२७० 8 महाभारतमीमांसा * पहनती थी। जब राम और सीता वन- ऋषि, वानप्रस्थ और वैखानस ही अजिन- बासके लिये तैयार हुए, तब उनको पह- को श्रोढ़ते थे, बल्कि ब्रह्मचारी भी उसे ननेके लिये, कुश नामक धासके बने हुए ही ओढ़ते होंगे। क्योंकि अभीतक यज्ञो- वल्कल दिये गये । यह वर्णन रामायणमें पवीत-संस्कारमें लडकेको अजिनके बदले है। सीता कुश-चीर पहनना न जानती मृगचर्मका एक छोटासा टुकड़ा जनेऊके थी। जब वह इस कामकी उलझनमें साथ पहनना पड़ता है। अजिन मृगचर्मके पड़ी, तब रामचन्द्रने उसके कौशय वस्त्रके होते हैं और हो सकते हैं । परन्तु यह ऊपरसे ही गलेमें कुश-चीर बाँध दिया। नहीं कह सकते कि वल्कल किस चीज़से यह मनोवेधक वर्णन रामायणमें है। महा- तैयार किये जाते थे । रामायणमें कुश- भारतमें जब पाण्डव वनवासके लिये चीरका वर्णन है । किन्तु कुश-तृणका निकले तब उनके अजिनों के उत्तरीयधारण धोतीकी तरह वस्त्र क्योंकर तैयार किया करनेका वर्णन है। जा सकेगा ? इस दिक्कतके कारण कुछ नतः परं जिताः पार्था वनवासाय दीक्षिताः। लोगोंने कहा है कि हिमालयमें उत्पन्न अजिनान्युत्तरीयाणि जगृहुश्च यथाक्रमम् ॥ होनेवाले इक प्रकारके पेड़की छालसे ___ यहाँ पर पहननेके वस्त्र बदलनका वल्कल बनाये जाते हैं । इस छालका वर्णन नहीं है। अजिन बहुत करके मृगचर्म- चौड़ासा पट्टा निकाला जाता था और से ही बनाये जाते होंगे। द्रौपदीका वस्त्र उसमें जोड़ भी लग सकता था । किन्तु अच्छा ही था। उसने और कोई भिन्न छालके वस्त्रका उल्लेख न तो गमायणमें वस्त्र नहीं पहना । मुनियोंकी स्त्रियाँ और है और न महाभारतमें। फिर भी महा- मुनि भी कुश-चीर या वल्कल पहना करते भारतमें और संस्कृतके सैकड़ों प्राचीन थे। इसका वर्णन सैकड़ों स्थानों पर है। ग्रन्थोंमें वल्कलोका उल्लेख बराबर यह बतलाना कठिन है कि वल्कल बनाय मिलता है और इस प्रकारके वस्त्रोका किस चीजसे जाते थे । रामायणसे तो ! उपयोग प्राचीन कालमें निःसन्देह होता यही मालूम होता है कि वे कुश-तृणोंसे था । अाजकल तो कहीं वल्कलोंका बनाये जाते थे । किन्तु अब यह प्रश्न उपयोग होता नहीं देखा जाता और न सहज ही होता है कि घासके वस्त्र कैसे । ऐसे वस्त्रीको किसीने देखा ही है। इतना होंगे। पर इसमें सन्देह नहीं कि कुश- होने पर भी अन्य प्रमाणोंसे यह निश्चित तृणोंके वस्त्र बनाये जाते थे । धृतराष्ट्र है कि प्राचीन कालमें वल्कलोका उपयोग जब वानप्रस्थ होकर वनवासके लिए होता था और यह भी निश्चित है कि वे निकले तब वे अजिन और वल्कल वस्त्र कुश-तृणोंसे ही बनाये जाते थे । आद्य धारण करके गये थे। यूनानी इतिहास-लेखक हिरोडोटसने अग्निहोत्रं पुरस्कृत्य वल्कलाजिनसंवृतः। लिखा है कि-"वनमें रहनेवाले हिन्दु- वधूजनवृतो राजा निर्ययो भवनात्ततः ॥ स्थानी लोग एक प्रकारकी घास (जैसे (श्राश्रम० अ० २५) मूंज) से तैयार किये हुए वस्त्र पहनते हैं। इस वर्णनमें अजिन और वल्कल इस घासको नदीसे काट लाने पर कूटा दोनोका उल्लेख है। जान पड़ता है कि जाता है और तब दीकी तरह वह बुनी वल्कल पहनने और अजिन श्रोढ़नेके जाती है। इस तरह मोटी दर्गकी तरह काम आता था। पूर्व समयमें केवल कुछ । बनाये हुए कपड़ेको वे बगडी (कार्सेट)
पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२९६
दिखावट