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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३४४

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

था, उसके नीचे दो सहस्राधिकारी रहते प्रकार राजाकी पशुशालाएँ स्वतन्त्र रीति- थे, और उनके नीचे विंशत्याधिकारी से सम्पन्न रहा करती थी। वाणिज्य पर रहते थे। महाभारतमें कहा है कि इन केवल में ही कर था। किसी वस्तु- लोगोंकी प्रवृत्ति हमेशा प्रजाको सतानेकी की बिक्रीके दाम पर सैंकड़े २) के ओर रहती है। अतएव कहा गया है कि हिसाबसे सरकारको कर देना पड़ता प्रधान मन्त्री, परधनका अपहार करनेवाले था । अथवा पैदा की हुई चीज पर जो और शठ अधिकारी पर राहुके समान खर्च लगा हो उसे घटाकर, भिन्न भिन्न अपनी धाक रखे और उन लोगोंसे प्रजा- चीजों पर भिन्न भिन्न कर लिया जाता था। की रक्षा करे। विक्रयंक्रयमध्वानं भक्तंच सपरिच्छदम् । योगक्षेमंचसंप्रेच्यवाणिजांकारयेत्करान् ॥ कर। ____ शान्ति पर्वमें यह नियम बतलाया जमीन और व्यापारका कर मिलाकर गया है कि खरीदनेकी कीमत, बेचनेको राज्यकी मुख्य प्राय होती थी । और कीमत, रास्तोंके किराये, कुल कारी- यह प्राय अनाज तथा हिरण्यके स्वरूपमें गरोंके खर्च और स्वयं व्यापारियोंके रहा करती थी। जमीनका महसूल बहुत निर्वाह इत्यादि बातोंका विचार करके प्राचीन कालसे यानी प्रारम्भमें मनुके बनियों पर कर लगाना चाहिए। कारी. कालसे जो लगा दिया गया है, वह एक गरों पर भी कर रहता था; अथवा उनसे दशांश () भाग है । परन्तु यह नियम सरकारी काम बेगारमें लिया जाता था। आगे नहीं रहा और यह भाग एक षष्ठांश समस्त कर इतने ही थे । जिन करोका हो गया । सम्पूर्ण भारती-कालमें और भाग नहीं बतलाया गया है वे कर इस आगे स्मृति-कालमें भी यही कर निश्चित रीतिसे लिये जायँ कि प्रजाको किसी देख पड़ता है प्रकार कष्ट न पहुँचे और उनकी वृद्धिमें आददीत बलिं चापि प्रजाभ्यः कुरुनन्दन। भी रुकावट न हो। इस विषयमें वत्सका सषड्भागमपि प्रास्तासामवाभिगुप्तये॥ उदाहरण दिया गया है । हमेशा यही (शान्ति० अ०६६)/ वर्णन पाया जाता है कि प्रजाका वत्स बुद्धिमान् राजा प्रजासे उसकी रक्षा और गटको गाय समझकर राजा, प्रजा- के लिए कर ले। सभा पर्वमें नारटने रूपी वत्सका योग्य प्रतिपालन करकेराट- यही भाग बतलाया है और पूछा है कि रूपी गायका दोहन करे । जिस समय इससे अधिक तो नहीं लेते ? खेतमें जितना राष्ट्रमें कोई कठिन सङ्कट उपस्थित हो अनाज पैदा होता था उसका: भागलोगों-जाय उस समय लोगोंसे विशेष कर न से लेकर प्रामाधिपति एकत्र करता था। खेकर सामोपचारसे ऋण लिया जाय अनाजके ऐसे कोठे जगह जगह भरे रहते और सङ्कटके नष्ट होने पर वह चुका थे। मालूम होता है कि जमीन पर लोगों- दिया जाय । इसके सम्बन्धमें, शान्ति की सत्ता रहती थी, और पैदावारका पर्वमें, वैसा ही करनेके लिए कहा गया यह भाग करके तौर पर दिया जाता था। है जैसा आधुनिक युद्ध-ऋणके प्रसङ्गमें पशु पालनेवाले बहुतेरे मेषपाल और ब्रिटिश सरकारने किया है। ऐसे समय' ग्याल भी राज्यमें रहते थे और वे भी पर राजाको प्रजाकी जो प्रार्थना करनी पशुमोका भाग राजाको देते थे। इस चाहिए वह भी राज-धर्ममें दी है-