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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा

अग्रहार-सम्बन्धी पूर्व राजाओंके किये चारी रहा करते थे । नारदका प्रम हुए सब दानोंका पालन राजाके द्वारा है कि:-- !भिटा --. -- सामारि --- कश्चिदायव्यय युक्ताः सर्वे गणकलेखकाः । ब्रह्मदेयाग्रहारांध परिबहांश्च पार्थिव । अनुतिष्ठंति पूर्वाह्न नित्यमायव्ययं तव ॥ पूर्वराजाभिपन्नांश्च पालयत्येव पाण्डवः ॥ (स०५-७२) (श्राश्रमवासि पर्व १०) राजाको तीन काम खुद रोज करने कोई राजा जब किसी दूसरेका राज्य पड़ते थे । जासूसोंकी खबर रखना, जीत ले तब पूर्व राजाके द्वारा दिये हुए खजाना और न्याय । इन तीनों कामोको इनामों, अग्रहार (ब्राह्मणोंको दिये हुए वह दूसरों पर नहीं सौंप सकता था। पूरे गाँव) और परिवर्ह (अर्थान् दिये हुए | उसको जमास खर्च कभी बढ़ने न अन्य अधिकार या हक्क) का उसे पालन : देनेकी सावधानी रखनी पड़ती थी । करना चाहिए : इसके साथ यह भी कहा कहा गया है कि राजाकी मुख्य सामर्थ्य गया है कि इस तरहसे युधिष्टिरने दुर्यो- भरा हुआ खजाना है क्योंकि उसकी धनके द्वारा दिये हुए सब हकोंका पालन सहायतासे फौज भी उत्पन्न हो सकती किया। यह तत्त्व भी उन्नत राष्ट्रोंके मुल्की है। नारदन कहा है कि खर्च जमाका कार्योंमें मान्य समझा जाता है। सागंश आधा अथवा हो। यह है कि आजकलके ब्रिटिश राज्यके कञ्चिदायस्य चार्द्धन चतुर्भागन वा पुनः । रेविन्यू या माल विभागके सभी उदार पाबभागैस्त्रिभिर्वापि व्ययः संशुध्यते तव ॥ नियम प्राचीन कालमें प्रचलित थे। अधिक इसका ठीक ठीक अर्थ मालूम नहीं क्या, प्रत्येक गाँवमें लेखकोंका रखा जाना होता। हमारे मतानुसार इसका यही देखकर यह मान लेनेमें भी कोई हर्ज : अर्थ होगा कि श्राधा अथवा तीन चतु- दिखाई नहीं पड़ता कि मुल्की कामांके ! थांश, अथवा जैसा पसन्द कर कागज-पत्र भी तैयार किये जाते थे। उसके अनुसार राजा खर्च किया करे । इससे निर्विवाद सिद्ध होता है कि महा-अाजकलके प्रजासत्ताकराज्यों में श्रायव्यय- भारत-कालके राज्यों में हिन्दुस्थानमें मुल्की की नीति भिन्न है । यहाँ पर ध्यान रखना शासन उत्तम प्रकारका होता था। होगा कि प्राचीन कालमें राजाओंको बचत रखनेकी बड़ी जरूरत रहती थी क्योंकि जमाखर्च-विभाग। आजकलकी तरह मनमाने नये कर नहीं अब हम प्रायव्यय अर्थात् फाइनेन्स लगाये जा सकते थे। पुराने कर भी विभागका विचार करेंगे। हम पहले ही बढ़ाये नहीं जा सकते थे । इसी लिए बतला चुके हैं कि राज्यमें व्ययाधिकारी दण्डनीतिका यह कड़ा नियम था कि स्वतन्त्र रहते थे। परन्तु यह भी कहा बची हुई रकमको राजा अपने कामके गया है कि राजा राज्यके जमाखर्च पर लिए यानी चैन करनेके लिए और धर्म खयं नित्य दृष्टि रखा करे : बल्कि नियम करनेके लिए भी खर्च न करे। ऐसा था कि राज्यके जमाखर्चका दैनिक नकशा प्रतिदिन दोपहरके पहले तैयार सिक्के। हो जाया करे । मालूम होता है कि इसके अब हम महाभारत-कालके सिक्कोका लिए प्रायव्यय-सम्बन्धी बहुतसे कर्म- विचार करगे। उस समय वर्तमान रुपयों-