- राजकीय परिस्थिति।
२६७ - राज्य थे। बौद्ध ग्रन्थों में भी लिखा है कि केवल भेदसे ही हो सकता था । यथा- कपिलवस्तुके शाक्य और लिच्छवी लोगों- जात्याच सदृशाः सर्वे कुलेन सरशास्तथा । में राजसत्ता कुछ थोड़ेसे प्रमुख लोगोंके भेदाश्चैव प्रदानाच भिद्यन्ते रिपुभिर्गणाः ॥ अधीन थी। महाभारतमें कुछ लोगोंको ये गण धनवान और शर भी हुमा 'गण' कहा गया है। यह वर्णन उसी करते थे जैसे . राजसत्ताके सम्बन्धमें है जो कुछ प्रमुख व्यवंतश्च शूराश्च शस्त्रज्ञाः शास्त्रपारगः । लोगोंके अधीन रहा करती थी। परन्तु इन लोगोंमें मंत्र नहीं हो सकता गणानउत्सवसंकेतान् दस्यून्पर्वतवासिनः। था। भीष्मका कथन है- अजयत् सप्त पाण्डवः॥ न गणाः कृत्स्नशो मन्त्रंश्रोतुमर्हन्ति भारत। इसमें वर्णित है कि पर्वत-वासी मात इस वर्णनसे स्पष्ट देख पड़ता है कि गणोंको-उत्सव-संकेत नामके लोगोंको- महाभारतमें कहे हुए गण प्रजासत्ताक अर्जुनने जीत लिया था । सभापर्वमें : लोग ही हैं। वर्णित गण इसी प्रकारके लोग थे। यह यूनानियोंको भी पजाबमें कुछ प्रजा. बात प्रसिद्ध है कि पहाडी प्रदेशोंमें रहने- सत्ताक लोगोंका परिचय हुअा था । वाले लोग प्रायः स्वतन्त्र और प्रजासत्ताक- । सिकन्दरके इतिहासकारोंने मालव शद्रक- प्रवृत्तिके होते हैं। महाभारतमें कई स्थानों का वर्णन इस प्रकार किया है:-"मालव में लिखा है कि गणोंमें प्रमुखता किस । स्वतन्त्र इगिडयन जातिके लोग हैं। वे बड़े प्रकार प्राप्त करनी चाहिए । महाभारत-शर है और उनकी संख्या भी अधिक है। कालमें 'गणपति' एक विशिष्ट पदवी मालव और श्राकिमड़े (जुद्रक ) के, भिन्नं मानी जाती थी, जिसका अर्थ 'गणोंका भिन्न शहगेंमें रहनेवाले अगुवाओं और मुखिया' होता है। | उनके प्रधान शासकों (गवर्नर ) की ___ यही निश्चय होता है कि महाभारतमें प्रारसे, वकील आये थे। उन्होंने कहा कि उत्सव, संकेत, गोपाल, नारायण, संश- हमाग स्वातन्त्र्य आजतक कभी नष्ट नहीं मक इत्यादि नामोसे जो “गण" वर्णित हुआ, इसी लिए हम लोगोंने सिकन्दरसे है, वे प्रजासत्ताक लोग होंगे। जान पड़ता लड़ाई की।" "उक्त दो जातियोंकी ओरसे है कि ये लोग पायके चारों ओरके सो दृत पाये। उनके शरीर बहुत बड़े पहाड़ोंके निवासी होंगे । वर्तमान समय-और मज़बूत थे। उनका स्वभाव भी बहुत में वायव्य सीमा-प्रान्तमें जो अफ्रीदी मानी देख पड़ता था। उन्होंने कहा कि आदि जातिके लोग हैं, वे ही प्राचीन आजतक हमने अपनी जिस स्वाधीनताकी समयके गण होंगे । गणोंके सम्बन्ध रक्षा की है, उसे अब हम सिकन्दरके शान्ति पर्वके १०७ वें अध्यायमें युधिष्टिरने अधीन करते हैं " (अरायन पृष्ठ १५४) स्पष्ट प्रश्न किया है। उसमें यह कहा है कि ये लोग मुलतानके समीप-रावी और इन लोगोंमें बहुत्वके कारण मंत्र नहीं हो चन्द्रभागाके मङ्गमके पास रहा करते सकता और इनका नाश भेदसे होता है:- थे। यह भी लिखा है कि इनके उस ओर भेदमूलो विनाशो हि गणानाम्पलक्षये। अंबष्ठ जानिके लोग-"अनेक शहरोंमें मंत्रसंवरणं दुःम्बं बहुनामिति मे मतिः ॥ रहते हैं और उनमें प्रजासत्ताक राज्य- - ये लोग प्रायः एक ही जाति और वंश- व्यवस्था है।" (मैककिंडल कृत सिकन्दर- के हुआ करते थे। इसलिए इनका नाश की चढ़ाईका वर्णन )