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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा *

से, कुछ विभिन्न नियम नहीं देख पड़ता। तब लड़कोंके विवाह बड़ी उम्र में होने और तो क्या, क्षत्रियोंकी बेटियाँ ब्राह्मणोंके ही चाहिएँ । लड़कोंका उपनयन होकर घर ब्याही जाती थी और क्वचित् ब्राह्मणों- | उनकी शिक्षा समाप्त हो जाने पर ही की बेटियाँ क्षत्रियोंके घर । ऐसी परि- विवाह करनेकी रीति थी। तब यह निर्वि- स्थितिमें दोनी वर्गों की बेटियाँ उम्रमें एक- वाद ही है कि लड़कोका विवाह बड़ी सी ही होती थी। यद्यपि महाभारतमें अवस्थामें, कमसे कम इक्कीस वर्षके पश्चात्, ब्राह्मण-कन्याओके विवाह-वर्णन स्वल्प | होता रहा होगा। है, तथापि जो हैं वे उल्लिखित अनुमानकी स्मृतिशास्त्रमें उम्रके सम्बन्धमें जो ही पुष्टि करते हैं। शुक्र-कन्या देवयानीका स्पष्ट उल्लेखयुक्त वचन है, उनसे अनु- उदाहरण प्रसिद्ध है। यह कहनेकी श्राव- मान होता है कि बेटीके विवाहके सम्बन्ध श्यकता नहीं कि विवाहके समय उसकी में विभिन्न परिस्थिति महाभारत-कालके उम्र बड़ी थी। शल्यपर्वके ३३वें अध्यायमै | पश्चात् उत्पन्न हुई । महाभारतके समय एक वृद्धा कन्याका वर्णन है । एक लड़कियोंका विवाह तभी होता था जब ब्राह्मणकी बेटी क्वाँरी ही रहकर तपश्चर्या कि उनकी अवस्था प्रीढ़ हो जाती थी। फिर करती थी। बुढ़ापा आ जातक उस कुछ शताब्दियोंके बाद लड़कियोंके विवाह- वृद्ध कन्याने विवाह न किया था। अन्तमें की अवस्था कम हो गई । यदि इसका नारदके उपदेशस उसने बुढ़ापेमें विवाह इतिहास अथवा उपपत्ति यहाँ दिया जाय कर लिया। ब्राह्मण-कन्याओंके विवाहके तो विषयान्तर हो जायगा । तथापि योग्य अवस्था हो जाने और भी कुछ स्मृतियोंमें विवाहकं सम्बन्धमें जो वचन वर्णन मिलेंगे । श्रादिपर्वमें बकासुर है उसी ढंगकं वचन महाभारतमें क्योंकर राक्षसकी कथा है। वहाँ पर, पागडव है ? इसका भेद लेना चाहिये । लोग जिस ब्राह्मणके घर उतरे थे उसकी त्रिंशद्वर्षी वहन् कन्यां हृद्या द्वादशवार्षिकीम्। बारी आने पर उसकी बेटी राक्षसका यह मनुस्मृतिका वचन प्रसिद्ध है। आहार बननके लिये तैयार हुई। उस "नीस वर्षको श्रायुका पुरुष बारह वर्षकी, समय ब्राह्मणने लड़कीसे कहा- हृदयको आनन्द देनवाली, लड़कीसे बालामप्रामवयस मजातव्यंजनाकृतिम । विवाह करें।" पूर्व कालमें इस श्लोकका भर्तुर्याय निक्षिप्तांन्यासंधात्रा महात्मना । महाभारतका पाठ "हृद्यां षोडशवार्षि- इस तरह उसका वर्णन करके ब्राह्मण- कीम्" था। कुछ निबन्धग्रन्थों में महा- ने अपनी बेटीको राक्षसका भक्ष्य बननेके भारतका यही वचन पाया जाता है। लिए न जाने दिया। छोटी, तरुणावस्थामें अर्थात् महाभारतके समय लड़कियों- न पहुँची हुई, उसकी बेटी क्वाँरी थी। का विवाह पूरी प्रौढ़ अवस्था हो आने- पूरी उम्र होते ही उसे भर्ताके अधीन के पश्चात् होता था । परन्तु अनुशा- करना था और वह भी तब जब कि तारु- सन पर्वके ४४ वें अध्यायमें जो श्लोक एयके लक्षण शरीरसे व्यक्त होने लगे। हैं, उनमें बिलकुल ही भिन्न रूप देख इस श्लोकसे यही मालूम पड़ता है। पड़ता है। और इस रूपान्तरमें मनुकी ब्राह्मणोंकी बेटियाँ भी, महाभारत-कालमें निर्दिष्ट की हुई आयु-मर्यादासे भी कम वर-योग्य होने पर ही ब्याही जाती थीं। जब मर्यादा दिखलाई है। वह पाठ यह है लड़कियाँ बड़ी अवस्थामें ब्याही जाती थी "त्रिंशद्वर्षों वहत् कन्यां मग्निकां दशवार्षि-