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महाभारतमीमांसा
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में स्त्री-पुरुषोंका आचरण एक दूसरेके पूछना कि जिनका रूप और भाषण सुन्दर सम्बन्धमे बहुत ही अच्छा था। स्त्रियोंको है।" इस वर्णनसे प्रकट होता है कि वे पातिव्रत धर्मका उत्तम रीतिसे पालन । स्त्रियाँ मर्यादाशील थी और युधिष्ठिरके करनेकी आदत पड़ गई थी और पुरुष लिये आदरणीय भी थीं। प्राचीन समय- भी स्त्रियों के सम्बन्धमें अपना व्रत पूर्ण- में राजाओंके दरबारमें, प्रत्येक शुभ अव- तया पालनेके लिए तत्पर और उद्यत रहते सर पर, वेशस्त्रियोंका गान आदि होता थे। स्त्रियाँ अथवा पुरुष, इस व्रतका उल्ल- था। इसके लिये राज-दरबारमें इस ढंग- बन करें तो दोनोंके ही लिए एकसा पातक की स्त्रियोंकी ज़रूरत रहती थी। हिन्दु- माना जाता था। यह सारे भारती-समाज- स्तानके गजाओंका यह आचरण, जनता- की रीति थी। इसके लिए एक ही अप- के सरल व्यवहारके मुकाबलेमें, यूना- बाद यह था कि राजा और धनी लोगों- नियोंको आश्चर्यकारक अँचा । उन्होंने की अनेक स्त्रियाँ तो होती ही थी; परन्तु लिखा है-"राजाओंका ऐश-आराम या इनके अतिरिक्त, इन लोगोंमें वेशस्त्रियोंको वैभव ( उनके कहनके अनुसार ) इतना रखनेकी भी रीति थी। इस सम्बन्धमे बढ़ गया है कि पृथ्वी भरमें उसका कहा जा सकेगा कि वेशस्त्रियाँ कुछ वेश्या जोड नहीं । और यह ऐश-आराम बिल- न थी, ऐसी रखेली थी जो कि एक ही कुल ग्खले-ग्वज़ाने होता है क्योंकि राजा पुरुषकी होकर रहतीथी: और इस कारण, 'जहाँ जाता है वहाँ उसके साथ सोनकी परिवारमें उनका मान विवाहित स्त्रियोंसे पालकी में बैठी हुई वेशस्त्रियोंकी कतारकी कुछ ही उतरकर था । अज्ञातवाससे कतार रहती है। अन्तर यह होता है कि प्रकट होने पर युधिष्ठिरने हस्तिनापुरके । जलसमें इनकी श्रेणी, रानीके समुदायसे, स्वजनोंको, सन्धिकी चर्चा करनेके लिए कुछ हटकर चलती है।" इसमें सन्देह आए हुए सञ्जयके हाथ, भिन्न भिन्न नहीं कि दरबार में रहनेवाली वेशस्त्रियोंका लोगोंके लिए कुशल-प्रश्नके सँदेसे भेजे। राजाओं के बर्ताव पर कुछ न कुछ बुरा उममें अपने कर्तव्यके अनुसार, अपने बड़े परिणाम होना ही चाहिए। क्योंकि दर- बूढ़ों और बन्धुओंकी वेशस्त्रियोंका भी बारके अनेक शुभ प्रसङ्गों पर उनका दर्शन कुशल-मङ्गलका सन्देश भेजकर, उनके होना प्रकट ही है। तथापि, यह बात सम्बन्धमें, युधिष्ठिरने अपना आदर व्यक्त निश्चयपूर्वक कही जा सकेगी कि कुटुम्ब- किया है। युधिष्ठिरने उनका बहुत ही की स्त्रियोंकी प्रभुता सदैव रहती होगी: मार्मिक वर्णन इन शब्दों में किया है:- और ये वंशस्त्रियाँ केवल दरबारी ठाठके अलकृता वस्त्रवत्यः सुगन्धा अबी. ही काम आती होगी। भत्साः सुखिता भागवत्यः। लघु यासां दर्शनं पाक चलाध्वी वेशस्त्रियः कुशलं तात चूत। पृच्छः ॥ (उद्योग० अ० ३०) हिन्दुस्तानी क्षत्रियोंका दूसरा दोष "अलङ्कार पहने, अच्छे अच्छे वस्त्र था उनका घृतसे प्रेम । प्राचीन कालके पहने और नाना प्रकारके सुवास लगाये, जर्मन लोग जिस तरह मद्य पीने और सुखमें बढ़ी हुई परन्तु मर्यादाशील रहने- घृत म्वेलनेमें आसक्त रहा करते थे, उसी वाली, सब प्रकारके उपभोग भागनेवाली तरह भारती आर्य क्षत्रिय घृत खेलने उन शखियांसं, मेरी प्रोरस. कुशल बेढब शौकीन थे। उनमें यह शौक हनना