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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा १

- यूनानियों के उक्त वर्णनसे भी यही मुख्य धर्म है, तब ब्राह्मण और वैश्व निश्चय होता है कि गण प्रजासत्ताक (विशेषतः वैश्य) राज-काजसे अपना व्यवस्थासे रहनेवाले लोग थे। शिला-लेखों- मन हटाने लगे। दूसरे, जब राज्य छोटे में इन मालवोंको 'मालवगण' कहा गया | छोटे थे और अधिकांश लोग आर्य ही थे, है। इसका भी अर्थ वही है । इस शब्दके उस समय राजकीय प्रश्नोंके सम्बन्ध मम्बन्धमें अनेक लोगोंने सन्देश प्रकर लोगोंकी सभा करके उनकी राय लेना किया है: परन्तु गणोंका जो वर्णन महा- मम्भव और उचित भी जान पड़ता था। भारतके आधार पर ऊपर किया गया है, परन्तु जब गज्य विस्तृत हो गये, शूद्र उससे यह सन्देह नष्ट हो सकता है। लोगों और मिश्र वर्णके अन्य लोगोंकी यूनानियों की चढ़ाईके अनन्तर पजाब- ' संख्या बहुत बढ़ गई, और इन लोगोंकी निवासी यही मालव लोग म्वाधीनताकी । गय लेना अनुचिन मालुम होने लगा, तब रक्षाके लिये मालवा प्रान्तक नीचे उतर ऐसो सभाओंका निमंत्रण रुक गया आये होगे और वहाँ उज्जैनतक उनका होगा । म्वभावतःश द्रोंको पगजितके नाते गज्य स्थापित हो गया होगा। विक्रम । गजकीय अधिकारोंका दिया जाना सम्भव इन्हीं लोगोंका अगुवा होगा। उसने पाब- नहीं था। यह बात भी ध्यान देने योग्य के शकोको पराजित किया। मन्दोमरके है कि बहुत बड़ी मनुष्य-संख्याकी ओरसे शिलालेग्यमें-"मालवगण स्थिति" नामले प्रतिनिधि द्वारा सम्मति लेनेकी श्राधुनिक जी वर्ष-गणना है, वह इन्हीं लोगोंके पाश्चात्य पद्धति प्राचीन कालमें नहीं थी। सम्बन्ध है और यही विक्रम संवत् है। यह पद्धनि ग्रीक और गेमन लोगोको इन्हीं लोगोंके नामसे इस प्रान्तको मालवा भी मालूम न थी । इसलिए ग्रीक और गेमन लोगोंकी प्रजासत्ताक राजव्यवस्था- अस्तु: इसके बाद भारती-आर्योंकी के अनुसार प्रत्येक ग्रीक या गेमन मनुष्य- राजकीय उत्क्रान्ति तथा युनानियोंकी को लोक-सभामें उपस्थित होना पड़ता उत्क्रान्तिकी दिशा भिन्न दिग्वाई देती है। था। अतएव यहाँके प्रजासत्ताक राज्यों- उधर पश्चिमको ओर यूनानियों में प्रजा- का प्रबन्ध धीरे धीरे बिगड़ता चला गया सत्ताक-प्रवृत्ति धीरे धीरे बढ़ती गई और और अन्तम व गज्य नष्ट हो गये । इसी प्रजासत्ताक गज्य-प्रबन्धकी अच्छी अच्छी प्रकार, हिन्दुस्थानमें भी जबतक राज्य कल्पनाएँ प्रचलित हो गई: और इधर छोटे थे और गज्यके अधिकारी लोग आर्य भरतवराडमें गजसंस्था बलवान होती थे, तबतक राजकीय बातोंमें इन थोड़े गई तथा गजाकी सत्ता पूर्णतया प्रस्था- लोगोंकी गय लेनेकी रीति जारी थी। पित हो गई। इसका कारण हमें हूँढना परन्तु श्रागे जब राज्यका विस्तार बढ़ चाहिए । जैसे जैसे वर्ण-व्यवस्था दृढ़ होती गया, लोगोंकी संख्या अधिक हो गई, गई, वैसे वैसे गजाओंके अधिकार मजबूत और शुद्र लोग भी चातुर्वगर्यमें समा- होते गये; और जैसे जैसे गज्यमें शद विष्ट हो गये, तब सर्व साधारणकी राय वर्णकी वृद्धि होती गई, वैसे वैसे प्रजाका लेनेकी गति बन्द हो गई। इसका एक अधिकार घटता गया। जब यह बात दृढ़ प्रमाण हमें देव पड़ता है। वह इस निश्चित हो चुकी कि राज्य करना क्षत्रियों- प्रकार है:- का ही अधिकार है और यह उन्हींका हिन्दुस्थानमें पश्चिमी प्रदेशके और