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महाभारतमीमांसा
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समयकी सी पर्देकी प्रथा उस समय न बेटी-व्यवहार नहीं किया जा सकता। थी-सीताकी शुद्धिके समय रामने कहा महाभारतसे इस बातका पता नहीं लगता है. कि-"विवाह, यश अथवा सङ्कटके कि यह बन्धन कैसे शुरू हुआ। महा. समय यदि त्रियाँ लोगोंके सामने प्रावे भारतमें इतना ही लिखा है-काल-गति- तो कोई हानि नहीं ।" अर्थात् ऐसे अव- से प्रवर उत्पन्न हो गये। किन्तु इससे सरों पर तो प्राचीन समयमें स्त्रियोंके लिए कुछ बोध नहीं होता । प्रवर तीन या पाँच कोई-पर्दा था ही नहीं। यह बात अवश्य होते हैं अर्थात् तीन गोत्रोंमें और कुछ माननी चाहिये। परन्तु ऊपर द्रौपदी- खास पाँच गोत्रोंमें विवाह-सम्बन्ध नहीं के सम्बन्धमें जिन प्रसनोका वर्णन होता। प्राचीन समयमें ऐसे गोत्र कुछ किया गया है, उनसे प्रतीत होता है कि कारणोंसे, प्रेमसे या द्वेषसे, अथवा अन्य अन्य अवसरों पर भी क्षत्रिय राजाओंकी कारणोंसे निश्चित हो गये होंगे। विभिष स्त्रियाँ, बिना पर्देके ही बेधड़क बाहर गोत्रोंके प्रवर सूत्र में पठित हैं। किन्तु सब माती-जाती थी और महाभारतके वर्णन जगह, उदाहरणार्थ सब प्राह्मलोंमें, फिर से देख पड़ता है कि वे लोगोंकी नज़रोंसे वे चाहे जिस शाखाके हों, गोत्रोंके प्रबर छिपी भी न रहती थी । बहुधा पर्देकी एक ही हैं, इससे यह प्रबर-भेद बहुत रीति पर्शियन लोगोंसे, पर्शियन बादशाहों- प्राचीन कालमें अर्थात् महाभारतसे भी केसनकरण पर. हिन्दस्थानके नन्ट प्राचीन समयमें उत्पन्न हुना होगा। प्रमुख सार्वभौम राजाओने सीख ली सगोत्रके सिवा, मातृ-सम्बन्धसे पाँच होगी। अर्थात् सन् ईसवीसे पूर्व ४००-: पीढ़ियोतक विवाह वयं है। यह वर्त. ५०० वर्षके लगभग इसका अनुकरण मान स्मृतिशास्त्रका नियम है। अब देखना किया गया और महाभारतके समय यह चाहिए कि भारती प्रायों में यह नियम रीति प्रचलित थी। कहाँतक प्रचलित था। यह साफ़ देख पड़ता है कि चन्द्रवंशी प्रायोंमें इस नियमकी दूसरे बन्धन । पाबन्दी न थी । मामाकी बेटी आजकल स्मृति-कालमै विवाह-सम्बन्धी जो विवाहके लिये वर्ण्य है: परन्तु पाण्डवोके और बन्धन देख पड़ते हैं व महाभारतकं समय चन्द्रवंशी क्षत्रियों में इसकी मनाही समय थे या नहीं ? इस पर यहाँ विचार न थी। इसके अनेक उदाहरण हैं। श्री- करना है। यह तो पहले ही देखा जा कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्नका विवाह, उसके मामा चुका है कि सगोत्र विवाहको सशान न रुक्मीकी बेटीके साथ हुआ था। प्रद्युम्न- माननेका नियम महाभारतके समय मौजूद के पुत्र अनिरुद्धका विवाह भी उसकी था। गोत्रका अर्थ किसी विवक्षित पुरुष- । ममेरी बहिनके साथ हुआ। इन विवाहों. से उत्पन्न पुरुष-सन्तति करना चाहिए। के वर्णनसे ज्ञात होता है कि मामाकी बेटी भारती आर्योंके समाजमें यह बन्धन विशेष ब्याह लाना चन्द्रवंशी आर्य विशेष प्रशस्त रूपसे देख पड़ता है कि विवाह एक ही मानते थे। सुभद्राके साथ अर्जुनका जातिमें तो हो, परन्तु एक ही गांत्र में न विवाह भी इसी प्रकारका था। सुभद्रा हो । महाभारतकेसमय गोत्रकेसाथ साथ उसकी ममेरी बहिन थी। भीमका विवाह प्रवरको भी मनाही थी। महाभारतके शिशुपालकी बहिनके साथ हुआ था। यह समय यह नियम था कि एक ही प्रवरम सम्बन्ध भी इसी श्रेणीका था । शिशुपाल.