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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२६५

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  • विवाह-संस्था।*

- - कैसा व्यवहार करना चाहिए। परन्तु यह भी दलील करते हैं कि वस्त्र-हरणको गृहणीमें पलीका जो उदात्त कर्तव्य है, घटना यहाँ हुई ही न होगी। “वस्त्र-हरण- उसका अर्थात् पतिके सुख-दुःखकी के अवसर पर स्वयं धर्मने चमत्कार करके हिस्सेदार बननेका अच्छा चित्र इसमें साक्षी दी कि द्रौपदी वासी नहीं है, तब नहीं दिखलाया गया। किन्तु महाभारतमें ! भीष्मको तो शङ्का न रहनी चाहिये।" व्यासने द्रौपदीके प्रत्यक्ष आचरणका जो । अर्थात् आक्षेपकर्ताका यह कथन हो जाता वर्णन किया है वह इससे कहीं श्रेष्ठ कोटि- है कि द्रौपदी-वस्त्र-हरण काल्पनिक और का है। वह सदा पाण्डवोंके सुख-दुःखकी प्रक्षिप्त है । और तो और, इस कथा- संविभागिनी दिखलाई गई है। यह भी भागके सम्बन्धसे भीष्मके अन्युदात्त दिखा दिया है कि कुछ मौकों पर वह चरित्र पर माधारण लोगोंके मनमें भी पतियों के साथ वाद-विवाद तथा झगड़ा शङ्का उत्पन्न होती है । महाभारतके सभी और हठ भी करती है। प्राचीन कालसे व्यक्तियों में भीष्मका चरित्र श्रेष्ट है, और ही स्त्रियोंके आचरणके सम्बन्ध अत्यन्त : उनके सम्बन्धमें सभीका आदर-भाव उदात्त कल्पना भारती आर्य स्त्रियोंके है। जिसने पिताक लिए श्रामग्ण ब्रह्म- हृदयमें है, इसकी साक्षी महाभारतके चर्य अङ्गीकार किया, जो शान, अनुभव अनेक वर्णन और कथाएँ देती हैं । इसमें और तपोबलसे सबका नेता था, जो सम- सन्देह नहीं कि महाभारतके समय आर्य म्त शस्त्रास्त्र-वेनाओंमें अग्रणी था और नयोंका पति-प्रेम अवर्णनीय था और जो धृतगटका भी चाचा था अर्थात सारे पनि-पत्नीके रिश्तेका दर्जा बहुत ऊँचा था। कौरवोंका पितामह था, उसने यदि ठीक पति-पत्नीका अभेद्य सम्बन्धी समय पर द्रौपदीके प्रश्नको योग्य रीति- मे हल कर दिया होता, तो वह भयङ्कर ___ भारतके एक प्रसङ्गसे यह बात भली युद्ध होनेकी घड़ी ही न पाती । बहुनाको भाँति समझी जा सकेगी कि पति-पत्निके ऐसाही जंचता है। जिस भीष्मने अपने रिश्तेके सम्बन्धमें भारती श्रायों में कितनी साक्षात् गुरु महाराजकी धर्म-विरुद्ध उदास्त कल्पना थी। यहाँ पर उसका विवे- आशा नहीं मानी, उसने उम समय राज. चन किया जाता है। जिस समय द्रौपदी- सत्ताकी हाँ हाँ मिला दी। कुछ लोगोंको का वस्त्र-हरण किया गया, उस प्रसंगसे यही मालम होने लगता है । किन्तु उस उसने पूर्वोक्त महत्त्वका प्रश्न किया । समयके प्रसङ्ग पर यदि सूक्ष्म दृष्टिसे उसने पूछा-"धर्मने पहले अपने आप ' विचार किया जाय तो भीष्मने उस बाज़ी लगाई, और हार जाने पर उन्होंने समय जो उत्तर दिया उससे उन पर मुझे दाँव पर रख दिया । फिर मैं दासी होनेवाला आक्षेप दूर हो जाता है। हुई या नहीं ?" इसका उत्तर भीष्म न दे न सिर्फ यही, बल्कि यह भी देख पड़ेगा सके। वस्त्र खींचते खींचते दुःशासनके कि पति-पत्नीके सम्बन्धमें उन्होंने एक थक जाने पर भी द्रौपदीने वही प्रश्न अत्यन्त उदात्त नियम यहाँ बतला दिया। किया। तब भीष्मने उत्तर दिया कि- धर्मने अपनी बाजी हारकर, शकुनिके "प्रश्न कठिन है, उत्सर नहीं दिया जा बढ़ावेसे धृनि-मदान्ध होकर, दाँव पर सकता।" यह भी एक पहेलीसी जंचती द्रौपदीको रख दिया। मारी सभाने इस है। इस उत्तरके आधार पर कुछ लोग बातसे घृणा की: तब भी धर्मने दाँव लगा