने लगी होगी। इस कारण वह अपने ही घरके-कुटुम्बी पुरुषसे सन्तति उत्तगेसर बन्द होती गई। महाभारतके उत्पन्न करानेकी इच्छा स्थिर रहना माह- समय उसका चलन बिलकुल म था। जिक ही है। इस कारण, नियोगमें बहुधा मनुस्मृतिमें इसका खब वाद-विवाद है कि अपने कुटुम्बी पुरुषके ही पास जानेकी नियोग शास्त्र-सिद्ध है अथवा नहीं । अन्त- स्त्रियोंको आशा थी, और वह भी तभीतक में अनेक ऋषियोंके मतसे फैसला किया जबतक पुत्र-प्राप्ति न हो जाय । इसके गया है कि नियोग दोपयुक्त और निन्ध सिवा नियोगकी अनुमति उसी अवस्थामें है। अर्थात मनुस्मृति और महाभारतके मिलती थी जब कि पति किसी कारणसे समयमें नियोगका चलन था ही नहीं। असमर्थ हो गया हो, अथवा मर गया हो । यहाँ पर एक बात और ध्यान देने योग्य और उसके पुत्र न हो। कुटुम्बी पुरुषसे, है कि प्राचीन कालमें जिस समय नियोग पतिके भाईसे अथवा सम्मानित ऋषिसे प्रचलित था उस समय भी उसके लिये सन्तति उत्पन्न करानेका नियम होनेके अनेक बन्धन थे। पुत्र न हो तभी नियोग- कारण सन्तानके हीनसत्त्व या हीनवर्ण के लिये अनुमति मिलती, और वह भी होनेका अन्देशा न था । इसी नियोगके सिर्फ पुत्रप्राप्ति-समयतकके लिये ही और द्वारा धृतगट और पाण्डुकी उत्पत्ति या तो पतिकी या कुटुम्बियों की प्राक्षासे। होनेकी कथा महाभारतमें है; और पागडु- सारांश यह कि नियोगके लिये किसी के भी ऐसे ही नियोगके द्वारा धर्म, समय भी अनियन्त्रित सम्बन्धका स्वरूप भीम आदि पुत्र होनेका महाभारतमें वर्णन प्रान न था। यह बात ध्यान देने लायक है। है । तत्कालीन इतिहास और अन्य प्राचीन नियोगकी प्रथा बहुत प्राचीन कालमें लोगोंके इतिहास पर विचार करनेसे ये ही रुक गई होगी । क्योंकि भारतीय कथाएँ असम्भवनीय नहीं जान पड़ती] आर्यों और अर्य स्त्रियोंकी पातिव्रत्य: