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महाभारतमीमांसा
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महाभारतके समय ब्राह्मणोंने नित्यं सारस्वतोंका मत्स्य-भक्षण । मूरा ब्राह्मणानाम' यही नियम पायवालों की तरह और भी एक मान्य किया था और अन्य लोगोंमें भी रहके लोगोंका उल्लेख महाभारतमें है केवल उत्सवके ही अवसर पर शराब जिनका श्राचार साधारण धर्मशील पीनेका व्यसन देख पड़ता था। परन्तु ब्राह्मणों के प्राचारसे भिन्न था । यह अन्य अवसरों पर लोग मदिरा न पीतेथे। उल्लेख सारस्वतोंका है। पहले कहा गया है ___ इस प्रकार भारती-कालमें भारती कि ब्राह्मणोंको मछली न खानी चाहिए । आर्योंके भोजन-व्यवहारमें बहुत ही बड़े परन्तु इसके अपवादमें सारस्वतोंका नाम महत्त्वका अन्तर पड़ गया। भारती श्रार्यो- महाभारतमें कथित है। सारस्वत हैं सर- के लिये यह बात बहुत ही भूषणावह स्वती किनारके ब्राह्मण: ये अब भी मत्स्य- है। भारती आर्योने विशेषतः ब्राह्मणोंने भोजी हैं । मारस्वत आख्यानसे शात मद्य-मांस खाना-पीना छोड़ दिया । पञ्जाब- होता है कि ये लोग महाभारतके समयले को छोड़कर हिन्दुस्तानके अन्य प्रान्तोके । ही मछलियाँ स्वाते हैं। बारह वर्षतक सभी लोगोंमै, जैसा कि कहा गया है, इस पानी न बग्मने पर सारस्वत ऋषिने नियमका भली भाँति पालन होता था। सरस्वती नदीकी मछलियाँ म्वा खाकर जिसे आर्यार्वत कहते हैं उस देशका पेट पाला और वेदोंकी रक्षा की। देश- प्राचार सबसे श्रेष्ठ है-यह बात विटेश जी ब्राह्मण चले गये थे उन्होन प्राचीन कालमें इसी कारण कही जाती लौटकर मारम्वनमे वेद पढ़ा । इन्हीं थी । जैसा कि कहा जा चुका है, श्रार्या-लोगोंका नाम सारम्वत पड़ गया । वर्तके विशेषतः ब्रह्मर्षि दशके रीति-रवाज, सरस्वतीके प्रदेशके एक भागका नाम विवाहके दम्तृर, वर्ण-व्यवस्था श्रीर स्वान- प्राचीन कालमें गुड था। इस कारण पानके व्यवहार-सम्बन्धी कठोर नियम वहाँ वाह्मण गौड भी कहलाने लगे। देश भर में प्रमाणिक माने जाते थे और ये गौड ब्राह्मण बङ्गालमें जाकर बस गये, अन्यान्य प्रान्तीम इनमे कुछ भिन्न प्राचार और कळ मारम्वत ब्राह्मण कोकग्गम रहता था। पञ्जाबके बाहिक लोगोंमें, गाम, आबाद हो गये। इन दोनों स्थानों पर पूर्व कथनके अनुसार, मांस-भक्षणके मारम्वतों में अबतक मत्स्या- सम्बन्धमें अनाचार था; और पञ्जाबके हार प्रचलित है। वाहिक लोगोंमें मुरापानके सम्बन्धमे भी चावल प्रभृति धान्य। पानाचार था । प्रत्येक चौरास्ते पर और राजद्वाग्में सुराकी दुकाने अथवा साधारण गति पर महाभारतके कलारी हौली होती थी। कलारियोंका | लोग मुख्य मुख्य अनाज खाते थे। गौड़ नाम सुभद्र था। कर्ण पर्वके शल्य-अनाज चावल, गेहूँ, ज्वार और सत्त. कर्ण के भाषणसे ये बातें प्रकट होती हैं। आदि मुख्य थे। देख पड़ता है कि धन- ऐसा होने पर भी पाबतकमें इस बातके वानों और क्षत्रियों में भातमै मांस मिला- सम्बन्धमें महाभारतके समय सुधार कर-जिसे आजकल पुलाव कहते हैं- हो गया होगा। क्योंकि शल्यने अपने खानेका खास रवाज था। धृतराष्ट्रने उत्तरमें यही मत प्रकट किया है कि बुरे सभापर्वमें दुर्योधनसे पूछा है-"आच्छाद- आदमी मभी जगह होते हैं। यसि प्रावरान् भश्नासि पिशितौदनम्"