पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
  • विषाह-संस्था । *

समयमें, विवाहके अवसर पर, स्त्रियाँ तकके आजकल मिलते हैं, उनमें भी प्रौढ़ बालिग़ रहती थी। यह सिद्धान्त एक अवस्थाकी वॉरियोंके विवाहके ही वर्णन बातसे और पक्का होता है। यह निर्विवाद हैं। और पति-पत्नीके समागमका वर्णन भी है कि उस समय विवाहके ही दिन पति- विवाहके दिनका ही उनमें पाया जाता पत्नीका समागम होनेकी परिपाटी थी। है। हर्षचरित्रमें बाणने हर्षकी बहिनके द्रौपदीके विवाह-वर्णनमें एक चमत्कार विवाहका वर्णन विस्तारपूर्वक और हद- यह बतलाया है कि द्रौपदीका प्रत्येक यङ्गम किया है । उसमें दूल्हा शामको बड़े पतिके साथ भिन्न भिन्न दिनोंमें विवाह साजसे वधूके पिताके घर आया। वहाँ हुआ । उस समय विचित्रता यह हुई कि बड़े दरबारमें स्वागत होने पर मधुपर्कसे 'महानुभावा द्रौपदी प्रति दिन क्वाँरी ही उसकी पूजा हुई: और विवाहकी ठीक हो जाती थी।' अर्थात् पहले दिन युधि- घड़ी आतेही अन्तःपुरमें पति-पत्नीका ष्ठिरके साथ द्रौपदीका विवाह हुश्रा: तब विवाह हो गया। फिर अग्निके समक्ष उसी रातको उनका समागम हुआ: तब सप्तपदी हुई। फिर भोजन आदि हो भी वह दूसरे दिन क्वॉरी थी। यह बात चुकने पर, खास तौर पर सजाय हुए सदाकी रीतिके अनुसार हुई । अब दूसरे महलमें, पत्नि-पत्नीका समागम हुआ। दिन दुसरे पागडवके साथ उसका विवाह बाणने एसा ही वर्णन किया है। सारांश हुआ। उस समय विवाहके धर्मशास्त्रके यह कि द्रौपदीके विवाहसे लेकर हर्षकी अनुसार वधू कन्या यानी अनुपभुक्ता बहिन गज्यश्रीके विवाहतक जो वर्णन होनी चाहिए, और वह ऐसी ही थी भी। प्रसिद्ध हैं, उनमें विवाहकं समय वधू प्रौद यही चमत्कार है। धर्मशास्त्रमें भी कई है और विवाहवाली गतको ही पति- स्थलों पर आशा है कि विवाहके ही दिन पत्नीके समागम होनका उल्लेख है । पति-पत्नीका समागम हो। अन्य दो पक्ष । इससे उस समयका यह नियम देख ये है कि उसी गतको न हो तो तीसरी पड़ता है कि ब्याही हुई स्त्री अनुपभुक्ता रातको या बारहवीं रातको हो । तात्पर्य रह ही नहीं सकती। यह कि विवाहके दिन समागम होनकी अब प्रश्न होता है कि ये सब वर्णन रीति थी और इसके लिये धर्मशास्त्रकी क्षत्रिय स्त्रियोंके हैं और महाभारतकं श्रामाभी है। तब यह प्रकट है कि विवाह- समय क्षत्रियोंकी लडकियाँ विवाहकाल- के समय वधूकी अवस्था प्रौढ़ होनी में जैसी प्रौढ़ रहती थी, वैसी आजकल चाहिए । महाभारतके समय प्रौढ़ स्त्रियोंके भी तो रहती हैं। इसमें कौन अचरज है। ही विवाह होनेक विषयमें जैसे उपरि- स्वयंवर अथवा गान्धर्व विवाह करनेकी लिखित प्रमाणसे अनुमान निकलता है, म्वाधीनता जिन स्त्रियोंको थी, वे तो वैसे ही अन्य ऐतिहासिक प्रमाणोंसे भी विवाहमें बड़ी होगी ही । परन्तु ब्राह्म वही देख पड़ता है। यूनानियोंमे सिक- विवाहकी और ब्राह्मणोंकी बात भिन्न है। न्दरके समयके हिन्दुस्तानके जो वर्णन अब देखना चाहिये कि ब्राह्मण खियोंकी लिख रखे हैं, उनसे भी यही बात सिद्ध अवस्था विवाहके समय कितनी होती होती है। महाभारत-कालके पश्चात् अर्थात् थी । इस सम्बन्ध महाभारतकी क्या सन् ईसवीसे १० वर्ष पूर्वके अनन्तरसे ' गवाही है। यदि इस एस विचार करें जो अनेक संस्कृत ग्रन्थ सन ८०० ईसवी. तो ब्राह्मणांकी लड़कियों के लिये क्षत्रियों-