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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३८१

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सेना और युद्ध । गया है। भीमके रथके घोड़े काले रङ्गके थे। स्थान स्थान पर उनके लिए 'मगरा- थे, और उनका साज सोनेका था । कार' विशेषणका उपयोग किया गया है। नकुलके घोड़े काम्बोज देशके थे। उनका उनमें बाण, शक्ति, आदि मौके पर उप- माथा, कन्धा, छाती और पिछला भाग योगी होनेवाले, अनेक शस्त्र भरे रहते विशाल होता है; गर्दन और देह लम्बी | थे। रथीके शरीर पर सदा जिरहवस्तर होती है, और वृषण सँकरा होता है। रहता था । हाथोंके लिए गोधांगुलि- द्रोणके रथकी ध्वजा कृष्णार्जुनयुक्त तथा त्राण-उंगलियोंकी रक्षाके लिए गोहके सुवर्णमय कमण्डलु-युक्त थी। भीमसेन- चमड़ेका बना हुआ, दस्तानेकी नाई, की ध्वजा पर प्रचण्ड सिंह था। कर्णकी एक प्रावरण-रहता था । 'बद्धगोधां- ध्वजा पर हाथीकी शृङ्खलाका चिह्न था। गुलित्राणः बार बार कहा गया है। रथी- युधिष्ठिरकी ध्वजा ग्रहणान्वित चन्द्र के समान सारथीके लिए भी कवच के समान सुशोभित थी। नकुलकी ध्वजा रहता था। रथोके सम्बन्धमें और कुछ पर शरभका चिह्न था जिसकी पीठ सोने- बातें बताने योग्य हैं। मालम होता है कि की थी। यह भी वर्णित है कि रथमें एक भारती-युद्ध-कालमें रथके दो ही बके ढोलक लगी रहती थी। कुछ रथों पर होंगे। उदाहरणार्थ, द्रोण० अ० १५४ के दो मृदङ्ग रहते थे, जो रथके चलने लगने | प्रारम्भमें यह प्रश्न किया गया है कि पर, आप ही आप किसी युक्तिसे बजने द्रोणके दाहिने चक्कं (एकवचन) की रक्षा लगते थे। | कौन करता था और बायें (एकवचन) मृदङ्गो चात्र विपुलो दिव्यो नन्दापनन्दनी। की रक्षा कौन करता था। प्राचीन समय- यन्त्रणाहन्यमानौच सुम्वनौ हर्षवर्धनी ॥ के अन्य देशोंके ग्थोंके जो वर्णन और यह बात असम्भवनीय नहीं कि भिन्न चित्र उपलब्ध हैं, उनमें दो ही वर्क भिन्न योद्धागण मृदङ्ग या ढोलककी दिखाये जाते है। बाबिलोनिया, खाल्डिया. आवाज़से मस्त होकर लड़ते होंगे। आज- असीरिया, इजिप्ट और ग्रीस देशोंमें कल पाश्चात्य युद्धोंमें भी यह बात देख प्राचीन समयमें रथ थे। परन्तु वर्णन पड़ती है। हाईलैंडर लोगोंकी फोज यही पाया जाता है कि उन सबके केवल हमला करनेके लिए जब आगे बढ़ती है, दो ही चक्के थे। इसी प्रकार महाभारतमें तब उसके साथ 'पाइप' बाजा बजता भी दो ही चकांके रथोंका वर्णन है । चार रहता है। जब लड़ाई होने लगती है तब चक्कं भी रहते होंगे। इस बातका भी बाजा बजानेवाला खूब ज़ारसे रणवाद्य वर्णन है कि घटोत्कचके रथके आठ चके बजाता रहता है, और उसकी वीरता थे। घटोत्कचके रथका वर्णन यहाँ देने इसी बातमें समझी जाती है कि स्वयं न योग्य है। "उसका रथ चार सौ हाथका लड़ते हुए यदि वह जखमी हो जाय तो था, उसमें धुंधरू लगे थे और उस पर भी वह अपना रणवाद्य बजाता ही रहे। लाल रङ्गकी ध्वजा-पताका फहराती थी। लड़ाईके समय जब प्रत्यक्ष युद्ध होने चार सौ हाथ लम्बे-चौड़े रथ पर रीछके लगता है, तब सुरीले रणवाद्योंकी, मस्त चमड़का प्रावरण लगा था। उसमें अनेक कर देनेवाली ध्वनिकी, आवश्यकता होती शस्त्रास्त्र भरे थे। उसमें आठ चके थे, है। यह बात उक्त उदाहरणसे स्पष्ट और वेगवान् तथा बलवान् सौ घोड़े जुते मालम हो जायगी। रथ बहुत बड़े रहते थे। बड़ी बड़ी आँखोवाला उसका एक