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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२५१

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  • विवाह-संस्था।

कीम्", और अनुवादकोंने इसका मामूली शवार्षिकीम्' पाठ ही असलमें रहा होगा। अर्थ किया है-दस वर्षकी लड़कीके महाभारतके अनेक वर्णनोंसे हमारा यह साथ विवाह करे। यह पाठ मनुसे भी ' अनुमान है कि यही पाठ पूर्व समयका इस ओरका है और मूलके पाठको बदल- होगा, और महाभारतके समय स्त्रियोंके कर इस समयकी परिस्थितिमें उत्पन्न हो विवाह प्रौढ़ अवस्थामें ही होते रहे होंगे गया है। यह अनुमान निकलने लायक फिर वे स्त्रियाँ चाहे ब्राह्मण हो चाहे है। निबन्धकारोंने महाभारतका जो पाठ क्षत्रिय अथवा और वर्णकी। "हृद्यां षोडशवार्षिकाम्" ग्रहण किया है, महाभारतके समय, पूर्व समयकी वही मूल पाठ रहा होगा। क्योंकि मनु- भाँति, स्त्री-पुरुषोंका विवाह प्रौढ़ अवस्था- स्मृतिमें जो वचन हैं उनकी अपेक्षा महा- में ही होता था । ब्रह्मचर्यकी मर्यादापारह भारतमें जो परिस्थिति है वह सब बातोंमें वर्ष मान लो जाय तो २१ वर्षके भीतर पुरानी है। इसकी जाँच पहले हो चुकी पुरुषका विवाह न होता था; और यदि २४ है। विवाहके भेदोंके विषयमें भी यही वर्षकी मान ली जाय तो तीस वर्षकी नियम है। आगे चलकर यह यात देख अवस्थातक विवाहको मर्यादा पढ़ती है। पडेगी। इसके सिवा महाभारतका पक। खिायाकी अवस्थाकी मर्यादा यद्यपि साफ और वचन यहाँ विचारने लायक है। साफ़ नहीं बतलाई गई, तथापि विवाहके 'वयस्थां च महाप्राज्ञ कन्यामावोढुमर्हसि।' समय वे तरुण और उपभोगके योग्य होती वयस्क अर्थात् तरुण क्वाँरीसे विवाह थीं, क्योंकि विवाहके ही दिन अथवा करना आयुष्यकर है। अनुशासन पर्वमें तीसरे दिन पति-पत्नीका समागम होनेकी ही एक स्थान पर यह कहा गया है। इस रीति उस समय प्रचलित थी *। इस वाक्यके वयः शब्द पर पाठकोको खब' प्रकार पति और पत्नी खासी अवस्था में ध्यान देना चाहिए । संस्कृतमें पय शब्दः । गृहस्थी सँभालने लगते थे और उनके का अर्थ तारुण्य है। सामान्य वयके अर्थ. जो सन्तान होती थी वह शक्तिमान और में, संस्कृतमें वयका प्रयोग नहीं होता। तेजस्वी होती थी। पति-पत्नीकी योग्य संस्कृत अर्थ यह है कि बाल्य बीतने पर अर्थात् तरुण अवस्था होनेके पहले उनके वय प्राप्त होता है । मतलब यह कि उल्लि- . समागम या विवाहको लोग अच्छी नज़र- खित वचनमें 'वयस्थाम' शब्दका अर्थ से न देखते थे और उससे बचते भी थे। साधारण रीतिसे विवाहके योग्य अवस्था- महाभारतके वन पर्वमें उनभयङ्कर बातोंका वाली करना ठीक न होगा। अगर यही वर्णन है जो कि कलियुगमें होनेको है। अर्थ किया जायगा तो उससे कुछ भी उनमें इसे भी भयङ्कर माना है । कलियुग- मतलब नहीं निकलेगा । उक्त वचनमें के सम्बन्धमे यह भविष्य किया गया है यह बात कही गई है कि वयस्था अर्थात कि असमयमें हो विवाह होकर स्त्री-पुरुषों तरुण अवस्था प्राप्त कन्या विवाहके लिये के सन्तान होगी। अर्थात् ऐसे समागम उत्तम और श्रायुष्यकर है। क्योंकि इस और विवाहको लांग निन्ध मानते थे। अध्यायमें आयु बढ़ानेवाली बातोंका ही महाभारतके जमाने में गर्भाधान स्वतन्त्र संस्कार वणन ह । इस वचनका टाटस पात: था ही नहीं, और वह पाश्वलायन गृधसत्रमें भी नहीं वर्णन है । इस वचनकी दृष्टिसे पूर्वोक्त वचन देखने पर 'नग्निकां दशवार्षिकीम्' है। कई शताब्दियों गुजरने पर बालविवाहके जमाने में पाठ पीछेका जान पड़ता है: 'हृद्यां पोड़ उमका गन्धपरिशिष्टमें वर्णन है। २६