पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३१७

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  • सामाजिक परिस्थिति-रीति-रवाज। 8

२६५ जके जनपदे उद्यानानि समागताः । है कि प्राचीन रीतियाँ किस तरह चिमटी सायाह्न क्रीडितुं यान्ति कुमार्यो हेमभू- | चली आती हैं। पजाबियोंकी भी एक षिताः ॥ सुवर्णालङ्कारोंसे भूषित लड़कियाँ रीति वर्णित है। वह रीति यह है कि ये सन्ध्या समय एकत्र होकर खेलनेके लिए लोग हाथोकी अँजुलीसे पानी पीते हैं। वहाँ नहीं जाती जहाँ कि राजा नहीं अँजुलीस पानी पीना और प्रान्तोंमें, होता। इस वर्णनसे स्पष्ट है कि पूर्व इस समय, निषिद्ध माना जाता है, और कालमें स्त्रियाँ बागों में घूमने-फिरनेके आजकल केवल गरीब आदमी अँजुलीसे लिए, आजकलकी ही तरह. जातो थीं। पानी पीते हैं। प्रत्येक शहरके आसपास बड़े बड़े बाग वन्दन और करस्पर्श । होते थे और उनमें उत्सव करनेके लिये आर्य गति यह है कि बड़ीको छोटे स्त्री-पुरुष जाते थे। द्वारकाके पास, रैव- नमस्कार करें। परन्तु बगबरीमें सिर्फ तक पर्वत पर, यादव स्त्री-पुरुष उत्सव हस्तस्पर्श करनेका ग्वाज देख पड़ता है। करनेके लिए जाया करते थे। इसका उद्योग पर्वमें जब बलराम पाण्डवोंसे वर्णन महाभारतमें है। मिलने आये, तबका यह वर्णन है- विशेष रीतियाँ। नतस्तं पागडयांगजाको पस्पर्श पाणिना। (२२ उ०प्र०१५७) महाभारतके समय कुछ लोगोंमें विशेष : युधिष्ठिर जब बलगमका करस्पर्श कर रीतियाँ थीं । महाभारतके कुछ उल्लंग्वाँसे चुकं, तब श्रीकृष्ण श्रादिने उन्हें नमस्कार इस बानका पता लगता है। "श्रापीडिनो किया और उन्होंने विगट तथा दुपद रक्तदन्ता मत्तमातङ्ग विक्रमाः । नाना- दोनों गजाश्रोको नमस्कार किया । विराग-वसना गन्धचूर्णावचूर्णिताः ॥" इससे उपर्युक्त अनुमान होता है। (बल- ( कर्ण पर्व अध्याय १२) दक्षिण आरके गमको यहाँ पर "नीलकौशेयवासनः" करल, पागड्य और आन्ध्र प्रादि देश- कहा गया है । बलराम तीला रेशमी वस्त्र वालोका यह वर्णन है। मिरमें फलोंकी और श्रीकृष्ण पीला रेशमी वस्त्र पहना माला लपेटे हुए और दाँतोको लाल रंगे करते थे।) साधारण रीतिसे नमस्कार हुए, इसी प्रकार तरह तरहकी उंगी हुई जरा झुककर और दोनों हाथ जोड़कर धोतियाँ पहने और शरीर में सुगन्धित किया जाता है : परन्तु द्रोणपर्वके वर्णन- चूर्ण लगाये हुए-यह वर्णन आजकलके से प्रकट होता है कि सूत आदि जब मद्रासियोंके लिए भी पूर्णतया उपयुक्त गजाको नमस्कार करें तो घुटने होता है। ये लोग सिर नङ्गा रखते हैं: : टेककर, धरतीमें माथा रखकर किया सिर्फ फूलोंकी माला सिर पर डाल लेते करें। (द्रो० अ० २) गुरुके चरणोंको हैं । शरीर पर भी कुछ नहीं रहता और हाथोंसे छूकर ब्रह्मचार्ग नमस्कार करे। देहमें चन्दन लगा रहता है। पहननेकी इस विधिका वर्णन अन्यत्र हुआ ही है। धोतियाँ लाल, हरी आदि रंगी हुई होती साष्टाङ्ग नमस्कार बहुधा देवताओंको हैं। रङ्गीन धोती पहननेकी रीति और अथवा ऋषि या गुरु आदिको किया किसी भागमें नहीं है: और ये लोग : जाता था। हाथीको तरह मोटे ताजे तथा मजवृत भी उत्तम आचरण । होते हैं। यह रस बातका एक उदाहरगा गान्ति पर्यके अभ्यायम वर्गान