२१४ ® महाभारतमीमांसा नका प्रकरण। हैं और अन्तमें अब अत्यन्त बिसदृश स्थितिमें देख पड़ते हैं। प्रायः सभी बातोंमें यह फर्क देख पड़ता है: परन्तु राजकीय संस्था और तत्त्व-शानके सम्बन्धमे तो यह राजकीय परिस्थिति । फर्क बहुत ही अधिक दिखाई देता है। भारती आर्य हिमालयोसरसे हिन्दु- इतिहासके प्रारम्भमें उनकी संस्थाएँ प्रायः ___ स्थानमें आये और यहाँ बस गये। एक ही सी मिलती हैं, परन्तु कहना उस समयसे महाभारतके समयतक राज- पड़ेगा कि महाभारत कालमें उनमें बहुत कीय संस्थाएँ कैसे उत्पन्न हुई, भिन्न भिन्न : ही अन्तर दिखाई देता है। कालोमें भिन्न भिन्न राज्यों में राजसंस्था कैसे : छोटे छोटे राज्य । नियत हुई और राजा तथा प्रजाके पार- स्परिक सम्बन्ध किस प्रकार निश्चित हुए, . भारती-कालकं प्रारम्भकी हिन्दुस्थान- इत्यादि बातें महाभारत जैसे बृहत् ग्रन्थसं की गजकीय परिस्थितिका यदि हम सूक्ष्म हमें विस्तारपूर्वक मालूम हो सकती हैं। गतिस निरीक्षण करें, तो हमें दिखाई इस प्रकरणमें इन्हीं बातोंका विचार किया देगा कि उस समय यहाँ, ग्रीस देशके ही जायगा । भारती आर्य और पाश्चात्य समान, छोटे छोटे भागोंमें बसे हुए देशों के प्रार्य किसी समय एक ही जगह स्वातन्त्र्य-प्रिय लोगोंके संकड़ों राज्य थे। थे । वहाँसे उनकी भिन्न भिन्न शाखाएँ . इन गज्योंके नाम दशके नामसे नहीं रखें भिन्न भिन्न देशोंकी गई । वहाँ वे प्रारम्भमें जाते थे, किन्तु वहाँ बसनेवाले लोगों पर- अपनी एक ही तरहकी राजकीय संस्थाएँ से अथवा किसी विशिष्ट राजा परसे वे ले गए। परन्तु हम देखते हैं कि ग्रीस नाम पड़ गये थे । अाधुनिक राज्योंका और गमकी गजकीय संस्थाओम और ' यदि विचार करें, तो मालूम होगा कि हिन्दुस्थानकी राजकीय संस्थाओं में, प्राचीन । लोगों परस गज्योंके नाम नहीं पड़े हैं, कालसे, बड़ा ही फर्क हो गया है । : किन्तु देश परसे लोगोंके नाम पड़ गये तथापि इस विचारमें हमें सबसे पहले हैं। मराठा, मदगसी, बङ्गाली आदि यह बात देख पड़ती है कि दोनों संस्थाएँ अाधुनिक नाम देश परसे लोगोंके हो गये मलतः एक स्थानमै और एक ही तरहसे है। परन्तु बहुत प्राचीन कालमें इसके उत्पन्न हुई थी और अनेक कारणोंसे दोनों विपरीत परिस्थिति थी। उस समय की परिस्थिति आगे चलकर बहुत भिन्न लोगोंके नाम परसे राज्योंके नाम पड़ हो गई। जैसे कोई रेलकी सड़क एक ही जाते थे । ग्रीस देशमें राज्योंके और लोगों- स्थानसे निकलकर, आगे उसकी दो के नाम शहर परसे पड़ते थे, परन्तु हिन्दु- शाखाएँ हो जायँ, एक उत्सरकी ओर चली स्थानमें वैसा भी नहीं था । हिन्दुस्थानमें जाय और दूसरी दक्षिणकी ओर : तब राजा, निवासी और देशका एक ही नाम अन्तमें उन दोनोंके छोर जैसे बहुत अन्तर रहता था। यहाँके राज्य बहुत छोटे रहा पर और भिन्न दिशाओमें गये हुए देख करते थे। इनका विस्तार, ग्रीस देशके पड़ते है, वैसे ही पाश्चात्य और भारती नगर-राज्योसे, कुछ अधिक रहता था । प्राोंके सुधार एक ही स्थानसे उत्पन्न महाभारत-कालमें भी हिन्दुस्थानकं प्रदेशों- होकर आगे धीरे धीरे भिन्न स्थिति में बड़े की फेहरिस्तम. लोग बतलाये गये
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