पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२६४
महाभारतमीमांसा

२६४ महाभारतमीमांसा उड़ते हुए दिखाये जाते हैं, वह भी ठीक ही है। तथापि यह कोई निश्चयात्मक हो सकता है। प्रमाण नहीं है। जो हो, यह सच है कि ___उल्लिखित दोनों वस्त्रोंके सिवा भारती भारती-युद्ध के समय सिले-मिलाये कपड़े- आर्योंकी पोशाकमें और कपड़े न थे। . बंडी, अँगरखे आदि,-न थे; और यही पाजामा, अथवा अँगरखा उस समय थे दशा महाभारतके समय थी। भारती ही नहीं। हमें तो ऐसा जान पड़ता है कि आर्य पुरुषोंको पोशाकमें सिर्फ दो वस्त्र कपड़ा काटकर, तरह तरहके कपड़े थे-एक पहननेके लिये, दूसग ओढ़नेके सीनेकी कला ही भारती कालमें न थी। लिये । नाम इनका अन्तरीय और उत्त. उस समय दर्जीका पेशा अज्ञात था, यही रीय था। इसके सिवा सिर पर उष्णीष मानना पड़ता है। यह पश्चिमी गेज़गार है (पगड़ी) था। इन तीनोंका उल्लेख पक और उसके उस तरफस ही हिन्दुस्तानमें स्थान पर अगले श्लोक है:- पानेका अनुमान किया जा सकता है। उप्णीषाणि नियच्छन्तः पुगडरीक- सम्भव है, सिकन्दरके साथी यूनानी ही निभैः करैः । अन्तर्गयोत्तरीयाणि भूषणा- उसे लाये हो । अथवा इससे प्रथम कदा- नि च सर्वशः ॥ (उ० अ० १५३-२०) चित् जब दाराउस बादशाहके समय पर्शियन लोगोंने सिन्धुके पश्चिमी पोरका स्त्रियों का पहनावा। भाग जीता था नब पश्चिमी लोगोंके सह- अब देखना चाहिए कि स्त्रियाँ कैसे वाससे हिन्दुस्तानमें यह कला श्राई हो। कपड़े पहनती थीं। प्राचीन कालमें जब क्योंकि महाभारतमें दर्जियोका नाम हिन्दुस्तानमें मिलाईका हुनर न था तब किसी कारीगरीके सम्बन्धमें नहीं आया। यह प्रकट ही है कि आजकल स्त्रियाँ जैसे संस्कृतमें दर्जीके लिये तुम्नवाय शब्द । लहँगे आदि वस्त्र पहनती है, वैसे उस है। किन्तु महाभारतमें यह शब्द ही नहीं समय न थे: पुरुषोंकी तरह, पर उनके आया। मुनार, लुहार, ठठेरे और मोची वस्त्रोंसे लम्बे, स्त्रियोंके दो वस्त्र होते आदिका नाम तो महाभारतमें है, पर थे । पहननेके वस्त्रको पहनकर कन्धं तुन्नवायका नहीं है। गमायणमें तुम्नवाय पर रस्व लेनेकी गति रही होगी । प्राज- शब्द है । इससे जान पड़ता है कि महा- कल दक्षिणी, बङ्गाली और मदरासी भारतके अनन्तर और रामायणमे पहले स्त्रियाँ जिस प्रकार साड़ी पहनती है, यह कला भारतमें आई होगी। सिकन्दर- उसी ढङ्गसे प्राचीन समयमें भारती आर्य के समय यूनानियोंका शासन पजाबमें स्त्रियाँ साड़ी पहनती होगी। इसके अति- बहुत थोड़े दिनोंतक रहा। परन्तु महा- रिक्त उत्तरोय स्त्रियोंका दूसरा वस्त्र भारत-कालके पश्चात् बैक्ट्रियन-यूनानियोंने था। इसको सिरसे ओढ़ लेनेकी रीति सन् ईसवीसे पूर्व २०० वर्षके लगभग : थी । संयुक्त प्रान्तमें अबतक स्त्रियोंका पजाबको जीतकर वहाँ बहुत वर्षातक उत्तरीय ( दुपट्टा या चदग) बना है; राज्य किया। उस समय लोगोंने यह परन्तु दक्षिणकी ओर यह नष्टप्राय हो पेशा सीखा होगा। पूर्व कथनानुसार, गया है । इसके बदले, पहननेका वस्त्र ही वर्तमान रामायणका समय सन् ईसवीसे इतना लम्बा कर दिया गया है कि उसीसे लगभग १०० वर्ष पहले है, अतएव तुन्नवाय उत्तरीयका काम निकल जाता है और अथवा बर्जी शब्न प्रा जाना साहजिक स्त्रियाँ उसीके छोरसे मस्तक टैंक सकती