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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

श्यकता नहीं। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि दुष्ट और कुवृत्तिवाले लोगोंके ही लिए जहाँ युक्तिसे भी निर्णय नहीं हो सकता है। ऐसा ही पूर्वकालीन न्याय-पद्धतिमें था वहाँ क्या किया जाता था । स्मृति- भी होता था । अन्य देशोंकी प्राचीन अन्योंमें दिव्यकी प्रथाका वर्णन है। परन्तु न्याय-पद्धतिकी अपेक्षा हिन्दुस्थानकी महाभारतके उक्त अवतरणों में उसका प्राचीन न्याय-पद्धतिमें यह एक बड़ा उल्लेख नहीं है। तो भी यह प्रथा हिन्दु- भारी विशेष गुण था कि अपराधका स्थानमें अत्यन्त प्राचीन कालसे प्रचलित स्वीकार करानेके लिए किसी प्रति- है। छान्दोग्य उपनिषद्म तप्त-परशु-दिव्य- वादीकी कुछ भी दुर्दशा नहीं की जाती का उल्लेख है। चोर पकड़कर लाया जाता थी। चीन देशमै तथा पश्चिमके स्पेन था; फिर जब वह चोरी करनेसे इन्कार देशमें ईसाई राज्यके अन्तर्गत अपराध करता था तब उसके हाथमें तपा हुआ लगना ही बड़ा भयङ्कर था। इन देशोंकी परशु दिया जाता था। यदि उसका हाथ यही धारणा थी कि अभियुक्तसे स्वीकृति- जल जाता तो वह चार समझा जाता। का उत्तर लेना श्रावश्यक है। वहाँ अभिः था और यदि उसका हाथ न जलता तो यक्तकी दर्दशा कई दिनोंक भिन्न भित्र वह मक्त समझा जाता था। यह वर्णन रीतियोंसे काननके अाधार पर प्रकट की छान्दोग्य उपनिषद्म है । अस्तु: जब जाती थी। यह बात भारती आर्योंके लिए किसी उपायसे न्याय होना सम्भव भूषणप्रद है कि हिन्दुस्थानकी प्राचीन न रह जाता था तब महाभारत-कालमें न्याय-पद्धतिमें इस तरहकी व्यवस्था न भी इसी प्रकारके दिव्योंसे काम चलाया । थी। आजकलकी दृष्टिसे कुछ सजाएँ जाता रहा होगा। पूर्व कालमें विवादोंमें कड़ी मालूम होती है । परन्तु प्राचीन दीवानी और फौजदारीका भेद न था। कालमें सभी देशोंमें कड़ी सजा दी जाती दोनों विषयोंकी जाँच एक ही तरहसे थी। चोगेको बधकी अर्थात् प्राण लेने- होती थी और वह भी बहुधा चटपट हो की सजा अथवा हाथ तोड़नेकी सजा जाती थी । वादी और प्रतिवादी दोनों दी जाती थी । इस विषय पर महा- अपनी खुशीसे न्यायसभामें उपस्थित हो भारतमें एक मनोरञ्जक कथा है। स्नानके जाते थे। प्रतिवादीको सरकारी अधि- लिए जाते समय एक ऋषिने रास्तेमें कारी भी पकडकर न्यायासनके सामने मर्कका एक सन्दर खेत देखा। उसकी ले आते थे। सजाके दगड, कैद, प्रहार इच्छा मक्का लेनेकी हुई और उसने एक और बध चार भेद थे। बध शब्दका अर्थ भुट्टा तोड़ लिया । परन्तु थोड़ी देरके केवल प्राण लेना न था। उसमें हाथ-पैर बाद उसे बड़ा पश्चात्ताप हुआ। वह उसे तोड़नेकी सजा भी सूचित होती है । इस लेकर राजाके पास गया और अपना अप- कथनमें कदाचित् आश्चर्य मालूम होता राध खुद प्रकट करके अपने हाथके तोड़े होगा कि धनवान् लोगोंको (आर्थिक) जानेके लिए प्रार्थना करने लगा। राजा- दण्ड देना चाहिए : ऐसा नियम है। ने उसकी विनतीको नामंजूर किया। तब परन्तु हत्या, चोरी आदिके अपराधोंमें वह कहने लगा कि-"जो राजा अपरा- अमीर-गरीब सबको बधकी ही सजा धियोंको सज़ा देता है वह स्वर्गको जाता मिलती थी।प्रहार अर्थात् यतकी सजा है। है। परन्तु जो उन्हें सज़ा नहीं देता वह यह सजा प्राजकलके कायदोके अनुसार । नरकको जाता है।" यह वचन सुनकर