पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२९७

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  • सामाजिक परिस्थिति-वस्त्र । है

की तरह पहनते हैं ।" इस वर्णनसे प्रकट दी थीं वे कुश-तृणकी थी। इससे जान है कि ये वस्त्र निरी धोतियोंकी तरह न पड़ता है कि वनवासी मुनियोंकी प्रायः होते थे; तथापि यह निःसन्देह है कि वे सभी चीजें बहुत करके कुश-तृणकी वे शरीरमें चारों ओर लपेटे जा सकते थे। होती थी। आसन, वस्त्र और खड़ाऊँ इसी कारण वनमें रहनेवाले मुनि और श्रादि कुश-तृणकी बन सकती हैं । ये उनकी पत्नियाँ भी इन वस्त्रोका उपयोग सारी वस्तुएँ सहज ही और बिना करती थीं। यह ठीक है कि उनका उप-। खर्चके तैयार हो जाती हैं। रायन योग समाजमें जाने लायक न था और न नामक युनानी इतिहासकारने 'वाहणे' उनका उपयोग शोभाके लिए होता था। (जूते) का वर्गान खूब किया है। "हिन्दु- शान्ति पर्वके २५८वें अध्यायमे भिन्न स्थानी लोग सफेद चमड़ेके बने हुए भिन्न वस्त्रोंके नाम एक श्लोकमें पाये हैं। वाहग (जूते) पहनते हैं। उन पर तरह वह श्लोक यह है- | तरहका काम किया होता है और उनके क्षौमं च कुशचीरंच कौशेयं वल्कलानि च। तले खुब मोटे होते है ।" अब यह सम- प्राविकंचर्म च समं यस्य स्यान्मक्त एव सः॥ भनेके लिए कोई उपाय नहीं है कि इन इनमें क्षोम, कौशेय और श्राविक जतीका श्राकार या बनावट कैसी होती गृहस्थों के वस्त्र हैं और कुशचीर, वल्कल थी । बहुत करके पैर ऊपरसे खुला रहता तथा चर्म वानप्रस्थों या तपस्वियोंके हैं। हांगा और प्राचीन यूनानी तथा रोमन टीकाकारने क्षौमका अर्थ अतसी मूत्रमय लोग जिस तरहका जता पहनते थे (यह किया है । परन्तु नौम तो कपासका पुतलियों में देखा जाता है) उसी तरहका महीन वस्त्र देख पड़ता है। कौशय % यहाँ भी रहा होगा। रंशमी और श्राविक = ऊनी प्रसिद्ध है। पुरुषकी चोटी। कुश-चीर कुश-तणका होता है, पर वल्कल। काहेका है ? चर्म केवल हिरन श्रादिका अब यह देखना है कि जनतामें मिर चमड़ा है । ऊपरवाले कसे सन्देह पर बाल, और डाढ़ी-मूंछ, रखनेकी कैसी होता है कि कुश-चीरका उल्लेख रामायण- और क्या परिपाटी थी । ब्राह्मण लोग की तरह महाभारतमें भी है। और बहुत करके डाढ़ी-मूंछ रखकर मुंडा डालते होंगे और सिरके भी बाल साफ़ कग- वल्कल कदाचित् भृर्जकी छाल भी बनाये जाते हो। कर सिर्फ थोडीसी शिखा रखते होंगे। इस सम्बन्धमें साफ़ साफ़ वर्णन ध्यानमें पादत्राण । नहीं पाते । ऋषियोंके सम्बन्धमे सदा उनके मस्तक पर जटा होनेका वर्णन हिन्दुस्थानी लोग बहुत करके यूना- नियों की तरह वैसा जूता पहनने थे जैसा पाया जाता है। किन्तु डाढ़ीके सम्बन्धमें दक्षिण और मद्रास श्रादिमें इस समय कुछ पता नहीं लगता। परन्तु जब कि ये ऋषि अथवा तपश्चर्या करनेवाले लोग भी पहना जाता है । इसमें सिर्फ नला सिरके बाल न मुंडवाने थे, तब वे डाढ़ी- ही तला है, ऊपर अँगूठा श्रादि फँसानेके | मूंछ भी रखते ही होंगे। किसी तरह लिए कुछ फन्देसे हैं और वहाँ इसका | डाढ़ी-मूंछ बनानेके लिए नाईका उनसे नाम 'वहाणा' है। वे लकड़ीके भी होते थे। रामने भग्नकोजो पादुकाएँ (म्बड़ाऊँ)! • पाई।