पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२२६
महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा - विवाहके समय लड़की खूब बड़ी होती वह कन्याकी अनुमतिसे ही दोषी क्यों न थी, इस बातका एक मज़ेदार अप्रत्यक्ष हुआ हो। इससे सहज ही समझा जा प्रमाण इस श्लोकमें देखिए- सकता है कि प्रौढ़ लड़कियोंके कॉरपनको प्रदानकांक्षिणीनांचकन्यानां वयसि स्थिते। स्थिर रखनेके सम्बन्धमें, प्राचीन-काल श्रत्त्वाकथास्तथायुक्ताः साशा कृशतरीमया॥ कितना ध्यान दिया जाता था । आजकल (शान्तिपर्व अध्याय १२८) तो बचपनमें ही विवाह कर देनेकी रीति अषभ द्विज अत्यन्त कृश होगया था। प्रायः सर्वत्र हो गई है। इस कारण उल्लि- वह कहता है कि उन कन्याओंकी आशा खित कन्यात्व-दूषण-सम्बन्धी नियम बहुत तो मुझसे भी कहीं दुबली पतली है जो . करके मालूम ही नहीं, और वर्तमान परि- कि तरुण हो चुकी हैं और अपना विवाह स्थितिमें लोगोंको वे नियम देखने-सुनने- करानेकी इच्छा, उस ढंगकी बातें मुन- से एक तरहका अचरज होता है । साधा- कर, किया करती हैं। इससे प्रकट है कि रण रीति पर लड़कीके दान करनेका बहुतेरी कुमारिकाएँ, तरुण अवस्था हो अधिकार बापको था, फिर लड़की कितनी जाने पर भी, बहुत समयतक बापके कन्या- । ही प्रौढ़ क्यों न हो गई हो। यदि प्रौढ़ दान न करनेसे खिन्न हो जाया करती लड़कीके विवाहमें बाप कुछ आपत्ति थीं। उनकी विवाहकी श्राशा बहुत कुछ करे तो उसका भी महाभारत-कालमें, कृश हो जाती थी। आजकल इस प्रकारके स्मृतियोंके कथनकी भाँति ही, प्रतीकार उदाहरण राजपूतोंको छोड़ ( कहीं कहीं था । नियम था कि ऋतुकाल प्राप्त होने यक्तप्रदेशके कनौजियोंमें भी)अन्य स्थानों में पर लड़की तीन सालतक प्रतीक्षा करे न मिलेंगे। यह बात कछ अनहोनी नहीं कि कि बाप मझे प्रदान करता है या नहीं. ऐसी परिस्थितिमें लड़कियोंके कुमार्ग- और तबतक यदि वह प्रदान न करे तो गामी हो जानेकी श्राशङ्का सदा रहती। कन्याको स्वयं अपना विवाह कर लेनेका थी । धर्मशास्त्रका और लोगोंका भी इस अधिकार है। अनुशासन पर्वमें स्पष्ट कह बात पर ध्यान था कि विवाहमें वधृकी दिया गया है कि-"जो लड़को तीन वर्ष- अवस्था कम न हो और साथ ही वह तक प्रतीक्षा करके अपने विवाहमें स्वयं अनुपभुक्ता भी होनी चाहिये । इस कारण प्रवृत्त हो जाती है उसकी सन्तानको या कन्यात्वको भङ्ग करनेका पातक बड़ा उसके साथ विवाह करनेवालेको रत्ती जबर्दस्त माना जाता था। महाभारतमें भर भी दोष नहीं लगता: किन्तु यदि वह लिखा है कि जो कन्या अपने क्वाँरपनमें इस नियमके विपरीत व्यवहार करेगी तो बट्टा लगावेगी उसे ब्रह्महत्याका तीन चतु-: उसे प्रत्यक्ष प्रजापति दोष देगा।" इससे थोश पातक लगेगा, और शेष पातक उस · जान पड़ता है कि धर्मशास्त्रका और पुरुषको लगेगा जिसने क्वाँरपनको दृषित लोगोका श्राग्रह यह था कि लड़कीको किया होगा। अविवाहित न रहना चाहिये। भारतीय त्रिभागं ब्रह्महत्यायाः कन्या प्राप्नोति आर्य-समाजकी शुद्धताके सम्बन्धमें यह दुष्यती । यस्तु दूषयिता तस्याः शेषं बात बड़े महत्त्वकी है। प्रौढ़ कन्याओको प्राप्नोति पाप्मनः ॥ (अनु० प० अ० १०६) अविवाहित न रहने देनेका समाजका मनुस्मृतिमें कन्यात्व दूषित करनेवाले- आग्रह होनेसे समूचे समाजकी नीतिमत्ता को राजदगड भी कहा गया है, फिर चाहे भली भाँति स्थिर रखनेमें यह नियम