- महाभारतमीमांसा *
वे काम्यक-बनकी ओर चले गये (व० अ० करना आवश्यक नहीं है। फिर भी मुख्य २५) । "हम बनैले मृगोंके झुण्ड बहुत मुख्य बातें सुन लीजिये- थोडे रह गये हैं। बीज रूपसे बचे हुए मृगो-पपनखा भया ब्रह्मतत्रेण राघव की तुम्हारे अनुग्रहसे अभिवृद्धि हो ॥ शल्यकः श्वाविधो गोधाशशःकुर्मश्च पञ्चमः मृगोंकी ऐसी प्रार्थना सुनकर युधिष्ठिरने रामायणका यह श्लोक प्रसिद्ध है। उस काम्यक वनमें जानेका निश्चय किया इसी प्रकार महाभारतमें भी कहा है- कि जो मरुभूमिके केवल मस्तक और तृणबिन्दु सरोवरके पास है । इस प्रकार पञ्च पश्च-नखा भक्ष्या ब्रह्मक्षत्रस्य वै विशः। प्रकट है कि पाण्डव लोग, वनवासमें, (शां० अ० १४१-७) सिर्फ शिकारके द्वारा ही निर्वाह करते जिन जिन जानवरोंके पाँच नाखन थे। द्रौपदीका हरण जिस समय जयद्रथ- होते हैं, वे सभी ब्राह्मण-क्षत्रियोंके लिये ने किया, उस समय पाण्डव शिकारकी वर्ण्य है । इनमें सिर्फ पाँच साही, एक टोहमें गये थे और वर्णन है कि वे मृग- और प्रकारकी साही, गोह, ख़रगोश और वराह मार लाये थे । अर्थात आजकलकी कछवा खाने की मनाही नहीं है । यह तरह उस समय भी खामकर क्षत्रियोंको श्लोक उस समयका है जब वालिने रामकी मृगों और वगहोंकामांस प्रिय था । इन्हीं- निन्दा की थी। इसमें दिखलाया गया है को मध्यपशु कहते हैं और इनका मांस कि बन्दरों या लंगूरोको मारकर खानेकी पवित्र माना जाता था। शिकार किये हुए क्षत्रियोंके लिये श्राशा नहीं है। इनके सिवा पशुका मांस विशेष प्रशस्त माना जाता था। और भी अनेक वावयं है। शान्ति परन्तु कुछ पशुओका मांस वर्जित पर्वके ३६वे अध्यायमें युधिष्ठिरने भीष्मसे मी देख पड़ता है । इसमें पृष्ठमांस स्पष्ट पूछा है कि ब्राह्मणको कौनसा मांस खानेका निषेध था। निश्चयपूर्वक नहीं खाना मना नहीं और कौनसा मना है। कह सकते कि यह पृष्ठ मांस क्या है। इस पर भोप्मने कहा- टीकाकारने इसका अर्थ किया है-उन अनइवान मृतिका चैव नथा खुद्र- पशुओका मांस जिनकी पीठ पर सामान पिपीलिका । श्लेष्मातकस्तथा विप्रैरभव्यं लादा जाता है। अर्थात् हाथी, घोड़े, विषमेव च ॥ बैल, ऊँटका मांस वर्ण्य है । हाथी-घोड़ेका इसमें विष शब्दका कुछ और ही अर्थ मांस तो आजकल भी निषिद्ध माना करना चाहिए, क्योंकि विष खानेके लिये जाता है। आजकलके समस्त नियमोमें निषेधात्मक नियमकी आवश्यकता ही मांस-भक्षणके सम्बन्धमे जो जो निषेध हैं, नहीं । अर्थात विष शब्दसे ऐसे प्राणियोंको वे बहुधा इस दृष्टिम है कि निषिद्ध मांस समझना चाहिए जिनका मांस विषेला हानिकारक है । इस फेहरिस्तमें अनेक हो। जलचर माणियोंमें जो वयं हैं उनका प्राणी है और प्राचीन समयमें इनका उल्लेख अगले श्लोकमें है- मांस वयं था । कुत्ते-बिल्ली वगैरह अनेक अभव्या ब्राह्मणैर्मत्स्या शल्कैर्ये वै प्राणी इस वर्गमें हैं । मांस-भक्षणके विवर्जिताः । चतुष्पात्कच्छपादन्ये मण्डूका सम्बन्धमें महाभारतके समय भारतो जलजाश्च ये॥ पार्यों में जिन बहुतेरे मांसोंकी मनाही थी, जिन मछलियोंके शल्क यानी पक्ष उन सबका यहाँ पर विस्तारपूर्वक वर्णन नहीं है, वे और कछुए तो भन्य हैं। इनके