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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

अवसर पर बहुत ही साफ़ है । द्रौपदीकी लिए उन्होंने विवाह न करके,आजन्म ब्रह्म दुर्दशा देखकर भीमसेन इतने अधिक चर्यका पालन करनेकी भीष्म-प्रतिज्ञा ऋद्ध हुए जितने कि युधिष्ठिरके अपने की: और उसे उन्होंने अन्ततक नियाहा। भापको अथवा भाइयोंको दाँव पर लगा- : भीष्मके इस पाचरणसे कुछ कल्पना हो कर द्यतमें हार जानेसे भी न हुए थे। सकेगी कि प्राचीन समयमें साधारण भीमलेन इतने नाराज़ हुए कि युधिष्ठिर- गति पर पुत्रका पिताके प्रति क्या कर्तव्य का हाथ जला डालने पर उतारू हो गये। समझा जाता था। भीष्मका आचरण नब अर्जुनने उन्हें यह कहकर शान्त किया अत्यन्त उदात्त है। उसकी छाया न केवल कि ये साक्षात बड़े भाई और धर्मात्माओं- समस्त महाभारत पर ही, किन्तु हिन्दु- में श्रेष्ट हैं: इनकी अमर्यादा करना ठीक स्तानके भावी समाज पर भी पड़ी हुई नहीं (म० अ०)। भीप्मन भी अपने देख पड़ती है। भीम और गम श्रादिका पिता पर भक्ति, ज़िन्दगी भर का रहने- प्राचरण आज हज़ारों वर्षसे हिन्दुसमाज- का प्रण करके, व्यक्त की। भीमकी पितृ- के हृत्पटल पर अङ्कित है; और हिन्दुस्तानी भक्तिके विषयमें यहाँ थोडामा कुछ और पिता-पुत्रका सम्बन्ध, हिन्दुस्तानके पति- विवेचन कर देना ठीक होगा। पत्नीके सम्बन्धी ही भाँति, अत्यन्त । उदात्त और पवित्र है। परन्तु इधर कुछ भीष्मकी पितृभक्ति। । लोगोंकी कुत्सित कल्पनाओमे भीष्मके भीष्मके चरित्रमें वह महाप्रतिज्ञा ही इस त्यागको गौणता प्राप्त होना चाहती बड़ी उदात्त बात है। यह प्रतिक्षा उन्होंने है। वास्तवमें यह बड़ी हानिकारक बात पिताके सम्बन्ध की थी । इस प्रतिज्ञामे है। यह भी कह सकते हैं कि भीमके हमारे आगे इस स्थितिका चित्र पा जाता चरित्रको श्रीछा दिखलानेका यह प्रयत्न है कि महाभारतके ममय पिताके लिए पागलोंका सा है। कुछ श्रापकारियों- पुत्र क्या करनेको तैयार हो जाते थे। की यह दलील है कि भीमको स्वयं रामने भी पिताके लिए उनके वनकी और सन्तान उत्पन्न करके तेजस्वी प्रजा उत्पन्न पूर्व-प्रदत्त वचनकी सत्यता-रक्षाके लिए करनी चाहिए थी: उन्होंने बुडुढे शन्तनु- गंज्य त्यागकर वनवास स्वीकार किया: को विवाह कर लेने दिया, जिससे हीन किन्तु वह चौदह वर्षके ही लिये था। सन्तान उपजी और इस कारण भारती भीष्मने अपने पिताको सुग्व देनेके लिण, युद्धसे हिन्दुस्तानको अत्यधिक हानि केवटके निकट यह प्रतिज्ञा की कि में पहुँचाई । परन्तु म्वदेश-प्रेमसे उपजी ज़िन्दगी भर न तो विवाह करूँगा और हुई यह दलील, दृमरी ओरसे स्वदेशकी न राज्य करूँगा। “ऐसी प्रतिज्ञा न तो हानि करके, पिता-पुत्रके बीच हमारी पहले कभी किसीने की है और न अब उदात्त कल्पनाका नाश कर रही है: यह मागे कोई करेगा।” (प्रा० अ० १००) बात उनके ध्यानमें नहीं पाती । यह सारांश यह कि सत्यवतीकी सन्तानको दलील ग़लत भी है, सही नहीं । क्या यह राज्यके सम्बन्धमें उससे जो आशङ्का हो बात सच है कि भीष्मके तेजस्वी सन्तान सकती, उसे जड़ समेत नष्ट कर दिया। ज़रूर ही होती ? अभी इस प्रश्न पर इतना ही नहीं, बल्कि अपनी भावी सन्तान- अधिक विचार करनेकी आवश्यकता से भी उसकी सन्तानके निडर रहनेके नहीं। महाभारत में ही कहा गया है-