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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३१६

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा *

रहित थी। उसके मुख पर उस समय भारतके समय भी आजकलकी रीतिका उत्तरीय भी न था । इस वर्णनको थोडासा उद्गम हो गया था, इस अनु- देखिए न- मानके लिए गुजाइश है । क्योंकि नीचे. संग्भामर्ष-ताम्राक्षी स्फुरमणोष्टसम्पुटा । वाले श्लोकमें जो वर्णन है, वह अप्रशस्त कटाक्षर्निर्दहन्तीव निर्यग्राजानमैक्षत ॥ व्यवहारका समझकर किया गया है। (आदि० अ०७४) श्वश्रश्वशुरयोग्ग्रे वधूः प्रेष्यानशासत । "सन्तापसे होंठ फड़काते हुए उसने अन्वशासच भर्तारं समाह्वायाभिजल्पति ॥ राजाकी और लाल लाल नेत्र करके, (शांति०२२६) कटाक्षसे मानों जलाते हुए, कनखियोंसे । “सास और ससुरके आगे बह नौकरों देखा।" यदि उसके मुख पर पूँघट होता पर हुकूमत करती है और पतिको बुला- तो यह वर्णन तनिक भी उपयोगी न कर (श्रावाज़ देकर) उसके साथ भाषण हुमा होता। क्षत्रिय स्त्रियोंके सिवा ब्राह्मण, करती है ।" इस श्लोकमें वर्णित उद्दण्डता- वैश्य और शूद्र स्त्रियोंके लिए पर्दा न रहा का श्राचरण महाभारतके समय भी निन्ध होगा । क्योंकि साधारण पदका काम माना जाने लगा था। पूर्व कालमें पुरुषों उत्तरीयसे ही हो जाता था। और स्त्रियों अर्थात् पति और पत्नीका ___एक और महत्त्वका अन्तर इस , सम्बन्ध, विवाहमें दोनोंके बड़े रहनेके मोरके समयम-कालिदासके समयमें कारण, विशेष मित्रताका और आदरयुक्त और महाभारतके समयमें-यह देख स्वाधीनताका रहा होगा। परन्तु फिर पड़ता है कि महाभारत कालीन स्त्रियाँ धीरे धीरे दुजायगी अधिक उत्पन्न हुई अपने पतिको, नाम लेकर, पुकारती थीं: और पति अथवा पत्नीका नाम लेना और कालिदासके ज़मानेमें पतिको श्रार्य' सभ्यताके व्यवहारको लाँघना मान लिया पुत्र अर्थात् "ससुरका बेटा" कहनेका गया । तथापि इस ओरके ग्वाजमें भी रवाज था । अाजकल तो वह शब्द भी कुछ श्रादर है। व्यवहृत नहीं होता । और तो क्या, भाज- कल सभी लोगोंमें पति-पत्नी परम्पर बारा-बगीचे। न तो किसी नामसे सम्बोधन करत भारती भार्योंको महाभारतके समय हैं और न अन्य विशेषणसे । परन्तु बाग-बगीचे लगानेका खासा शौक था। महाभारतमें द्रौपदी, सीता, दमयन्ती हिन्दस्थानकी अत्यन्त उप प्राबहवामें और और सावित्री आदि बड़ी बड़ी पतिव्रता निवृत मैदानोंमें बाग़ लगाना सचमुच लियोनकने पतिका नाम-और वह पुगयका काम है और इन बागोंमें घूमनेके भी एकवचनान्त-लेकर पुकाग है । लिए. गांववाले स्त्री-पुरुषतक जाते थे। 'टश्यसे दृश्यसे राजन् एष दृष्टोसि भारती कालमें कुछ देशांके बाग़ प्रसिद्ध नैषध ।' (वन पर्व अध्याय ६३) 'वरं थे। अङ्ग देशके चम्पारगय और उज्जैनके वृणे जीवतु सत्ववानयं यथा मृता होव प्रियकारगयका उल्लेख अन्य स्थानमें किया अहं पति विना। (वन पर्व २६०) गया है। मृच्छकटिक नाटकमें ही इस 'उत्तिष्ठोत्तिष्ठ कि शेषे भीमसेन मृतो बातका कुछ उल्लेख है कि बागों में स्त्री- यथा। (विराट पर्व १७) इत्यादि अनेक पुरुष घमने जाते थे: बल्कि रामायणके उदाहरण दिये जा सकते हैं । परन्तु महा- अयोध्या कागरमें भी यह वर्णन है-'नाग-