पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२७६

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महाभारतमीमांसा

२५० ॐ महाभारतमीमांसा. लोकोंको जाते हैं वे मुझे प्राप्त हो ।" ऐसे कोई हानि नहीं। यूनानियोंका आक्रमण ऐसे और भी उदाहरण दिये जा सकेंगे। पजाबतक हुआ था। और, यह अनुमान गायको लात मारनातक पाप माना जाने करनेके लिये जगह है कि महाभारतके लगा था। किन्तु भारती युद्ध के समय समय पञ्जाबमें यह अनाचार रह गया इसके विपरीत परिस्थिति थी । महा- था। कर्ण पर्वमें शल्य और कर्ण के बीच भारतके कई अवतरणोसे यह बात देख जो निन्दाप्रचुर संवाद वर्णित है, उसमें पड़ती है। रन्तिदेवने जो अनेक यज्ञ | कर्णने पावके वाहिक देशके अनाचारका किये थे उनमें मारे हुए बैलोके चमडे- वर्णन किया है। उसमें कहा गया है कि की देरीके पाससे बहनेवाली नदी-गजमहलोंके आगे गोमांसकी दुकाने का नाम चर्मरावती पड़ गया। किन्तु और वहाँवाले गोमांस, लहसुन, मांस इनमी दूर जानेकी क्या आवश्यकता ! मिली हुई पीठीके बड़े तथा भात खरीद- है? भवभूतिकृत उत्तर-रामचरितमे वसिष्ठ- कर खाते हैं (क० अ०४४) । इस वर्णनले विश्वामित्रके श्रागमनके समयमें जो मधु- यह माना जा सकता है कि जहाँ यूनानी पर्कका वर्णन है, उसका ध्यान संस्कृत लोग रह गये थे वहाँ, महाभारतके समय, नाटकोंका अभ्यास करनेवाले विद्यार्थियों- यह अनाचार जारी था । महाभारत को होगा हो । भारती-युद्धके समय और यूनानियोंके प्रमाणसे यह बात अथवा वैदिक कालमें गवालम्भका चलन निश्चित है कि महाभारत कालमें भारत- था, पर महाभारतके समय वह बिलकुल : वर्षमें गोवधका पाप बहुत ही निन्छ उठ गया था और गोवध ब्रह्महत्याकी समझा जाता था। जोड़का भयङ्कर पातक मान लिया गया इम महत्त्वपूर्ण निषेधकी उत्पत्ति था। यह फर्क क्योंकर और किस कारण हो किम कारण हुई ? महाभारतसे उस गया ? इसकी जाँच बड़ी महत्त्वपूर्ण है। · कारणका थोड़ा बहुत दिग्दर्शन होता है। महाभारतके समय गवालम्भ बिलकुल बन्द : सप्तर्षिया श्रीर नहुषके बीच, एक स्थान हो गया था। तत्कालीन अन्य प्रमाणोंसे भी पर, झगड़ा होनेका वर्णन महाभारतमें यह बात देख पड़ती है। यूनानियोंने है। ऋषियोंने पूछा- लिखा है कि हिन्दुस्तानी लोग बहुत करके य इमे ब्रह्मणा प्रोक्ता मंत्रा वै प्रोक्षणे शाकाहारी है । अरायन नामक इतिहास- गवाम् । एते प्रमाणं भवत उताहो नेति कार लिखता है-"यहाँवाले ज़मीन जोतते वासव ॥ नहुषो नेति नानाह तमसा मूढ़- हैं, और अनाज पर गुज़र करते हैं। सिर्फ चेतनः। (उ० अ०१७) पहाड़ी प्रदेशके लोग जङ्गली जानवरोका अर्थात् ऋषियोंके मतसे गवालम्भ, शिकार करके उनका मांस खाते हैं।" वेदमें वर्णित होनेके कारण, प्रमाण है। इसमें 'धन्य, मृगयाके पशु' शब्द व्यव- परन्तु नहुषने स्पष्ट उत्तर दिया कि वह . हुत है, जिससे मानना चाहिए कि गाय प्रमाण नहीं है। नहुषने यह उत्तर किस अथवा बैलका वध पहाड़ी लोगों में भी आधार पर दिया, इसका यहाँ उल्लेख निषिद्ध था। यूनानियोंके वर्णनमें यद्यपि नहीं है। किन्तु टीकाकारने कहा है- इस बातका स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि गोवध ब्राह्मणाश्चैव गावश्च कुलमेकं द्विधा कृतम्। करना पातक माना जाता था, तथापि एकत्र मन्त्रास्तिष्ठन्ति हघिरकत्र तिष्ठति ॥ अलिखित पाक्यसे यह बात समझ लेनेमें अर्थात् हवनके मन्त्र नो ब्राह्मणोंमें हैं