पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३०५

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  • सामाजिक परिस्थिति-नि-रवाज । *

२७६ बढ़ा-चढ़ा हुआ था कि यदि कोई घृत . की ही तरह सत्यप्रियता स्थिर थी। भारती बनेके लिये क्षत्रियोंको बलाये और वह प्रार्य आचरणसे भी साफथे और उनका इन्कार कर दे तो यह काम क्षत्रियोको प्रातः स्नान आदि प्राचार भी शुद्ध था। अपमानकारक अँचता था। इसी कल्पना- ! रोज़ हाथ-पैर धोकर भोजन करनेके लिये के कारण युधिष्ठिरको घृत खेलनेके लिये जानेकी उनमें रीति थी। भोजनमें बचा विवश होना पड़ा; और फिर आगे चल- हुश्रा अन फिर किसीको परोसनेके काम कर उन्होंने उसमें प्रवीणता प्राप्त करनेका ' न श्राता था। रसोईके बर्तन सदा माँज भी यत्न किया। मद्य और घृत दोनों धोकर साफ़ रखे जाते थे। और यदि व्यसनोंसे बचने के लिये नारदने युधिष्ठिर- : मिट्टीके बर्तन होते तो फेंक दिये जाते थे। को सचेत किया है। श्रीकृष्णन भी युधि- नहा चुकने पर कोई किमीको छूता न था: ष्ठिरको समझाया है कि द्यूतसे दुहरा और पेशाब-पाखानेको जाने पर स्नान अनर्थ होता है-एक तो कलह होता है, : करनेकी गति थी। गेज़ धोया हुआ दूसरे मुफ़्तमें द्रव्य स्वाहा हो जाता है। कपड़ा पहना जाता था " इत्यादि बाते भारती युद्धके समय यह दोष अधिकतासे हुएनसांगनं लिखी हैं। मागंश, स्वच्छ था और युधिष्ठिरकी तरह बलराम भी रहनेकी भारती आर्योकी रीति बहुत खासे जुपारी थे । महाभारत-कालमें प्राचीन कालकी है। यह व्यसन क्षत्रियों में बच रहा होगा और स्पष्टोक्ति। उसकी दुम तो अबतक देखी जाती है । और तो और प्राचीन काल में तत्रियोंकी भारती श्रामि सत्यवादिताकी तरह सङ्गतिसे द्यत खलनेवालं ब्राह्मण भी थे। एक प्रशंसनीय गुण साफ़ बात कह देना क्योंकि वेदमें भी एक तकारका सूक्त है। भी है । महाभारतके समप्र स्त्री-पुरुष और यधिधिर ब्राह्मण होकर ही विगत जिस तरह सत्य बोलते हैं, उसी तरह गजाका घृतकार रहा था। खुलकर स्पष्ट भाषण करने में भी वे आगा- पीछा नहीं करते। भिन्न भिन्न भाषणों के शुद्ध आचरण । अवसरों पर यह स्पष्टवादिता देख पड़ती इन दो अपवादोंको छोडकर, सार है । सागंश यह कि दूसरेकी व्यर्थ झूठी भारती आर्यसमाजका प्राचरण शुद्ध और । " . स्तुति करके, हाँजी हाँजी करनेका दुर्गुण सरल था। यूनानियों ने भी यह बात लिख भारती आर्योंमें न था। रखी है। उन्होंने लिखा है कि हिन्दुस्तान- बड़ोंका मादर।। के लोग समस्त व्यवहारमें अत्यन्त सच भारती पार्यों में, समस्त जन-समाजमें, और सत्यवक्ता होते हैं । हुएनसांगने बड़ोंका आदर करना महत्त्वका लक्षण लिखा है कि हिन्दुस्तानी लोगोंका पाच- था। प्राचीन कालमें यह गति थी कि रण स्वभावसे ही शुद्ध और सादा है। रोज़ तड़के उठकर छोटे, बड़ोंको नम- इसके लिये उन पर कोई ज़ोर-ज़बर्दस्ती स्कार-प्रणाम करते थे । बड़ोंकी प्राशाको नहीं करता। समग्र हिन्दुस्तानकी सत्य- शिरसावन्ध करना छोटीका कर्तव्य था। मियताके सम्बन्धमें यूनानियोंतकने साक्षी युधिष्ठिर बड़े भाई थे, इस कारण उनकी लिख रखी है। अर्थात् महाभारतके समय आज्ञाका पालन छोटे भाई जिस तरह भी हिन्दुस्तानियों में प्राचीन भारती आर्यों करते थे. उसका वर्णन सभापर्व में घनके