- महाभारतमीमांसा *
रहने दिया-बदला नहीं । अतएव दाँव जो उत्तर दिया वह योग्य हैं या अयोग्य ? हार जाने पर द्रौपदी कौरवोंकी दासी और वस्त्र-हरणके चमत्कारसे उस प्रश्नका हो गई। दुर्योधनने उन्मत्त भावसे उसे निर्णय हुश्रा या नहीं ? हमारी समझसे सभामें बुलवा भेजा। तब, उसने कौरवों- तो भीष्मने जो 'नहीं' उत्तर दिया, उसीमें के फन्देमे छूटनेके लिए-न कि अपने भारतीय आर्य पति-पत्नियोंके लिए एक पतिाकि अधिकारसे निकलनेके लिए- अत्यन्त उदात्त तत्त्व बतलाया गया है। पविता होनेके कारण सभासे यह पेचीला क्योंकि भीष्मने पहले यह कहा है कि संवाल किया। उस समय भीष्मने उत्तर पतिकी पत्नी पर जो सत्ता है, उसका दिया-"जिस पर अपनी सत्ता नहीं : विचार करने पर पतिके स्वयं हार जाने चलती, ऐसा द्रव्य दाँव पर नहीं लगाया पर भी, पत्नीके ऊपरके उसकी ससाका जा सकता: और पति चाहे किसी स्थिति- उठ जाना नहीं कहा जा सकता। पति चाहे में क्यों न हो, स्त्रीके ऊपरसे उसकी सत्ता किसी स्थितिमें हो, उसके सुख दुःख उठ नहीं सकती। इन दोनों बातोंको देखते की विभागिनी पत्नी है ही । भारती हए तेरे प्रश्नका निर्णय करना मुशकिल आर्योंने इस उदात्त तत्वको इतना पूर्ण काम है।" किया कि पतिके दास (पराधीन) हो न धर्मसौन्म्यात्सुभगे विवक्तुं जाने पर भी पत्नी परकी उसकी सत्ताको ___ शक्नोमि ते प्रश्नमिमं विवेक्तुम् । । हरण नहीं किया। उनकी यही भावना अस्वाम्यशक्तः पणितुं परस्वं थी। और इसी भावनासे प्रेरित होकर स्त्रियश्च भर्तुर्वशतां समीच्य ॥ श्राज हज़ारों वर्षसे हिन्दुस्थानके स्त्री- (म० अ०६७) पुरुष, विवाहित अवस्थामें, एकताके इस उत्तरसे कौरवोंको स्फूर्ति प्राप्त आनन्दका सुख भोग रहे हैं । अर्थात् हुई और दुःशासनने द्रौपदीका वन भीष्मने पहले जो उत्तर दिया वही योग्य स्त्रींचा। परन्तु द्रौपदीके रक्षक श्रीकृष्ण और उदात्त तत्त्वके अनुसार था । वस्त्र- जगनियन्ता परमेश्वर-प्रत्यक्ष धर्मने हरणके समय जो चमत्कार हुआ उससे उसकी लाज रख लो और उसे सैंकड़ों क्या इस तत्त्वका खण्डन हो सकता है ? वस्त्र पहना दिये । तथापि इतनेसे ही यदि यह मान लिया जाय कि द्रौपदीके द्रौपदीका प्रश्न हल नहीं हुा । वह दासी न होनेका हीधर्मने निर्णय किया, तो दासी समझी जाकर दुर्योधनके हवाले की कहना होगा कि धर्मने जो यह चमत्कार जाय अथवा अदासी समझी जाय और किया वह अपने हाथ-पैर तुड़वानेके ही उसे चाहे जहाँ जानेका अधिकार हो? लिए किया । उस समय युधिष्ठिरने जो भीमने तो वही पूर्वोक्त उत्तर दिया। चुप्पी साध ली थी उसका भी यही कारण इस दशामें धृतराष्ट्रने प्रसन्न होकर द्रौपदी- है। कहना होगा कि राजधर्म, श्रापद्धर्म को वरदान दिये और उन वरदानोंके और मोक्षधर्म बतलानेवाले भीष्म, चम- द्वारा अपना और अपने पतियोंका छुट- कार होनेके पहले, योग्य निर्णय नहीं कारा करा लिया। इसके अनन्तर बन- कर सके। वस्त्र-हरणके समय जो चम- वासका दाँव लगाकर चूत हुआ । ऐसा त्कार हुआ उसने द्रौपदीके प्रश्नको हल यहाँका किस्सा है। तो नहीं किया; परन्तु यह सूचना दे दी अब यहाँ प्रश्न होता है कि भीष्मने पहले कि जूएके अवसर पर दासीको भी न तो