ॐ सामाजिक परिस्थिति-अन्न। * २४६ - कहनेके लिये भारती आर्य तैयार न थे। (१०४.) इस वर्णनसे स्पष्ट देख पड़ता उमकी यह दलील थी कि जब वेदोमें हिंसा-! है कि श्रद्धायुक्त वैश्य भी मांसाहार करते युक्त यज्ञ करनेकी विधि है, तब यज्ञशिष्ट थे। इस तरह महाभारतके समयनकमांसा- मांस खाने में क्या हानि है: और वे यह भी हारका प्रचार यज्ञ-याग करनेवाले ब्राह्मण- कहते थे कि यज्ञमें की हुई वेद-विहित क्षत्रिय-वंश्यों में था, किन्तु निवृत्तिमार्गका हिंसा हिंसा थोड़े ही है। इस मतके विषय- मेवन करनेवालोंमें न था। में, भारती कालमें बहुत कुछ विचार या विवाद हुए; और जान पड़ता है कि महा- गोहत्याका महापातक । भारतके समय यही मत स्थिर हो गया। एक महत्वकी बात यहाँ पर यह महाभारतके समय सनातन-धर्मियोंकी कहनी है कि महाभारतके समय गवा- रायसे, यज्ञम की हुई हिंसा हिसा न थी लम्भ विलकुल बन्द हो गया था। भारती और अबतक यही सिद्धान्त मान्य किया युद्ध के समय, अश्वमेध-विधिकी तरह, गया है। अब भी हिन्दुस्तानमें कहीं कहीं और अन्य वैदिक योंकी तरह बैलोंके पशुहिंसा-युक्त यज्ञ होते हैं। यह सच है कि यन होते थे। यह बात निर्विवाद है। इस समय यज्ञ बहुत ही कम होते हैं, परन्तु परन्तु महाभारतके समय गाय अथवा पशुहिंसाका श्राग्रह अवतक नहीं बटा। वैलकी हिंसा करना अत्यन्त महान् पानक महाभारतके समय हिंसा-प्रयुक्त या बह- माना जाता था। यसमें गायका प्रोक्षण तायतसे हुश्रा करते थे, और समूचे जन किया जाना बिलकुल बन्द हो गया और समाजकी स्थितिको देखते हुए क्षत्रिय यह नियम हो गया कि कलियुगमें गवा- लोग मांसहारीथे: अनेक ब्राह्मण भी वैदिक लम्भ अर्थात गाय-बैलका या वर्ण्य है। धर्माभिमानी होते हुए भीमांसाहारी अन्य पशुओंके यश-जैसे मेष (भेडा), थे: परन्तु अन्यान्य लोगों में मांसाहारका वकरे और वराह श्रादि के-मान्य थे। चलन कम था: विशेषतः भागवत और इसी हिसाबसे मांस ग्वानेका भी ग्वाज जैन आदि सम्प्रदायोंमें मांस ग्यानका था और है। और आजकल क्षत्रिय अथवा ग्वाज बिलकुल बन्द था । कर्ण-पर्वमें ब्राह्मण श्रीर चाहे जो मांग ग्वाते हो, जो हंस-काकीय कथानक है, उसके एक किन्तु गोमांस भक्षण करना अत्यन्त उल्लेखसे जान पड़ता है कि वैश्यों में, निन्द्य और सनातन धर्मसे भ्रष्ट करने- कहीं कहीं, मांस खानेकी प्रथा थी। वाला माना जाता है। समस्त हिन्दू जमता- वह उल्लेख यों है-"समुद्रके किनारे की ऐसी ही धारणा है। फिर चाहे वह पर एक वैश्य रहता था। उसके पास मनुष्य क्षत्रिय, अथवा अत्यन्त नीच शुद्र धन-धान्य खूब था । समृद्ध होनके ' हो । यह हालत महाभारतके समयसे ही कारण वह यज्ञ-याग किया करता था।। है। महाभारतके समय गोवध अथवा वह दानी और क्षमाशील था । वर्णाश्रम 'गोमांस अत्यन्त निन्ध समझा जाता था। धर्मका पालन भली भाँति करता था। ' उदाहरणार्थ:-द्रोणपर्वमें अर्जुनने जो कई उसके पुत्र भी कई थे । उन भाग्यवान् । कसमें ग्वाई हैं उनमें कहा है। (द्रो० अ०७३) कुमारोंकी जूठन खाकर बढ़ा हुश्रा एक ब्रह्मनानांचये लोकाये च गोघातिनामपि। कौवा था। उसे वे वैश्य-पुत्र मांस,भात, अर्थान "ब्रह्महत्या करनेवाले और गो- दही और दृध श्रादि पदार्थ देते थे।" वध करनेवाले मनुष्य जिन निन्दनीय
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