पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३०७

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  • सामाजिक परिस्थिति-गनि-ग्याज। *

- "रणशूर और रण-प्रिय भीष्मको, सन्तान राजपुत्र चन्दको उस कुमारीका नारियल होनेके पहले ही, रणमें ही मृत्यु प्रान ग्रहण कर लेना ठीक न अँचा । उसने न हो जाती, इसका क्या भरोसा ?" ! कहा-जो लड़की पिताके लिए मनो- और तो और, भीष्मकी सन्तान उत्पन्न नीनतसी हो गई, उसे मैं ग्रहण नहीं कर होकर अल्प अवस्थामें ही न मर जाती, सकता। तब, पुरोहितने कहा कि यदि इसका भी क्या प्रमाण? होनहारकी बातोंके इसके पेटसे उत्पन्न सन्तानको राज्याधि- सम्बन्धमें कोई निश्चयपूर्वक कुछ भी नहीं कार दिया जाय तो इसी शर्त पर राजाको कह सकता। इसके सिवा और भी एक यह बेटी ब्याही जा सकती है। इस पर जवाब है। शन्तनु यद्यपि वृद्ध था, तथापि चन्दने अपना और अपनी सन्तानका वह कुछ ऐसा निकम्मा बुड्ढा न था। गज्यका हक़ छोड़कर अपने पिताके ही यह कैसे कहा जा सकता है कि साथ उसका विवाह करा दिया । उस उसकी सन्तान निर्बल होगी? इसके गजकुमारीके जो लड़का पैदा हुआ, वही सिवा, धृतराष्ट्र और पागडु कुछ विचित्र- : आगे उदयपुरकी राजगद्दी पर बैठा। यही वीर्यके बेटे न थे। वे तो तपोबल-सम्पन्न नहीं, किन्तु वह अत्यन्त पराक्रमी निकला महर्षि वेदव्यासकी सन्तान थे और ज़रा और उसका वंश भी अबतक मौजूद है। भी निर्बल न थे। पागडव और कौरव भी : सारांश, लम्बमराणाके बुढ़ापेमै विवाह वीर्यवान् थे। उनका नाश तो सिर्फ एक- कर लेनेसे कुछ भी नुकसान नहीं हुआ। के हठसे हुा । दुर्योधन, कैसरकी तरह, चन्दके वंशका नाम आजकल चन्दावत नेजस्वी और राजनीतिमें खूब निपुण था। है और उदयपुरके दरबार में इस घरानेका किन्तु अपार महत्त्वाकांक्षा ही दोनोंके प्रथम श्रेणीका सम्मान प्राप्त है: पहले नाश करनेके लिये कारणीभूत हुई है। जब इन्हें तिलक लगा दिया जाता है, तब मनुष्यमें ऐसे दुर्गुणका उपजना ईश्वरी पीछसे महागणाको । श्रस्तु: चन्दके इस इच्छाका एक खेल है। इसमें माता-पिताके कार्य पर ध्यान देनेसे विदित होगा कि अपगधों अथवा भूलोका कोई कारण भीमके अत्यन्त उदात्त चरित्रका लोगोंके नहीं होता। भीष्मकी प्रतिज्ञाकी मी एक । आचरण पर कितना विलक्षण और उत्तम बात भारती क्षत्रियों के भावी इतिहासमें प्रभाव पड़ता है । न केवल महाभारतके हो गई है। उदयपुरके अत्युश्च क्षत्रिय ही समय, किन्तु महाभारतके पश्चात् भी घराने में लग्वमराणा नामका एक राणा हिन्दू समाजमें पिता-पुत्रका सम्बन्ध हो गया है। इसके भीष्मकी तरह तेजस्वी अत्यन्त उदारनापूर्ण रहा है । पिताकी और पितृभक्त एक पुत्र था । नाम : श्राशाका पालन करना और उसका परम उसका चन्द था। एक बार इसके लिए सम्मान करना भारती लोग उत्तम पुत्र- एक गजकुमारीका फलदान आया। उस का लक्षण मानते थे और इसी प्रकारका समय चन्द शिकारके लिए गया था। आचरण जेठे भाई के साथ छोटे भाई करते क्षत्रियोंकी रीनिके अनुसार कन्या-पक्षका : थे और बड़े भाईको पिताके समान मान- पुरोहित जो नारियल लाया था उसे कर उसकी श्राशाके अनुसार चलते थे। भूलसे उसने राजाके आगे रख दिया । केवल वयसे वृद्ध और ज्ञानमे वृद्ध मनु- तष, राजाने कहा-"बुड्ढेके श्रागे यह प्यको उठकर नमस्कार करना छोटोका नारियल क्यों रखते हो ?" इस बानमे, कर्तव्य पूर्णनया माना जाता था। विद्वान