पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
  • राजकीय परिस्थिति । *

की प्रचण्ड ध्वनि सुनाई देने लगी: कवच मुखिया होता था। एक गाँवका अधि- और कुण्डल पहनकर हाथमें तलवार पति अपने गाँवकी भली-बुरी सब खबरे लिये हुए एक तरुण द्वारपाल अन्दर दस गाँवके अधिपतिको दिया करता था: पाया। उसने जमीन पर घुटने टेककर और वह अपनेसे श्रृंष्ठ अधिपतिको बत- उस वन्दनीय धर्मराजको शिरसे प्रणाम लाया करता था । गाँवके अधिपतिका किया और कहा कि श्रीकृष्ण भेट करने वेतन यही था कि वह अपने गाँवके पा रहे हैं।" उक्त वर्णनसे महाभारत- पासके जङ्गलकी पैदावार पर अपना कालके समृद्ध और धार्मिक राजाओं- निर्वाह करे और अपने ऊपरवाले दस की प्रातःकालका दिनचर्या-भाग और गाँवके अधिकारीको तथा उसके भी दरबारका ठाठ पाठकोंको दृष्टिके सामने ऊपरवाले अधिकारीको जङ्गलकी पैदा- ना जाता वारका हिस्सा दिया करे। सौ गाँधके मुल्की काम-काज। अधिपतिको एक स्वतन्त्र गाँव उसके | निर्वाहके लिए दिया जाता था । एक महाभारत कालमें भारती राज्य छोटे हजार ग्रामोंके अधिपतिको एक छोटासा होते थे, परन्तु उनकी मुल्की अवस्था नगर दिया जाता था । सम्पूर्ण राष्ट्रका अच्छी रहती थी। नीचे दिये हुए वर्णनसे मुल्की काम-काज एक स्वतन्त्र अधिकारी- इस बातका परिचय हो जायगा । महा-: को सौंप दिया जाता था। यह देशाधि- भारत-कालमें राज्यका कोई विभाग कारी मन्त्री राजाके पास रहता था। वर्णित नहीं दिखाई देता। कारण यह है कि वह सब देशों में घूमकर ग्रामाधिपतियों- आधनिक समयके एक या दो जिलोंके का राष्ट्र-सम्बन्धी व्यवहार देखता रहता बराबर महाभारत-कालके राज्य हुआ था और जासूसोंके द्वारा भी उनकी जाँच करते थे । उदाहरणार्थ, महाभारतके किया करता था (भीष्म प० अ० ८५)। भीष्म पर्वमें भूवर्णन अध्यायमें दक्षिणमें इनके सिवा, राज्यके सब बड़े बड़े नगरों- पचास लोग या देश बतलाये गये हैं। में नगरोंके स्वतन्त्र अधिपति रहते थे। आधुनिक हिन्दुस्थान में, कृष्णा से दक्षिणकी जिस प्रकार नक्षत्रों पर राहुअपना अधि- ओर, ब्रिटिश राज्यमें इतने ज़िले भी नहीं कार जमाता है, उसी प्रकार यह अधि- हैं । तात्पर्य यह है कि महाभारत-कालके! कारी नगरमें मूर्तिमान् भय ही रहता देशों अथवा लोगोंकी मर्यादा लगभग । होगा। उपर्युक्त पद्धति कदाचित् काल्प- वर्तमान ज़िलेके बराबर रहती थी । निक सी मालुम होगी। परन्तु वैसा नहीं महाभारत-कालके बाद जब राज्य बड़े हुए, था। इसमें सन्देह नहीं कि हर एक गाँव- तब देश, विषय आदि शब्द ही विभाग- में और हर एक बड़े नगरमें अधिपति वाचक हो गये। महाभारत-कालके देशो- रहते थे और देशकी परिस्थितिके अन- में ग्राम अवश्य थे। ग्राम ही मुल्की काम- सार, दस, बीस और सौ गाँवोंके अथवा काजको पहली और अन्तिम संस्था थे। न्यूनाधिक गाँवोंके अधिपति भी रहते थे। मुल्की कामकाजके लिए हर एक गाँवमें साधारणतः अाधुनिक जिलोंके अनुसार, एक मुखिया रहता था। उसे ग्रामाधिपति उस समयके राष्ट्रमें पन्द्रह सौसे दो कहते थे। उससे बड़ा दस गाँवका, बीस हजारतक या कुछ न्यूनाधिक गाँव रहते गाँवका. सौ गाँवका और हज़ार गाँवका होंगे । अर्थात् एक मुख्याधिकारी रहता