३३२ 8 महाभारतमीमांसा अर्थ क्या है । टीकाकारोंने उनका अर्थ नहीं है । तथापि वह बहुत कुछ युक्तिपूर्ण स्मृतिशास्त्रमें दी हुई न्याय-पद्धतिके अनु- मालूम होता है। बहुत सी आँखोंका अर्थ रूप किया है । इस पद्धतिका जैसा राजाके पाठ मन्त्री और ३६ सभासद विस्तारपूर्वक उल्लेख स्मृतियोंमें हुआ है, भी ठीक अँचता है । शंकुकर्ण पूरी तौरसे उस तरहका यद्यपि महाभारतमें नहीं है। ध्यान देनेका और ऊर्ध्वरोम आश्चर्यका तो भी यह अनुमान निर्विवाद रूपसे | चिह्न है। इसी तरह सिर पर जटा निकालना पड़ता है कि उस तरहकी | रहना मुकदमेके प्रश्नों और विचारोंकी पद्धति महाभारत-कालमें भी रही होगी। उलझनका लक्षण है और दो जीभे वादी दण्डका वर्णन ऐसा किया गया है- और प्रतिवादीके सम्बन्धमें हैं। रक्त वर्ण नीलोत्पलदलश्यामश्चतुदश्चतुर्भजः । आँखोंका होना क्रोधका चिह्न है और सिंह- अष्टपानकनयनः शंकुकर्णो रोमवान् ॥ चमे पहनना न्यायासनके सन्मुख होने- जटी द्विजिव्हस्ताम्राक्षो मृगराजतनुच्छदः। वाली जाँचकी अत्यन्त धार्मिकता और पवित्रता सूचित करता है । यद्यपि निश्चय- (शांति पर्व अ० १२१ श्लोक १५) पूर्वक नहीं बतलाया जा सकता कि ऊपरके अर्थात् दण्ड काला है: उसके चार श्लोकका सच्चा अर्थ यही है, तथापि यह दाँत, चार भुजाएँ, पाठ पैर, अनेक आँख, बात सच है कि इसमें सौतिके समयकी शंकुकर्ण, खड़े केश, जटा, दो जीभ, ताम्र न्याय-पद्धतिके स्वरूपका वर्णन किया गया रङ्गकी आँखें और सिंहकी खालका वस्त्र है: और उसका असली चित्र इस स्वरूपसे है। टीकाकारने इस वर्णनकी सङ्गति इस हमारे सामने खड़ा हो जाता है। न्याया- तरहसे लगाई है। चार दाँतोंका अर्थ चार धिकारियों का उल्लेख महाभारतमें कश्चि- प्रकारकी सजा है-दण्ड, कैद, मार और दध्यायमें ही है। जो वादी और प्रतिवादी बध । चार भुजाएँ यानी द्रव्य लेनेके चार सन्मुग्व श्राचे उनके कथनको शान्तचित्त तरीके हैं-नगर-दण्ड लेना, वादीसे ली होकर सुन लेना और उचित निर्णय करना हुई रकमकी दूनी जमानत,प्रतिवादीसे ली राजाका पहला कर्तव्य है । अतएव तू इस हुई रकमके बराबर जमानत और जाय- काममें श्रालस तो नहीं करता है ? ऐसा दादकी प्राप्ति । (महाभारतमें इन भेदोंका स्पष्ट प्रश्न किया गया है। इसमें भारत- वर्णन नहीं किया गया है।) दण्डके आठ कालकी परिस्थिति बतलाई गई है। परन्तु पैरोंका अर्थ विवादको जाँचकी आठ भागे प्रश्न किया गया है कि-"यदि किसी सीढ़ियां हैं-१ वादीको फरियाद, २ निर्मल आचारणवाले साधु पुरुष पर घादीका इजहार, ३ प्रतिवादीका इन्कार चोरी, निन्दा आदि कर्मोंका अपराध करना अथवा ४ आधा कबूल करना, ५ लगाया जाय ता उसे व्यर्थ दंड होना अन्य झगड़े अथवा शिकायतें ( यह स्पष्ट अनुचित है। ऐसे सदाचरणवाले मनुष्यों- है कि जब प्रतिवादी वादीका दावा कबूल की धनदौलतका हरणकर उसे मृत्युकी करता है तब दण्डके लिए स्थान नहीं रह सजा देनेवाले लोभी अमात्योंको मूर्ख जाता ।) ६ असामियोंसे दण्डके नाम समझना चाहिए । तेरे राज्यमें तो ऐसे , पर ली हुई जमानत, ७ प्रमाण, = निर्णय। अनाचार नहीं होने पाते ? इससे मालूम टीकाकारके द्वारा बतलाई हुई इन पाठ होता है कि महाभारतकालमें न्याय करने सीढ़ियोंका वर्णन किसी दुसरं ग्रन्थ वाले अमान्य उत्पन्न हो चुके थे।
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