पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३१९

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सामाजिक परिखिति-रीति-रवाज । 4 पड़ने लगे और शुद्र तपोनिष्ठ हो गये। सम्पत्ति बाँटकर कष्टसे समय बिताने शिष्य गुरुकी सेवा छोड़ बैठे और गुरु । लगा । मित्र परस्पर एक दूसरेकी हँसी बन गये शिष्योंके मित्र । माता-पिता, करने लगे और परस्पर शत्रु बनने लगे। असमर्थ होकर, पुषसे अन्नकी याचना सारांश यह कि दैत्य इस प्रकार नास्तिक, करने लगे। सास-ससुरके देखते बहू कृतघ्न, दुराचारी, अमर्यादशील और (पतोहू) लोगों पर हुकूमत करने लगी निस्तेज हो गये ।" उल्लिखित वर्णनसे और पतिको आवाज देकर उसके साथ हमारे सामने इस सम्बन्धकी कल्पना भाषण करने एवं उसे आज्ञा देने लगी। खड़ी हो जाती है कि महाभारतके पिता पुत्रको खुश रखनेकी चेष्टा करने समय कौन कौन रीतियाँ बुरी समझी लगा और डरके मारे पुत्रोंमें अपनी जानी थी।