पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२७१

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विवाह-संसा- २४ की माँ और कुम्ती दोनों बहनें थी। ऐसे में एक और नियम यह देख पड़ता है कि अनेक उदाहरणोंसे सिद्ध है कि मामाकी जेठे भाईका विवाह हुए बिना छोटेका बेटी के साथ ब्याह कर लेना उस समय विवाह न हो। ऐसा विवाह करनेवालेको साधारणसी बात थी । यहाँ पर कह देना भारी पाप लगना माना गया था। हाँ, चाहिए कि ऐसा विवाह पहले, दक्षिण यदि बड़ा भाई पतित या संन्यासी हो मोरके महाराष्ट्रोंमें प्रशस्त माना जाता गया हो तो परिवेदन करनेके पातकसे था। ब्राह्मणों और क्षत्रियों में ऐसे विवाह छोटा बरी किया गया है। (शां० म० उस तरफ़ पहले होते थे । दक्षिणमें ससुर-३४) कहा गया है कि परिवेत्ता अर्थात् को मामा कहनेकी चाल अबतक है। विवाह कर लेनेवाले छोटे भाईको प्राय- जनेऊके अवसर पर जब लड़का काशी चित्त करना चाहिए । बड़े भाईका विवाह जानेकी रस्म अदा करने लगता है तब होने पर, कृच्छू करनेसे,उसके मुक्त होने- मामा ही उसे लड़की देनेका वादा करके का वर्णन है। किन्तु एक शर्त यह है कि रोक लेता है । लड़की देनेके वादेकी रीति उसे फिरसे अपना विवाह करना चाहिए। युक्तप्रान्तकी तरफ़ नहीं है, सिर्फ फुसला (शां०प्र० ३५) इसके सिवा लिखने लायक लेनेकी है। धर्मशास्त्र-निबन्धमें लिखा है। बात यह है कि स्त्रियोंको यह परिवेदनका कि-'मातुल-कन्या-परिणय' महाराष्ट्रोंका दोष नहीं लगताः अर्थात् बड़ी बहिनका अनाचार है। अतएव यह मान लेनेमें विवाह होमेके पहले ही यदि छोटी ब्याह क्षति नहीं कि महाराष्ट्र लोग चन्द्रवंशी दी जाय तो वह दोषी या पातकी नहीं। क्षत्रियोंके वंशज हैं । जो हो, यह कहा शायद यह अभिप्राय रहा हो कि स्त्रियोंको जा सकता है कि महाभारतके समय जब उत्तम पर मिले तभी उनका विवाह कर चन्द्रवंशी आर्योंमें मातुल-कन्याका विवाह दे-अविवाहित न रखे । स्त्रियोका विवाह निषिद्ध न माना जाता था। तो होना ही चाहिये, पुरुषोंका न हो तो महाभारतकं समय विवाहकसम्बन्ध- हर्ज नहीं, यह अभिप्राय भी हो सकता है।